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________________ ६५९ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका उव्वेल्लणपयडीणं गुणं तु चरिमम्मि कंडये णियमा । चरिमे फालिम्मि पुणो सव्वं च य होदि संकमणं ॥४१३॥ उवेल्लनप्रकृतीनां गुणस्तु चरमे कांडके नियमाच्चरमे फालौ पुनः सव्वं च च भवति संक्रमणं॥ उद्वेलनप्रकृतिगळेलं द्विचरमकांडकपयंतमुवेल्लनसंक्रमणमक्कुं। चरमकांडदोळ तु ५ मत्त नियमदिदं गुणसंक्रमणमक्कुं। पुनः मत्ते चरमफाळियो सर्वसंक्रमणमक्कुमप्पुरिदं सम्यक्त्वमिश्रप्रकृतिगळुवेल्लनप्रकृतिगळप्पुरिदं चरमकांडकदोळु गुणसंक्रमणमुं चरमफाळियोळ सर्वसंक्रमणमुमक्कु । संदृष्टिः मि मि २१ सं २१ अधा अधा m II गु करणपरिणाममिल्ल देनेणिन तुदियिंदं पुरिबिच्चुवंते कर्मपरमाणुगळ्गे परप्रकृतिस्वरूपदिदं निक्षेपणमुवेल्लनसंक्रमणबुदु । विध्यातविशुद्धिकनप्पजीवंगस्थित्यनुभागकांडगुणश्रेण्यादि १० उद्वेलनप्रकृतीनां द्विचरमकांडकपयंतमुद्वेल्लनसंक्रमणं, चरमकांडके तु पुनः नियमेन गुणसंक्रमणं । चरमफालौ पुनः सर्वसंक्रमणं चास्ति तेन सम्यक्त्वमिश्रप्रकृत्योरुद्वेल्लनप्रकृतित्वाच्चरमकांडके गुणसंक्रमणं चरमफालो सर्वसंक्रमणं च सिद्धं । संदृष्टिः मिथ्या मिश्र २१ स २१ अधः अधः करणपरिणामेन विना कर्मपरमाणनां परप्रकृतिरूपेण निक्षेपणमुद्वेल्लनसंक्रमणं नाम । विध्यातविशुद्धि जो उद्वेलन प्रकृतियाँ हैं उनका द्विचरम काण्डक पर्यन्त तो उद्वेलन संक्रम होता है। १५ और अन्तके काण्डकमें नियमसे गुण संक्रम होता है। तथा अन्तिम फालिमें सर्व संक्रमण होता है। इससे चूँकि सम्यक्त्व प्रकृति और मिश्रप्रकृति भी उद्वेलन प्रकृति हैं अतः इनके भी चरम काण्डकमें गण संक्रमण और चरमफालिमें सर्वसंक्रमण सिद्ध है। यहाँ पाँचों संक्रमणका स्वरूप कहते हैंअधःप्रवृत्त आदि तीन करण रूप परिणामोंके बिना कर्म परमाणुओंका अन्य प्रकृतिरूप २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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