________________
५
६५८
१०
परस्परसंक्रमणमिल्ल ।
गो० कर्मकाण्डे
सम्मं मिच्छं मिस्सं सगुणट्ठाणम्मि णेत्र संकमदि । सासण मिस्से णियमा दंसणतियसंकमो णत्थि ॥ ४११ ॥
सम्यक्त्व मिथ्यात्वमिश्रं स्वगुणस्थाने नैव संक्रामति । सासादन मिश्रयोन्नियमाद्दर्शनत्रयसंक्रमो नास्ति ॥
सम्यक्त्व प्रकृतियुं मिथ्यात्व प्रकृतियुं मिश्रप्रकृतियुं स्वस्वगुणस्थानबोलु नैव संक्रामति परप्रकृतिस्त्ररूपविदं संक्रमिसुवुर्ब यिल्ल । सासादन मिश्ररुगकोळ नियर्मादिदं दर्शनमोहनीयत्रयसंक्रमणमिल्ल । असंयतादि नाल्कुं गुणस्थानंगळोळट बुदत्थं ।
मिच्छे सम्मिस्साणं अधापवत्तो मुहुत्त अंतोति । उव्वेल्लणं तु ततो दुचरिमकंडोति नियमेण ॥४१२॥
मिथ्यात्वे सम्यक्त्वमिश्रयोरथाप्रवृत्तो मुहूर्तांतं यावत् । उद्वेल्लनस्तु ततो द्विचरमकांड - पय्यंतं नियमेन ॥
मियात्वे प्राप्ते मिथ्यात्वं पोलपडुत्तिरलागळु सम्यक्त्वमिश्रप्रकृतिगळे रडक्कमथा प्रवृत्तसंक्रममंत मुंहूत्तपर्यंतं प्रवृत्तिसुगुं । तुमचे उद्वेल्लनभागहारसंक्रमं द्विचरमकांडकपर्यंतं नियम१५ दिदं प्रवत्तसुगुमल्लि अथाप्रवृत्तसंक्रमं फालिरूपविदमुद्वेल्लन संक्रमं कांडकरूपदिदं प्रवत्तसुगुं ।
च परस्परं संक्रमणं नास्ति ॥४१० ॥
सम्यक्त्वं मिथ्यात्वं मिश्रं च स्वस्वगुणस्थाने एव न संक्रामति, सासादन मिश्रयोनियमेन दर्शनमोहत्रयस्य संक्रमणं नास्ति । असंयतादिचतुष्वंस्तीत्यर्थः ॥ ४११ ॥
मिथ्यात्व प्राप्ते सम्यक्त्वमिश्रप्रकृत्यो रषः प्रवृत्तं संक्रमोंतर्मुहूर्तपर्यंतं वर्तते । तु पुनः - उद्वेल्लनभागहार२० संक्रमो द्विवरमकांडपर्यंतं वर्तते नियमेन । तत्राधः प्रवृत्तसंक्रमः फालिरूपेण, उद्वेल्लनसंक्रमः कांडकरूपेण
वर्तते ॥४१२ ॥
आयुकमों में भी परस्पर में संक्रमण नहीं होता, देवायु मनुष्यायु आदि अन्य आयुरूप परिणमन नहीं करती । यह संक्रमणका स्वरूप है ॥ ४१० ॥
सम्यक्त्व मोहनीय, मिथ्यात्व और मिश्र मोहनीय अपने-अपने गुणस्थान में संक्रमण २५ नहीं करते । अर्थात् सम्यक्त्व मोहनीयका संक्रमण असंयत आदि गुणस्थानों में नहीं होता ।
मिथ्यात्वका संक्रमण मिथ्यात्व गुणस्थानमें और मिश्र मोहनीयका मिश्र गुणस्थान में संक्रमण नहीं होता । तथा सासादन और मिश्रमें नियमसे दर्शनमोहकी इन तीन प्रकृतियोंका संक्रमण नहीं होता। असंयत आदि चार गुणस्थानों में होता है ॥ ४११ ॥
मिध्यात्वको प्राप्त होनेपर सम्यक्त्व प्रकृति और मिश्र प्रकृतिका अधःप्रवृत्त संक्रमण ३० अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त होता है। तथा उद्वेलन भागहार संक्रमण नियमसे द्विचरमकाण्डक पर्यन्त होता है । उनमें से अधःप्रवृत्त संक्रम फालि रूपसे और उद्वेलन संक्रम काण्डकरूपसे होता है । एक समय में संक्रमण होनेको फालि कहते हैं। और बहुत समयों में संक्रमण हो तो उसे काण्डक कहते हैं । इनका विशेष वर्णन आगे करेंगे ||४१२ ||
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org