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________________ गो० कर्मकाण्डे सुररुं नारकरुं स्वामिगळप्परु । त्रिशत्प्रकृत्यवयस्थानक्के सकलंगळं विकलंगळं सामान्यपुरुषरुगळं स्वामिगळप्पर । एकत्रिंशत्प्रकृतिस्थानक्के सयोगिकेवलिगळं पंचेंद्रियंगळु द्वौंद्रिय त्रोंद्रिय चतुरितियजीवंगळ स्वामिगळप्पहनवाष्टस्थानंगळगे अयोगिकेवलिगळ स्वामिगळप्पर ॥ संदृष्टि : ति | के अयोगि | ९ |ति के अयो | ३ | १ | के बिति च | | ३ १ स | बितिच | सा | २९ । सा | स | २८ सा سه सूना सास विवि सा ه ه ه ه ه इल्लि नामध्रवोदय द्वादशप्रकृतिगळं १२ । गतिचतुष्टयदोनोंदु १ । जातिपंचकदोळोंदु १। ५ त्रसद्वयदोळोदु १ । बादरद्वयदोनोंदु १। पर्याप्तद्वयदोनोंदु १। सुभगद्वयदोठोंदु १। आवेय. द्वयवोलोंदु १ । यशस्कोत्तिद्वयदोळोदु १ । आनुपूठय॑चतुष्टयदोळु स्वस्वगतिसंबंधियों को दुदयिसुत्तं पुरुषाः सुरनारकैकेन्द्रियाश्च । अष्टाविंशतिकनवविंशतिकयोः सामान्यपुरुषाः सकला विकला विशेषपुरुषाः सुरा नारकाश्च । त्रिंशत्कस्य सकला विकला सामान्यपुरुषाश्च । एकत्रिशकस्य सयोगकेवलिनः पंचद्वित्रिच. तुरिन्द्रियाश्च, नवकाष्टकयोरयोगकेवलिनः । अत्र नामध्रुवोदया द्वादश, चतुर्गतिपंचजातिद्वित्रसबादरपर्याप्तसुभगादेययशस्कीतिचतुरानुपूर्योदयेष्वेककः मिलित्वैकविंशतिकं । तत्तु । कार्मणशरीरचतुर्गतिजविग्रहगत्योरेवोदेति नान्यत्र आनुपूर्व्ययुतत्वात् । तत्र तीसके सकलेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और सामान्य पुरुष स्वामी हैं। इकतीसके सयोग केवली, पंचेन्द्रिय, दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय स्वामी हैं। नौके और आठके स्वामी अयोगकेवली हैं। जिस स्थानका जो स्वामी है उसके उस स्थान सम्बन्धी प्रकृतियोंका उदय होता है। १५ आगे उन स्थानोंका कथन करते हैं नामकर्मकी ध्रुवोदयी १२, चार गतियों में से एक, पाँच जातियों में से एक, त्रस बादर पर्याप्त सुभग आदेय यश-कीर्ति और इनके प्रतिपक्षी छह युगल, उनमें से एक-एक तथा चार अत्रनाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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