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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
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भंगंगळु ७० । षड्विंशतिप्रकृतिस्थानंगळु मष्टभंगयुतंगळ २६ । ४ नात्करोळं सुवर्तर भंगंगळु अष्टाविंशतिस्थानंगळे रडरोळ २ भंगंगळ अभत्तु २८ नवविंशतिस्थानंगळष्टभंगयुतंगळ नाल्कु
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२९ । ४ नाल्कु साविरबरु नरेंद्र भंगंगळ स्थानंगळे रडु २९ । २ अंतु नववंशतिप्रकृतिस्थानंगळा
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४६०८
ररोळं भंगंगळ ९२४८ । अप्पुवु । त्रिंशत्प्रकृतिस्थानंगळु मष्टभंगयुतगळ नाल्कु ३०|४ नाल्कु
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सासिरदरुनूर'टु भंगंगळ स्थानमोदु १ अंतु ३०|५ त्रिशत्प्रकृतिस्थानंगळोळध्वरोळ भंगंगळ ५
४६०८ ४६४०
घोडे घाषडिति सप्ततिः २५ षविंशतिकान्यष्टधा चत्वारीति द्वात्रिंशत् २६ अष्टाविंशतिकादीन्यष्टकमिति
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नव २८ नवविंशतिकान्यष्टवाचत्वारि चतुःसहस्रषट्शताष्टधा द्वे इत्येतावन्ति २९ त्रिंशत्कान्यष्टषा चत्वारि
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९२४८
इस प्रकार पचीसके बन्धस्थान में सत्तर भंग होते हैं । छब्बीसके स्थान में बादर, पृथ्वीकाय, आतप और उद्योत सहित दो और उद्योत सहित अप्काय, वनस्पतिकाय इन चारोंमें स्थिर शुभ और यशके युगलसे आठ-आठ भंग होते हैं। इस तरह छब्बीसके स्थान में बत्तीस भंग होते हैं । अठाईसके स्थान में देवगति सहितमें तीन युगलोंके आठ भंग होते हैं। और नरकगति सहित में अप्रशस्त प्रकृतियोंका ही बन्ध होनेसे एक ही भंग होता है अतः अठाईस के स्थान में नौ भंग होते हैं ।
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उनतीस के स्थान में पर्याप्त दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय और पंचेन्द्रिय में तीन युगलों के आठ-आठ भंग होनेसे बत्तीस हुए। और तिर्यंचगति सहित तथा मनुष्यगति सहित दो स्थानों में प्रत्येकके छह संस्थान, छह संहनन और सात युगलोंसे ( ६×६×२×२×२× २x२x२x२) छियालीस सौ आठ भंग होनेसे बानबे सौ सोलह हुए। सब मिलाकर उनतीस के स्थान में बानबे सौ अड़तालीस भेद हुए ।
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तीस के स्थान में उद्योत सहित पर्याप्त दो-इन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय और पंचेन्द्रिय इन चारोंमें उन ही तीन युगलोंके आठ-आठ भंग होनेसे बत्तीस हुए। और संज्ञी तिथंच उद्योत सहित में छियालीस सौ आठ भंग हुए। सब मिलाकर तीसके स्थान में छियालीस सौ चालीस भेद हुए | ये बन्धस्थान मिथ्यादृष्टि गुणस्थानके हैं। इनके भुजकार आदि कहते हैंतेईस स्थानको बांधने के अनन्तर पचीस आदिको बांधनेपर भुजकार बन्ध होता है । सो बादर पृथ्वीकाय सहित तेईसको बाँधकर पीछे पचीस आदि स्थानोंके सब भेदों
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बाँधे तो तेईस ग्यारह भेदोंको बांधते हुए कितने भेदोंको बाँधता है ? इस प्रकार पाँच त्रैराशिक करना । उन पांच त्रैराशिकों में प्रमाणराशि तो सर्वत्र तेईसका एक भंग ही है । फलराशि क्रमसे पचीस के सत्तर भंग, छब्बीस के बत्तीस भंग, अठाईसके नौ भंग, उनतीसके सौ अड़तालीस, और तीसके छियालीस सौ चालीस भंग हुए। इच्छाराशि सर्वत्र तेईस के ग्यारह भंग । सो फलको इच्छासे गुणा करके प्रमाण राशिका भाग देनेपर सब भंगों का प्रमाण होता है । सर्वत्र इच्छाराशि ग्यारह ही है । अतः सर्व फलराशियोंको ७० + ३२ + ९ + ९२४८ + ४६४० जोड़नेपर तेरह हजार नौ सौ निन्यानबे १३९९९ हुए ।
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