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________________ ५ गो० कर्मकाण्डे असंयतनभंगंगळोळ मिश्र देशसंयत प्रमत्तरुगळ बंधस्थानंगळ सर्व्वभंगंगळ मुंटे दितु तान् आ सासादन मिश्र देशसंयत प्रमत्तरुगळ बंधस्थानंगळ भंगंगळं कळेदु मिथ्यादृष्टि अविरताप्रमादरुगळ बंधस्थानं गळोळ भुजाकारादिबंधंगळ पुर्व दरियल्पडुगुं । संदृष्टि :- मिथ्यादृष्टिय नरकगतियुतस्थानं २८ न तिर्यग्गतियुतस्थानंगळु २३ २५ २६ २९ ३० मनुष्यगतियुतस्थानंगळु - ४६०८ ४६०८ १ १ ८ ८ सासादनंगे नरकगतियुतस्थानबंधं शून्यमक्कुं । ९०० २९ २५ ४६०८ १ देवगतियुतस्थानं २८ ८ तिर्य्यग्गतियुतस्थानं गळु २९ ३० ३२०० ३२०० तबंधस्थानं २८ यितु सासादनन मूरुं गतियुतबंधस्थानंगळोळु संभविसुव भंगंगळनितुं मिथ्या ८ मनुष्यगतियुतबंधस्थानं २९ म देवगति ३२०० दृष्टि चतुर्गतिय बंघस्थानंगळ भंगंगळोळ संभविसुववु । मत्तमसंयतंगे नरकगतियुतबंधस्थानमुं तिथ्यंगतियुतबंधस्थानंगळ ं संभविसवु । मनुष्यगतियुतबंधस्यानं गळु २९ ३० देवगतियुत ሪ ८ १० स्थानंगळ २८ २९ मिवरोळ मिश्रं नरकगतियुतबंधस्थानंगळं शून्यंगळु | मनुष्यगतियुतबंधस्थानं २९ म देवगतियुतबंधस्थानं २८ ई मिश्रनगतिद्वययुतद्विस्थानंगळ भंगगळं ८ ८ ८ ८ देशसंयतंगे नरकगतियुतबंघस्थानंगलं तिर्यग्गतियुतबंधस्थानंगलं मनुष्यगतियुतबंधस्थानं गळु सासादनबंधस्थानभंगाः खलु संतीति कारणात् । पुनः असंयतबंधस्थानभंगेषु मिश्र देशसंयतप्रमत्तबंध स्थान सर्वभंगाः खलु संतीति कारणाच्च तान् सासादनभंगान् मिथ्या दृष्टिभंगेषु मिश्रदेशसंयतप्रमत्तभंगान् असंयतभंगेषु १५ चापनीय मिथ्यादृष्टयविरताप्रमत्तेषु बंधस्थानभंगा भवति । संदृष्टि:- मिथ्यादृष्टेर्नरक २८ तिर्यग् २३ २५ २६ २९ ३० मनुष्य २९ २५ देवगति १ १ ८ ८ ४६०८ ४६०८ ४६०८ १ युतानि २८ । सासादनस्य नरकगतियुतं नास्ति । तिर्यग् २९ ३० मनुष्य २९ देवगतियुतानि ८ ३२०० ३२०० ३२०० 1 जाते हैं । और असंयत के बन्धस्थानोंके भंगों में मिश्र, देशसंयत और प्रमत्तके भंग आ जाते हैं। क्योंकि उनमें परस्परमें समानता है । अतः मिध्यादृष्टि के भंगोंमें सासादनके भंगों को २० और असंयतके भंगों में मिश्र, देशसंयत और प्रमत्तके भंगोंको घटाकर मिध्यादृष्टि Jain Education International अविरत और अप्रमत्तमें बन्धस्थानोंके भंग होते हैं । मिथ्यादृष्टि में नरकगतियुक्त अठाईसके स्थानका भंग एक है । तियंचगतियुक्त तेईसका एक, पचीसके आठ, छब्बीसके आठ, उनतीस के छियालीस सौ आठ और तीसके छियालीस सौ आठ भंग हैं। मनुष्यगतियुक्त पच्चीस में एक और उन्तीस में छियालीस सौ आठ भंग हैं। देवगति सहित अठाईसमें आठ भंग हैं । २५ सासादन में नरकगति सहित भंग नहीं हैं । तियंचगति सहित उनतीस में बत्तीस सौ, तीस में बत्तीस सौ मनुष्यगति सहित उनतीस में बत्तीस सौ देवगति सहित अठाईसमें आठ भंग For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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