________________
कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका प्रतिपक्षमक्कुमें दरियल्पडुगुमा अपर्याप्तनाम कर्ममुं मिथ्यादृष्टियोळे व्युच्छित्तियादुदरिदं परघात. नामप्रकृतिगे अपूर्वकरणषष्ठभागपर्यंत निःप्रतिपक्षत्वमरियल्पगुं आतैपनामकर्मक्के मिथ्यादृष्टियोळु अपर्याप्तनाममं कट्टिदागळ पर्याप्तनामदोडने निष्प्रतिपक्षत्वमरियाडुगुं । समचतुरस्त्रसंस्थानक्के मिश्रगुणस्थानमादियागि अपूर्वकरणषष्ठभागपय्यंतं निष्प्रतिपक्षत्वमरियल्पडुगुं पंचेंद्रियजातिनामक्के मिथ्यादृष्टियोळ सप्रतिपक्षत्वं सासादनं मोदल्गोंडु अपूर्वकरणषष्ठभागपय्यंतं ५ निःप्रतिपक्षत्वमरियल्पडुगुं। त्रसबादरपर्याप्तप्रत्येकशरीरंगळगे मिथ्यादृष्टियोळु सप्रतिपक्षत्वमेके. दोडे स्थावरसूक्ष्मापर्याप्तसाधारणशरीरंगळणे बंधमुंटप्पुरिवं मेले सासादनं मोदलगोंडपूर्वकरणषष्ठभागपथ्यंत निःप्रतिपक्षत्वमरियल्पडुगुं। स्थिरशुभयशस्कोत्तिनामंगळगे प्रमत्तसंयतपयंत सप्रतिपक्षत्वमेके दोडस्थिरमशुभमयशस्कोत्तिनामंगळगे बंधमुंटप्पुरिदै मेलणऽप्रमत्तसंयतं मोदल्गोंडपूर्वकरण षष्ठभागपथ्यंत निःप्रतिपक्षत्वमकुं। यशस्कोत्तिनामक्के सूक्ष्मसांपररायपय्यंतं निःप्रति- १० पक्षत्वमकुं। सुभगसुस्वरादेयंगळ्गे सासादनपर्यतं सप्रतिपक्षत्वमेके दोडे दुभंगत्रयक्के सासादननोळु बंधमुंटप्पुरिदं । मेले अपूर्वकरणषष्ठभागपयंतं निःप्रतिपक्षत्वं सातवेदक्क प्रमतसंयतपयंतं सप्रतिपक्षत्वमेकेदोडऽसातक्के प्रमत्तसंयत पय्यंत बंधमुंटप्पुरदं । मेले सयोगकेवलिपय्यंतं निःप्रति
अपर्याप्तनव सप्रतिपक्ष, अपर्याप्तस्य मिथ्यादृष्टी बंधच्छेदात् परघोतोच्छ्वासद्वयं सासादनाद्यपूर्वकरणषष्ठभागपर्यतं निःप्रतिपक्षं । आतपः मिथ्यादृष्टावपर्याप्तबंधे पर्याप्तेन निःप्रतिपक्षः। समचतुरस्र मिश्राद्यपूर्वकरणषष्ठभाग- १५ पर्यतं निःप्रतिपक्षं । पंचेंद्रियं मिथ्यादृष्टौ सप्रतिपक्षं, सासादनाद्य पूर्वकरणषष्ठभागपयंतं निःप्रतिपक्षं । त्रसबादरपर्याप्तप्रत्येकानि मिथ्यादृष्टौ स्यावरसूक्ष्मापर्याप्तसाधारणशरीराणां बंधात्सप्रतिपक्षाणि, उपर्यपूर्वकरणषष्ठभार्गपयंतं निष्प्रतिपक्षाणि । स्थिरशुभयशस्कीर्तयः प्रमत्तपयंतमस्थिराशुभायशस्कीर्तीनां बंधात्सप्रतिपक्षाः, उपर्यपूर्वकरणषष्ठभागपयंतं निष्प्रतिपक्षाः। यशस्कीर्तिस्तु सूक्ष्मसांपरायपयंतं निःप्रतिपक्षा। सुभगसुस्वरादेयानि सासादनपर्यतं दुर्भगत्रयबंधात् सप्रतिपक्षाणि उपर्यपूर्वकरणषष्ठभागपयंतं निःप्रतिपक्षाणि । सातवेदनीयं प्रमत्त- २० है और मिश्र तथा असंयतमें अप्रतिपक्षी है। परघात और उच्छ्वास अपर्याप्त अपेक्षा सानिपक्षो हैं, और अपर्याप्तकी मिथ्यादृष्टि में बन्धव्युच्छित्ति होनेपर सोसादनसे अपूर्वकरणके षष्ठ भाग पर्यन्त प्रतिपक्ष रहित हैं। आतप मिथ्यादष्टि में अपर्याप्तका बन्ध होते सप्रतिपक्षी है क्योंकि अपर्याप्तका बन्ध होनेपर इसका बन्ध नहीं होता। पर्याप्तके साथ अप्रतिपक्षी है। समचतुरस्रसंस्थान मिश्रसे अपूर्वकरणके षष्ठभाग पर्यन्त प्रतिपक्षरहित है। पंचेन्द्रिय जाति २५ मिध्यादृष्टीमें सप्रतिपक्षी है और सासादनसे अपूर्वकरणके षष्ठभाग पर्यन्त प्रतिपक्ष रहित है। त्रस बादर पर्याप्त प्रत्येक मिथ्यादृष्टि में स्थावर सूक्ष्म अपर्याप्त और साधारण शरीरका बन्ध होनेसे सप्रतिपक्षी हैं। ऊपर अपूर्वकरणके षष्ठ भाग पर्यन्त प्रतिपक्षरहित हैं। स्थिर शुभ यशःकीर्ति प्रमत्तगुणस्थान पर्यन्त अस्थिर अशुभ अयशःकीर्तिका बन्ध होनेसे सप्रतिपक्षी हैं। ऊपर अपूर्वकरणके षष्ठभाग पर्यन्त अप्रतिपक्षी है। किन्तु यश कीर्ति सूक्ष्मसाम्पराय पर्यन्त ३० अप्रतिपक्षी है। सुभग सुस्वर आदेय सासादन पर्यन्त दुर्भग दुःस्वर अनादेयका बन्ध होनेसे १. आतपनामं सांतरप्रकृतिगळोल्पेळल्पट्दुदु ई सांतरनिरंतरप्रकृतिगळोळु उच्छ्वासनामक एंदु पेळबेकु विचारिसिको बुदु ।। २. ब परघातमपूर्व । ३. बमुपर्यपूर्व । ४. बगान्तं ।
क-८३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org