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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ८८५ विस्थानानुभागबंधमं शुभाशुभकभंगळ्गे स्थितिबंधापसरणमं प्रवत्तिसुतलुमधःप्रवृत्तकरणपरिणतियं मोरि तदनंतरसमयदोळपूर्वकरणपरिणाम-परिणतरागियुमा नाल्कु मावश्यकंगळवेरसु गुणश्रेणीगुणसंक्रमस्थितिकांडकघातानुभागकांडकघातंगळुमं प्रथमोपशमसम्यक्त्वोत्पत्तिगुणश्रेणिद्रध्यमं नोडलं देशसंयतगुणश्रेणिद्रव्यमसंख्यातगुणमदं नोडलं सकलसंयतगुणश्रेणीद्रव्यमसंख्यातगुणमदं नोंडलुमसंख्यातगुणद्रव्यमनीयनंतानुबंधिकषायविसंयोजकनपकर्षिसि अपूर्वकरणानिवृत्ति- ५ करणकालद्वयमं नोडल साधिकमागियुं संयतरगुणश्रेण्यायाममं नोडलु संख्यातगुणहीनमुं समयं. प्रतिगलितावशेषमुमप्प गुणश्रेण्यायामदोळु द्रव्यनिक्षेपणमुमननुभागकांडकायाममं पूर्वमं नोडलनंतगुणमुमं स्थितिकांडकायाममुमं पूर्वमं नोडलं संख्यातगुणायाममुमं अनंतानुबंधिगळ्गे गुणसंक्रममुंटप्पुरिदं गुणसंक्रमद्रव्यमुम पूर्वमं नोडलुमसंख्यातगुणमुमनितु संख्यातसहस्रस्थितिकांडकंगळिवं तावन्मात्रस्थितिबंधापसरणंगळिवमुमोदु स्थितिकांडकं बीळ्व कालदोळु संख्यात- १० सहस्त्रानुभागकांडकंगळ प्रमाणविंद संख्यातसहस्रानुभागकांडकघातंगळं प्रत्तिसुत्तमपूर्वकरण इति सामग्रीविशेषविशिष्टोऽसंयतादिचतुर्गुणस्थानान्यतमवेदकसम्यग्दृष्टिरधःप्रवृत्तकरणप्रथमसमयात्प्रागुक्तचतुरावश्यकानि कुर्वन् तं करणं नीत्वानंतरसमयेऽपूर्वकरणं गतः तैः समं प्रतिसमयं प्रथमोपशमसम्यक्त्वोत्पत्तिदेशसंयतसकलसंपतगुणश्रेणिद्रव्येभ्यः असंख्यातासंख्यातगुणमनंतानुबंधिद्रव्यमनंतानुबंधिविसंयोजकः, अपकृष्यापूर्वकरणानिवृत्तिकरणकालद्वयात्साधिकेपि संयतगुणश्रेण्यायामात संख्यातगुणहोने गलितावशेषगुणश्रेण्या- १५ यामे निक्षिपन् अनंतानुबंधिनः गुणसंक्रमणसद्भावात् पूर्वतोऽसंख्यातगुणं गुणसंक्रमणद्रव्यं संक्रामन् पूर्वतः सामग्रीविशेषसे विशिष्ट वेदक सम्यग्दृष्टी असंयत आदि चार गुणस्थानोंमें-से किसीमें तीन करण करता है । अधःप्रवृत्तकरणके प्रथम समयसे लेकर पूर्वोक्त चार आवश्यक करता है-विशद्धताका बढाना, साता आदि प्रशस्त प्रकृतियोंका अनुभागबन्ध बढ़ाना, असाता आदि अप्रशस्त प्रकृतियों का अनुभागबन्ध घटाना, सब प्रकृतियोंका स्थिति- २० बन्ध घटाना। अधःप्रवृत्तको पूर्ण करके अनन्तर समयमें अपूर्वकरणको करता है। वहाँ पूर्वोक्त चार आवश्यकोंके साथ प्रतिसमय जो प्रथमोपशम सम्यक्त्वकी उत्पत्तिमें, देशसंयत में, वा सकलसंयतमें असंख्यातगुणा-असंख्यातगुणा गुणश्रेणीरूप द्रव्य है उससे असंख्यातगुणा अनन्तानुबन्धीका द्रव्य अपकर्षण करके पृथक् रखता है । अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरणके कालसे यहाँ गुणश्रेणी आयामका काल कुछ अधिक है तथापि सकलसंयमके गुणश्रेणीके । कालसे संख्यातगुणा हीन है। गलितावशेष उस गुणश्रेणीके कालमें उस अपकर्षण किये हुए द्रव्यको देता है। विशेषार्थ-सत्तारूप मोहनीय कर्मके परमाणुओंमें जितने अनन्तानुबन्धीके परमाणु हैं, उनमें से पूर्वोक्त गुणश्रेणीमें देनेके लिए अपकर्षण करके जितने परमाणु पृथक किये, उतने परमाणु पूर्वोक्त गुणश्रेणी कालके जितने समय हों, उनमें प्रतिसमय असंख्यात-असंख्यात गुणे होकर निर्जरारूप परिणत करता है। . _अनन्तानुबन्धीमें गुणसक्रम होनेसे पूर्वसे असंख्यात गुणे संक्रम द्रव्यको संक्रमाता है । अर्थात् अनन्तानुबन्धीके द्रव्यको अन्य कषायरूप परिणमाता है । १. मसंज्ञिजीवमिथ्यात्वकर्मक्के स्थितियनिष्टुप्रमाणमं सा १००० माळ्पनप्पुरि तप्रमितमकुम बुदत्यं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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