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________________ गो० कर्मकाण्डे ज्ञानावरणपंचवर्क सूक्ष्मसांपरायनोळु बंधव्युच्छित्तियक्कुं । क्षीणकषायनोळु दयभ्युच्छित्तियक्कुमित्यादि सुगममवकुं ॥ अनंतरं परोवयबंबंगळु पन्नों दुं ११ स्वोवयबंधंग ळिष्पत्तेळ तु पेल्यु शेषंगळु स्वोदयपरोहयोमयबंधप्रकृतिगळे भत्ते र तु गायाद्वर्यादिद पेळदपर : २० ६५० एषां आवुवु केल प्रकृति परोदयदिदं बंधमककुर्म तु वेळल्पडुगुमव सुरनारकायुर्द्वयमुं १० तीर्थमुं वैक्रियिकषट्कमुमाहारकद्वयमुर्मबी पन्नों दुं प्रकृतिगळप्पुवु । संवृष्टि । सु १ । ना १ । १ | ६ | आ२ । कूडि ११ ॥ मिथ्यात्वप्रकृतियुं सूक्ष्म सांपरायन घातिगळु पविनालकुं ॥ तेजदुगं वण्णचऊ थिरसुहजुगल गुरुणिमिणधुवउदया । सोदबंधा सेसा बासीदा उभयबंधीओ || ४०३ ॥ सुरणिरयाऊ तित्थं वेगुव्वियछक्कहार मिदि एसिं । परउदयेण य बंधो मिच्छं सुहुमस्त घादीओ ॥ ४०२ ॥ सुरनारकायुषी तोत्थं वैक्रियिकषट्कमाहारकद्विकमिति येषां । परोदयेन च बंधः मिध्यात्वं सूक्ष्मस्य घातिनः ॥ तेजसद्वयं वर्ण चतुष्कं स्थिरशुभयुगळागुरुलघुनिम्र्माणध्रुवोदयाः । स्वोदयबंधाः शेषाः दूध१५ शीतिरुभयोदयबंधाः ॥ ३० नीयसंज्वलन लोभस्त्रोनपुंसकवेदार तिशोकना रकतिर्यग्मानुष्यायुर्ना र कतियंग्मनुष्यगतिपंचेंद्रिय जात्योदारिकतेजस कीमणिषट्संहननौदा रिकांगोपांगषट्संस्थान वर्ण चतुष्कन र कतियंगानुपूर्व्या गुरुलघुचतुष्कोच्छु वासविहायोगतिद्वयत्रस चतुष्कस्थिर द्विक शुभद्विक सुभगद्विक सुस्वर द्विकादेयद्विकयशस्कीर्ति निर्माणतीर्थ करगोत्र द्विकपंचांतरायाणामेकाशीतेः उदयव्युच्छित्तेः पूर्वं बंधव्युच्छित्तिः स्यात् ॥४०० - ४०१ ॥ द्वितीयप्रश्न त्रयप्रकृतीर्गाथाद्वयेनाह - यासां परोदयेन बंधः, ताः प्रकृतयः सुरनारकायुषी तीर्थं वैक्रियिकषट्कमाहारकद्वयं चेत्येकादश भवंति । मिथ्यात्वं सूक्ष्मां रायस्य चतुर्दशघातीनि ॥ ४०२ ॥ नौ दर्शनावरण, दो वेदनीय, संज्वलन लोभ, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, अरति, शोक, नरकायु, मनुष्यायु, तियंचायु, नरकगति, मनुष्यगति, तियंचगति, पंचेन्द्रिय जाति, औदारिक तैजस कार्मण शरीर, छह संहनन, औदारिक अंगोपांग, छह संस्थान, वर्णादि चार, नरकानुपूर्वी, २५ तिर्यचानुपूर्वी, अगुरुलघु आदि चार, उच्छ्वास, विहायोगति दो, त्रसादि चार, स्थिरअस्थिर, शुभ-अशुभ, सुभग-दुर्भग सुस्वर-दुःस्वर, आदेय-अनादेय, यश: कीर्ति, निर्माण, तीर्थकर, गोत्र दो, पाँच अन्तराय इन इक्यासी प्रकृतियोंकी उदय व्युच्छित्ति से पहले बन्धव्युच्छित्ति होती है || ४००-४०१॥ आगे दूसरे तीन प्रश्नों की प्रकृतियाँ दो गाथाओंसे कहते हैं देव, नरका, तीर्थकर, वैक्रियिक शरीर, अंगोपांग, देवगति, देवानुपूर्वी, नरकगति, नरकानुपूर्वी, आहारक शरीर व अंगोपांग इन ग्यारह प्रकृतियोंका बन्ध अन्य प्रकृतियोंके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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