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________________ ८२५ कर्णाटवृत्ति जीवतत्वप्रदीपिका कषायमार्गणेयो क्रोधचतुष्टयक्कं मानचतुष्टयक्कं मायाचतुष्टयक्कं लोभचतुष्टयक्क ग्रहणमक्कु । मंतादोडनंतानुबंधिक्रोधमानमायालोभादिषोडशकषायंगळगे जात्याश्रयणदिदमभेदविवयिदमेतु साधारणक्रोधमानमायालोभचतुष्टयकथनमक्कुमें दोडे शक्तिपधानकथनमप्पुदरिंदमभेदविवयिद फेळल्पद्रुददे तेदोर्ड द्वादशकषायंगलगे देशघातिस्पर्द्धकंगळिल्ल। सर्वमुं सव्वं. घातिस्पर्द्धकंगळेयप्पुवु। संज्वलनकषायचतुष्टयक्का सर्वघातिस्पद्धकंगळं देशघातिस्पर्द्धकंगळु- ५ मप्पुवदु कारणमनंतानुबंधिक्रोधोदयमुळ्ळ जोवनोळु नियमदिमितर क्रोधकषायत्रयोदयमुटु । मत्तमनंतानुबंधिमानोदयमुळ्ळ जीवनोळु नियमदिद मितरमानकषायत्रयोदयमुंदु । मत्तमनंतानुबंधिमायोदयमुळ्ळ जीवनोळु नियमदिदमितरमायाकषायत्रयोदयमुटु । मत्तमनंतानुबंधिलोभोदयमुळ्ळ जोवनोळु नियमदिदमितरलोभकषायत्रयोदयमुटु । अदु कारणदिदमनंतानुबंधिकषायोव्यक्के तु जीवगुण सम्यक्त्वसंयमोभयघातनशक्तिसिद्धमंतितर कषायत्रयोदयक्क मुंटप्पुरिदं । १० मत्तमंते अप्रत्याख्यान क्रोधमानमायालोभोदयंगळुझळ जीवंगळोनियमदिदमितर प्रत्याख्यानसंज्वलनद्वय क्रोधमानमायालोभोदयंगळ क्रमदिनुटेके दोर्ड प्रत्याख्यानक्रोधादिगळुदयंगळ्गे जोवगुणसंयमासंयमघातनशक्तियेता। प्रत्याख्यानसंज्वलनद्वयक्रोधादिकषायोदयंगळ्गमा शक्तियुटप्पु. दरिदं । मत्तमंत प्रत्याख्यानक्रोधमानमायालोभोदयंगळुझळ जोवंगळोळ नियमदिदं संज्वलनक्रोधमानमायालोभोदयंगळं क्रमदिनुटेके दोडे प्रत्याख्यानक्रोधोदयक्के जोवगुण सकलसंयमघातनशक्ति- १५ कषायमार्गणायां क्रोषादीनामनंतानुबंध्यादिभेदेन चतुरात्मकत्वेऽधि जात्याश्रयेणेकत्वमम्युपगतं शक्तिप्राधान्येन भेदस्याविवक्षितत्वात् । तद्यथा-द्वादशकषायाणां स्पर्धकानि सर्वघातीन्येव न देशघातीनि । संज्वलनानामुभयानि तेनानंतानुबंध्यन्यतमोदये इतरेषामुदयोऽस्त्येव तदुदयसहचरितेतरोदयस्यापि सम्यक्त्वसंयमगुणधातकत्वात् । तथा-अप्रत्याख्यानान्यतमोदये प्रत्याख्यानायुदयोऽस्त्येव तदुदयेन समं तवयोदयस्यापि देशसंयमघातकत्वात् तथा प्रत्याख्यानान्यतमोदये संज्वलनोदयोऽस्त्येव प्रत्याख्यानवत्तस्यापि सकलसंयमघातकत्वात् । न २० कषाय मार्गणामें क्रोधादिके अनन्तानुबन्धी आदिके भेदसे यद्यपि चार-चार भेद होते हैं तथापि जातिके आश्रयसे एकपना स्वीकार किया है क्योंकि यहाँ शक्तिकी प्रधानतासे भेदोंकी विवक्षा नहीं है। वही कहते हैं-बारह कषायोंके स्पर्धक सर्वघाती ही होते हैं, देशघाती नहीं। संज्वलनके स्पर्धक देशघाती भी हैं और सर्वघाती भी हैं। अतः अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभमें से किसी एकका उदय होनेपर अप्रत्याख्यान आदि तीनोंका २५ भी उदय है ही, क्योंकि अनन्तानुबन्धीके उदय सहित अन्य कषायोंके उदयके भी सम्यक्त्व और संयमगुणका घातकपना है । इसी प्रकार अप्रत्याख्यान क्रोधादिमें-से किसी एकका उदय होनेपर प्रत्याख्यानादि दोका भी उदय है ही क्योंकि अप्रत्याख्यानके उदयके साथ उन दोनोंका भी उदय देशसंयमको घातता है। तथा प्रत्याख्यान क्रोधादिमें से किसी एकका उदय होनेपर संज्वलनका उदय है ही; क्योंकि प्रत्याख्यान कषायकी तरह संज्वलन कषाय ३० भी सकलसंयमकी घातक है। किन्तु केवल संज्वलन कषायका उदय होनेपर प्रत्याख्यान आदि तीन कषायोंका उदय नहीं है, क्योंकि उनके स्पर्धक सकलसंयम घाती हैं, केवल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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