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गो० कमकाण्डे
उदुगं तेरिच्छे सेसेग अपुण्ण वियलगा य तहा । तित्थूणण रेवि तहाsसण्णी घम्मे य देवदुगे || ५४० ॥
तेजोद्विकं तिरश्चि शेषैका पूर्णविकलाश्च तथा । तीर्थोननरेपि तथाऽसंज्ञो घर्मायां
देवद्विके ॥
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८००
तेजोद्विकं तिरश्चि तेजस्कायिकबादर सूक्ष्मपर्धामार्थ्यामजीवंगळं वायुकायिक बादरसूक्ष्मपर्यामार्थ्याप्तजीवंगळु नियमदद तिर्य्यग्गतियोळे जायंते एंदध्याहारिसल्पडुगुं । जनियिसुवरु | एकेंदोडा जीवंग तद्भवदोलु तिर्घ्यंगायुष्यमनल्लदितरास्त्रितयमं कट्टरेंब नियम टप्पु दरिंद मंतादोडा जीवंगळावर्डयोलावाव तिर्यग्जीवंगळो जनियिसुवरे दोडेरडुवरे द्वीपंगळोळु मुंपेदुत्तममध्यम जघन्यत्रशद् भोगभूमितिर्य्यगर्भजपर्याप्ता पर्याप्तपंचेंद्रियसंज्ञितिर्यग्जीवंगळमं १० मत्तं तिर्यग्भोगावती प्रतिबद्धंगळप्प मुंपेद द्वीपंगळाद गर्भजपर्याप्त पंचेंद्रियसंज्ञिस्थलचरखचरतिग्जीवंगमं बिट्टु अशेषजगत्प्रदेशंगळोळिद्दं पृथ्वी कायिकबादर सूक्ष्मपर्याप्तापय्र्याप्त, अकायिकबादर सूक्ष्मपर्याप्तापय्र्याप्त, तेजस्कायिकबादरपर्याप्तापर्याप्त, सूक्ष्मपर्याप्तापर्याप्त वायुकायिकबादर सूक्ष्मपर्याप्तापर्य्याप्त, साधारण वनस्पतिबादर सूक्ष्मपर्याप्तावप्त, प्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पतिपर्याप्तापर्याप्त अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पतिपर्याप्तापर्य्याप्त, चतुरद्रिये पर्याप्तापर्य्याप्त असंज्ञितिर्य्यग्जीवंगळो यथायोग्यचराचरतिर्य्यग्जीवं गळागि जनियिसुव बुदत्थं । शेषैकेंद्रियापूर्ण विकलाश्च तथा ई पेळल्पट्ट स्थावरतेजस्कायिक वायुकायिकबादर सूक्ष्मपर्याप्त तिर्य्यं केंद्रियजीवंगळल्लद शेषाशेषपर्याप्तपृथ्वी कायिक बादरसूक्ष्म अप्कायिकपर्याप्त२० बादरसूक्ष्म साधारण वनस्पतिनित्यनिगोंद पर्याप्तबादर सूक्ष्मचतुर्गतिनिगोदपर्याप्तबादर सूक्ष्म
१५ द्वींद्रियपर्याप्तापर्याप्त,
चींद्रियपर्याप्ता पर्याप्त,
पंचेंद्रियपर्याप्ता पर्याप्त, संज्ञिपंचेंद्रियपर्याप्तापर्याप्त मेल्लियादोडं स्वस्वोपाज्जित कम्र्मोदय व शदिदं
बादरसूक्ष्मपर्याप्तापर्याप्ततेजोवातकायिकाः नियमेन तिर्यग्गतावेवोत्पद्यते सर्वभोगभूमिजपंचेंद्रिय वर्जित - त्रिलोकोदरवति सर्वबादर सूक्ष्मपर्याप्तापर्याप्त पृथ्व्यप्तेजोवायु साधारणपर्याप्तापर्याप्तप्रतिष्ठिताप्रतिष्ठित प्रत्येकद्वित्रि - चतुः संज्ञासंज्ञिपंचेंद्रियतिर्यगायुषामेव बंघात् । शेषाः बादरसूक्ष्मपर्याप्तापर्याप्त पृथ्व्यप्कायिक नित्यचतुर्गतिनिगोदाः
बादर और सूक्ष्मपर्याप्त अपर्याप्त तेजस्कायिक और वायुकायिक जीव मरकर नियम२५ से तियंचगतिमें ही उत्पन्न होते हैं। क्योंकि उनके सर्वभोगभूमिज पंचेन्द्रियों को छोड़कर सर्व त्रिलोकवर्ती सर्व बादर सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, पृथ्वी, अप, तेज, वायु, साधारण तथा पर्याप्त अपर्याप्त प्रतिष्ठित-अप्रतिष्ठित प्रत्येक, दो-इन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, असंज्ञी और संज्ञी पंचेन्द्रिय, इन सर्व तिर्यंचोंकी ही आयुका बन्ध होता है ! इससे तेजकाय वायुकायके जीव मरकर इन सर्वं प्रकारके पंचेन्द्रिय तियंचों में ही उत्पन्न होते हैं किन्तु भोगभूमिके तिर्यंचों में ३० उत्पन्न नहीं होते ।
१. चतुग्र्ग तिनिगोद ।
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