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________________ ७९० गो० कर्मकाण्डे __संस्थानषट्कदोळं संहननषट्कोळं विहायोगतियग्मदोळं स्थिरशुभ सुभग आदेय यशस्कोतिस्वरनाममेब चरमषड्युग्मंगळोळमविरुद्धकतरप्रकृतिग्रहणदिदं बंधस्थानंगळो भंगंगळप्पुर्व द. क्षसंचारविधानमं कटाक्षिसि स्थानंगळोल भंगंगल्गुत्पत्तिक्रममं पे ब्दपरदेते दोडे : यशस्कीत्ययशस्कोति आदेयानादेय सुस्वरदुस्वर सुभगदुभंग शुभाशुभ स्थिरास्थिर प्रशस्ताप्रशस्त वि संहनन संस्थान ११ ११ | १ onlarlalarlaolali षट स्थानानि षट् संहननानि विहायोगतियुग्मं प्रत्येकस्थिरशुभसुभगादेययशस्कीतियग्मानि चोपर्यपरि नामकमके बन्धस्थानोंका यन्त्र तेईसका स्थान १ उनतीसके स्थान ६ १ दोइन्द्रिय पर्याप्तयुत एकेन्द्रिय अपर्याप्तयुत २ तेइन्द्रिय पर्याप्तयुत पच्चीसके स्थान ६ ३ चौइन्द्रिय पर्याप्तयुत १ एकेन्द्रिय पर्याप्तयुत ४ पंचेन्द्रिय पर्याप्तयुत २ दोइन्द्रिय अपर्याप्तयुत ५ मनुष्य पर्याप्तयुत ३ तेइन्द्रिय अपर्याप्तयुत ६ देवतीर्थयुत ४ चौइन्द्रिय अपर्याप्तयुत तीसके स्थान ६ ५ पंचेन्द्रिय अपर्याप्तयुत १ दोइन्द्रिय पर्याप्त उद्योतयुत ६ मनुष्य अपर्याप्तयुत २ तेइन्द्रिय पर्याप्त उद्योतयुत | ३ चौइन्द्रिय पर्याप्त उद्योतयुत छब्बीसके स्थान २ ४ पंचेन्द्रिय पर्याप्त उद्योतयुत १ एकेन्द्रिय पर्याप्त आतपयुत ५ मनुष्य तीर्थयुत २ एकेन्द्रिय पर्याप्त उद्योतयुत ६ देव आहारकयुत अठाईसके स्थान २ इकतीसका स्थान १ १ देव आहारक तीर्थयुत १ देवगतियुत एकका स्थान १ |२ नरकगतियुत । १ यशस्कीर्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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