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________________ ७५० गो० कर्मकाण्डे बिदिए बिगि पणगयदे खदु णव एक्कं ख अट्ठ चउरो य । छठे चउ सुण्ण सगं पयडिवियप्पा अपुण्णम्मि ॥४९९।। द्वितीये द्वयं क पंचासंयते खद्विनवैकं खाष्टचत्वारि च। षष्ठे चतुः शून्यसप्तप्रकृतिविकल्प अपूर्णे ॥ ५ द्वितीये अपूर्णे क्रियिकमिश्रकाययोगिसासादननोळ अंकक्रमदिदं प्रकृतिविकल्पंगळु द्वयेकपंच द्वादशोतरपंचशतप्रकृतिगळ ५१२ । असंयतेऽपूर्णे वैक्रियिकमिश्र कार्मणकाययोगियोळु द्विनवैक विंशत्युत्तरनवशताधिकसहस्रप्रकृतिविकल्पंगळ १९२० । च शब्ददिदमौदारिकमिश्रा. संयतनोळ, खाष्टचत्वारि अशोत्युत्तर चतुःश रंगळ ४८० । षष्ठे प्रमत्तसंयतनोळ आहारकाहारक मिश्रकाययोंगद्वपदोळ चतुःशून्यसप्त चतुरुत्तरसप्तशतप्रकृतिपिकल्पंगळप्पुवु ७०४ । कूडि नाल्कुं १० स्थानदोछ षोडशोत्तर षट्छताधिकत्रिसहस्रप्रकृतिविकल्पंगळप्पु ३६१६ । ववं कूडिदोडे योगा श्रितमोहनीयोदयसर्वप्रकृतिविकलांग पंचचत्वारिंशदुत्तर षट्छताधिकाष्टाशीतिसहस्रप्रमितंगळप्प ८८६४५ । वो संख्ययुमनाचायं मुंदण गाथा सूत्रदिदं पेळ्दपरु : पणदालछस्सयाहिय अट्ठासीदीसहस्समुदयस्स। पयडीणं परिसंखा जोगं पडि मोहणीयस्स ।।५००। १५ पंचचत्वारिंशत् षट्छताधिकाष्टाशीतिसहस्र मुदयस्य । प्रकृतीनां परिसंख्या योग प्रति मोहनीयस्य ॥ योगमं कर्तुं मोहनीयोदय प्रकृति विकल्पंगळु पंचचत्वारिंशदधिकषट्छताधिकाष्टाशीतिसहस्रप्रमितंगळप्पुर्वेदितु पेळल्पटुवु ॥ सासादने वैक्रियिकमिधे क्रमेण प्रकृतिविकल्पाः द्वचेकपंच ५१२। असंयते वैक्रियिकमिश्रकाभणयोः २० खद्विनवैकं १९२० । चशब्दादौदारिकमिश्रे खाष्टचत्वारि ४८० । प्रमत्त आहारकद्वये चतुःशन्यसप्त ७०४ चकीकृत्य निक्षिप्तेषु ___ योगाश्रितमोहनीयोदयप्रकृतिविकल्पाः पंचचत्वारिंशदग्रषट्छताधिकाष्टाशीतिसहस्राणि ८८६४५ ॥५०॥ भंगोंसे गुणा करनेपर जो प्रमाण हो, उसमें अनिवृत्तिकरणके सवेद-अवेद भाग तथा सूक्ष्म२५ साम्परायकी दो सौ इकसठ प्रकृति मिलानेपर पिचासी हजार उन्तीस होती हैं ॥४९८॥ इसी बातको ग्रन्थकार आगे स्वयं कहते हैं सासादनके वैक्रियिक मिश्रमें प्रकृति विकल्प पाँच सौ बारह हैं। असंयत में वैक्रियिक मिश्र और कार्माणके प्रकृति विकल्प उन्नीस सौ बीस हैं। 'च' शब्दसे औदारिक मिश्रमें चार सौ अस्सी हैं । प्रमत्तमें आहारक-आहारक मिश्रमें सात सौ चार हैं। इन्हें ३० एक करके मिलानेपर-॥४९९।। योगके आश्रयसे मोहनीयके सब उदय प्रकृतियोंके भेद अठासी हजार छह सौ पैंतालीस होते हैं ॥५००॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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