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गो० कर्मकाण्डे योगदोळष्टवर्गमात्रस्थानविकल्पंगळप्पुवु । ६४ ॥ प्रमत्तसंयतनाहारकयोगद्वयवोळष्टाविंशतिशतस्थानंगळप्पुवु । १२८॥ ई स्थानंगळं प्रकृतिगळ्गमुपपत्तियं पेन्दपरु :--
णत्थि णउसयवेदो इत्थीवेदो णउंसइत्थिदुगे ।
पुव्वुत्तपुण्णजोगगचउसु ठाणेसु जाणेज्जो ॥४९७॥ नास्ति नपुंसकवेवः स्त्रीवेदो नपुंसकस्त्रियो द्वये। पूर्वोक्ताऽपूर्णयोगगतचतुर्षु स्थानेषु ज्ञातव्यः॥ ____ पूर्वोक्ताऽपूर्णयोगगचतुर्दा स्थानेषु पेरगण सूत्रदोळु पेळल्पट्ट सासा वनासंयतप्रमत्तरुगळ
अपर्याप्तयोगगतचतुःस्थानयोगंगळोळ क्रमदिदं मोदल सासादनवैक्रियिकमिश्रकाययोगदोळु नास्ति १. नपंसकवेवः नपुंसकवेदोदयमिल्लेके दोर्ड-"णिरयं सासणसम्मो ण गच्छवित्ति" एंबु सासादनसम्यग्दृष्टि नरकदोळु पुट्टनरिदं २ असंयतन वैक्रियिकमिश्रकार्मणयोगद्वयवोल स्त्रीवेदो
२०२ ०११
४।४।४।४ नास्ति स्त्रीवेदोदयमिल्लेके दोडे असंयतसम्यग्दृष्टि तिर्यग्मनुष्यदेवगतिगळोळ पुरुषनागि पुटुगुमप्पुरिदं । घम्योछु नपुंसकनुमागि पुटुगुमप्पुरिदं २ मत्तमसंयतनौवारिकमिश्र
२।२ १०१
३३३३ काययोगदोळं प्रमत्तसंयतनाहारकयोगद्वयदोळमंतु द्वये येरडेडयोळं नपुंसकस्त्रियो न भवतः नपुंसक १५ वेदमुं स्त्रीवेदमुमिल्ले दु ज्ञातव्यः अरियल्पडुगुमे ते दोडसंयतं तिग्मनुष्यरोळ पुरुषनागि पुटुगुम.
शती । कुतः ? स्त्रीषंढवजिततत्कूटजाताष्टस्थानचतुश्चत्वारिंशत्प्रकृतीनां-। ५ । ४ । अष्टभंगर्योग
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| २४३ युग्मेन च गुणितत्वात् ॥४१६॥ अथ तमपनीतवेदं स्वयं निषेषयति
पूर्वोक्तापूर्णयोगगतचतुःस्थानेषु प्रथमे सासादने वैक्रियिकमिश्रकाययोगे नपुंसकवेदोदयो नास्ति;
प्रमत्तसंयतके आहारक-आहारक मिश्ररूप दो योगोंमें भी स्त्री नपुंसक वेदरहित २० आठ कूटोंके आठ स्थान और चवालीस प्रकृतियोंको आठ भंगोंसे और दो योगोंसे गुणा करनेपर एक सौ अठाईस स्थान और सात सौ चार प्रकृतियाँ होती हैं ।।४९६।।
आगे उन घटाये गये वेदोंको ग्रन्थकार स्वयं कहते हैं
पूर्वोक्त अपर्याप्त योगगत चार स्थानों में से प्रथम सासादनमें वैक्रियिक मिश्रकाय योगमें नपंसक वेदका उदय नहीं है। क्योंकि सासादन मरकर नरकमें उत्पन्न नहीं होता। २५ असंयतमें वैक्रियिक मिश्र और कामण योगमें स्त्रीवेदका उदय नहीं है, क्योंकि असंयत
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