SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७४२ गो० कर्मकाण्डे ४।१०। ३२। १०। चत्वारिंशत्स्थानंगळं ४० । विंशत्युत्तरत्रिशतप्रकृतिगठ मप्पु ३२०। वेकें दोडे अनंतानुबंधिकषायोदयरहितमिथ्यादृष्टिगंतम्र्मुहूत्र्तकालपर्यतं मरणमिल्लप्पुरिदेमपर्याप्तयोगंगळ, संभविसुवप्पुरिदं । अंतु सिथ्यादृष्टियोळभयस्थानंगळु द्वानवतिप्रमितंगळप्पुवु ९२ । प्रकृतिगळ मष्टाशोत्युत्तरसप्तशतप्रमितंगळप्पुवु ७८८ ॥ चतुःकषायत्रिवेदद्विकद्वयभेददिवं चतु५ विशतिगुणकारंगळप्पुवु २४ ॥ अनंतर सासादनासंयतप्रमत्तगुणस्थानत्रयो मिश्रयोगंगळोळु विशेषमं गाथाद्वदिवं पेदपरु: सासण अयदपमत्ते वेगुम्वियमिस्स तच्च कम्मइयं । ओरालमिस्सहारे अडसोलडवग्ग अट्ठवीससयं ॥४९६॥ ____सासादनासंयतप्रमत्तेषु वैक्रियिकमिश्रं तच्च काम्म॑णं औदारिकमिश्रे आहारे अष्ट षोडशा. __ष्टवर्गाष्टाविंशतिशतं ॥ । ४ । नवभिर्गुणिताः षट्त्रिंशदशोत्यग्रशतं । एतावत्पयतं सर्वत्र स्थानप्रकृतोनां गुणकारश्वतुर्विंशतिः । । २० अनिवृत्तिकरणसवेदभागे | १ नवभिर्गुणिता नवाष्टादश । गुणकारो द्वादश । अवेदभागे । १। तथा नव नव गुणकारश्चत्वारः । सूक्ष्मसांपरायेऽपि | १ तथा नव नव गुणकार एकः ॥४९१॥ अथापनोतयोगानां विशेष गाथाद्वयेनाह प्रमत्त और अप्रमत्तमें स्थान आठ, प्रकृति ७+६+६+५ % २४।६+५+५+ ४ = २०। चवालीस स । आहारकाद्वंकका कथन पृथक करंगे इसलिए नौ योगोंसे गुणा करनेपर प्रत्येकमें बहत्तर स्थान और तीन सौ छियानबे प्रकृतियां हैं। ___ अपूर्वकरणमें चार स्थान और प्रकृति ६+५+५+४= बीस हैं । उनको नौ योगोंसे गुणा करनेपर छत्तीस स्थान और एक सौ अस्सी प्रकृति हैं। यहाँ तक इन स्थानों और . प्रकृतियोंको चौबीस भंगोंसे गुणा करें। __ अनिवृत्तिकरणके सवेद भागमें एक स्थान और दो प्रकृति । इनको नौ योगोंसे गुणा करनेपर नौ स्थान और अठारह प्रकृति होती हैं। इनको बारह भंगोंसे गुणा करें। और अवेद भागमें एक स्थान एक प्रकृति । इन को नौ योगोंसे गुणा करनेपर नौ स्थान नौ प्रकृति होते हैं। इनको चार भंगोंसे गुणा करें। सूक्ष्मसाम्परायमें एक स्थान एक प्रकृति, इनको नौ योगोंसे गुणा करनेपर नौ स्थान नौ प्रकृति होती हैं । इनको एक भंगसे गुणा करें ॥४९५।। आगे पृथक् रखे योगोंका कथन दो गाथाओंसे करते हैं१. अण संजोजिदसम्मे मिच्छं संते ण आवलित्ति अणं । अण संजोजिद मिच्छे मुहुत्त अंतेत्ति णत्थि मरणं तु १० । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy