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________________ गो० कर्मकाण्डे यको वर्णविकारस्तद्वर्णनाम । तत्पंचविधं कृष्णवर्णनाम नीलवर्णनाम रक्तवर्णनाम हारिद्रवर्णना शुक्लवर्णनाम चेति || यहुदयात्प्रभवो गंधस्तद्गंधना । तद् द्विविधं सुरभिगंधनाम असुरभिगन्धनाम वेति ॥ यन्निमित्तो रसविकल्पस्तद्रसनाम । तत्पंचविधं तिक्तनाम कटुकनाम कानाम अम्लनाम मधुरनाम चेति । यस्योदयात् स्पर्शप्रादुर्भावस्तत्स्पर्शनाम । तदष्टविधं ५ कर्कशनाम नाम गुरुनाम लघुनाम शीतनाम उष्णनाम स्निग्धनाम रूक्षनाम चेति ॥ पूर्वशरीराकाराविनाशो यस्योदयाद्भवति तदानुपूर्व्यनाम तच्चतुव्विधं नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्च्छनाम तिर्य्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्व्यनाम मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्व्यनाम देवगतिप्रायोग्यानुपूर्व्यनाम चेति । ३० योदयादयस्पिण्डवद्गुरुत्वान्न च पतति न चाकर्कतूलवल्लघुत्वादृध्वं गच्छति तदगुरुलघुनाम । उपेत्य घात इत्युपघातः आत्मघात इत्यर्थः । यस्योदयादात्मघातावयवा महाशृंगलंबस्तनतुंदो१० दरादयो भवन्ति तदुपघातनाम । परेषां घातः परघातः । यदुदयात्तीक्ष्णश्रृंगनख सपंदाढादयो भवन्त्यव्यवास्तत्परघातनाम । यद्धेतुरुच्छ्वासस्तदुच्छ्वासनाम । यदुदधान्निर्वृत्तमातपनं तदातप तुको वर्णविकारः तद्वर्णनाम । ततञ्चविधं - कृष्णवर्णनाम नीलवर्णनाम रक्तवर्णनाम हरिद्रवर्णनाम शुक्लवर्णनाम चेति । यदुदयात्प्रभवो गन्धः तद्गन्वनाम । तद्द्विविधं सुरभिगन्धनाम असुरभिगन्धनाम चेति । यन्निमित्तो रसविकल्पः तद्रसनाम । तलञ्चविधं तिक्तनाम - कटुकनाम - कषायनाम आम्लनाम मधुरनाम १५ चेति । यस्योदयात्स्पर्शप्रादुर्भावः तत्स्पर्शनाम । तदष्टविधं — कर्कशनाम मृदुनाम गुरुनाम लघुनाम शीतनाम उष्णनाम स्निग्धनाम रूक्षनाम चेति । पूर्वशरीराकाराविनाशो यस्योदयाद्भवति तदानुपूर्व्यनाम । तच्चतुर्विधं नरकगतिप्रयोग्यानुपूर्व्यनाम तिर्यग्गतिप्रायोग्यःनु नाम मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्व्यनाम देवगतिप्रायोग्यानुपूर्व्यं नाम चेति । यस्योदयादयःपिण्डवत् गुरुत्वान्न च पतति न चार्कतूलवत् लघुत्वाद्दूर्ध्वम् गच्छति तदगुरुलघुनाम । २० उपेत्य घात इत्युपघात आत्मघात इत्यर्थः । यस्योदयादात्मघातावयवाः महाशृङ्गलम्बस्तन तुम्दोदरादयो भवन्ति तदुपत्रातनाम । परेषां घातः परघातः यदुदयात्तीक्ष्णेश्टङ्गनखसर्पदाढादयो भवन्ति अवयवा तत्पर घातनाम | जिसके निमित्त से शरीर में वर्णविकार होता है वह वर्णनाम है । वह पाँच प्रकार हैकृष्णवर्णनाम, नीलवर्णनाम, रक्तवर्णनाम, हरितवर्णनाम और शुक्लवर्णनाम । जिसके २५ उदयसे गन्ध हो वह गन्धनाम है । उसके दो भेद हैं-सुगन्ध और दुर्गन्ध । जिसके निमित्तसे रस हो वह रसनाम है । उसके पाँच भेद हैं- तिक्त नाम, कटुक नाम, कपाय नाम, आम्लनाम, मधुरनाम । जिसके उदयसे स्पर्श हो वह स्पर्शनाम है । उसके आठ भेद हैंकर्कशनाम, मृदुनाम, गुरुनाम, लघुनाम, शीतनाम, उष्णनाम, स्निग्धनाम, रूक्षनाम । पूर्वशरीर के आकारका अविनाश जिसके उदयसे होता है वह आनुपूर्व्य नाम है। उसके चार ३० भेद हैं- नरकगति प्रायोग्यानुपूर्व्यनाम, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्व्यनाम, मनुष्यगति प्रायोग्या नुपूर्व्यनाम, देवगतिप्रायोग्यानुपूर्व्य नाम । जिसके उदयसे शरीर न तो लोहेकी पिण्डीकी तरह भारी होनेसे नीचे गिरे और न आककी रुई की तरह हल्का होनेसे ऊपर उड़े वह अगुरुलघुनाम है । उपतकर घातको उपघात अर्थात् आत्मघात कहते हैं। जिसके उदयसे आत्मघात करनेवाले अवयव यथा बड़े-बड़े सींग, लम्बे स्तन, पेट आदि होते हैं वह उपघात नाम है । परके घातकौ परघात कहते हैं । बड़ा जिसके उदयसे तीक्ष्ण सींग, नख, दाढ़ आदि अवयव होते हैं वह परघात नाम है। जिसके ३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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