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________________ ५ ० १५ २० ६४६ गो० कर्मकाण्डे श्रेष्ठरपिणंदभट्टारक पार्श्वदोलु सकलसिद्धांतमं केल्डु श्रीकनकनंदिसिद्धांत चक्रवत्तिगदिं सत्वस्थानं सम्यक्कागि पेळपट्टुवु ॥ जह चक्केण य चक्की छक्खंड साहियं अविग्घेण । तह मइचक्केण मया छक्खंड साहियं सम्मं ॥ ३९७|| यथा चक्रेण चक्रिणा षट्खंडं साधितं अविघ्नेन । तथा मतिचक्रेण मया षट्खण्डं साधितं सम्यक् ॥ ३० एंतीगळु चक्रदिदं चक्रवर्त्तियि षट्खंडक्षेत्रमविघ्नदिदं साधिसल्पदुदंत मतिचक्रदिदमम्मि जीवस्थानक्षुद्रकबंध | बंधस्वामित्व | वेदनाखंड | वर्गणाखंड | महाबंधर्म व षट्खंडं सिद्धांतशास्त्र सम्यग्विध्नरहित मागि साधिसल्पदुदु ॥ इंतु भगवदर्हत्परमेश्वरचा रुचरणारविंदद्वंद्ववंदनानंदितपुण्य पुंजायमान श्रीमद्राय राजगुरुमंडलाचा महावाद वाढीश्वरराय वादीपितामहसकलविद्वज्जनचक्रवति श्रीमदभयसूरि सिद्धांतचक्रवत श्रीपादपंकजर जोरंजितललाटपट्ट श्रीमत्केशवण्ण विरचित गोम्मटसारकनवृत्ति जीव प्रदीपको कर्मकांडदोळु कनकनंदिषट्त्रिंशत् गाथा गुणस्थानप्रकृति सत्वस्थानभंगस्वरूपनिरूपण महाधिकारं निरूपितमादुदु ॥ सूरिमतल्लिकाश्री मदिद्रनंदिभट्टारकपार्श्वे सकल सिद्धांतं श्रुत्वा श्रीकनकनंदिसिद्धांतचक्रवतिभिः सत्वस्थानं सम्यक् प्ररूपितं ॥ ३९६ ॥ यथा चक्रेण चक्रवर्तिना षट्खण्डक्षेत्रमविघ्नेन साधितं तथा मतिचक्रेण मया जीवस्थानक्षुद्रकबंधबंधस्वामित्ववेदनाखंड वर्गणाखंडम हा बंघभेदषट्खंड सिद्धांतशास्त्रं सम्यक् साधितं ॥ ३९७॥ इत्याचार्यश्रीनेमिचंद्रविरचितायां गोम्मटसारापरनामपंचसंग्रहवृत्ती जीवतत्त्वप्रदीपिकाख्यायां कर्मकांडे कनकनंदिकृत सस्वस्थानभंगप्ररूपणो नाम तृतीयोऽधिकारः ||३|| आचार्यश्रेष्ठ श्री इन्द्रनन्दि भट्टारकके पास सकल सिद्धान्तको सुनकर श्री कनकनन्दि सिद्धान्त चक्रवर्तीके द्वारा सत्त्व स्थान सम्यक्रूपसे कहा गया || ३९६|| जैसे चक्रवर्ती चक्र के द्वारा छह खण्डोंको बिना विघ्नबाधाके साधता है । उसी प्रकार मैंने मतिरूपी चक्र के द्वारा जीवस्थान क्षुद्रकबन्ध, बन्ध स्वामित्व, वेदनाखण्ड, वर्गणाखण्ड २५ और महाबन्धके भेद से पट्खण्ड रूप सिद्धान्त शास्त्रको सम्यक् रूपसे साधा है || ३९७|| इस प्रकार आचार्य श्री नेमिचन्द्र विरचित गोम्मटसार अपर नाम पंचसंग्रहको भगवान् अर्हन्त देव परमेश्वरके सुन्दर चरणकमलोंकी वन्दनासे प्राप्त पुण्यके पुंजस्वरूप राजगुरु मण्डलाचार्य महावादी श्री अभयसूरि सिद्धान्तचक्रवर्तीके चरणकमलों की धूलिसे शोभित ललाटवाले श्री केशववर्णीके द्वारा रचित गोम्मटसार कर्णाटवृत्ति जीवतस्व प्रदीपिकाको अनुसारिणी संस्कृतटीका तथा उसकी अनुसारिणी पं. टोडरमल रचित सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका नामक भाषाटीकाकी अनुसारिणी हिन्दी भाषा टीकामें कनकनन्दि आचार्यकृत सरवस्थान भंग प्ररूपण नामक तीसरा अधिकार सम्पूर्ण हुआ ॥॥३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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