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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ब१४१ अ १४० मिश्र चतुर्थबध्यमानायुःसत्वस्थानदोळु तीर्थमितरायुद्वितयमुमाहारकचतुष्टयमुमनंतानुबंधिचतुष्टयमुमंतु पन्नों, प्रकृतिसत्वरहितमागि नूरमूवत्तेनु प्रकृतिसत्वस्थानमक्कुं। भंगंगळुमपुनरुक्तंगळुमय्दप्पुवल्लि अबद्धायुः-सत्वस्थानदोळ तीत्थंभुमितरायुस्त्रयमुमाहारकचतुष्टयमुमनंतानुबंधिचतुष्टयमुमंतु द्वादश प्रकृतिसत्वरहितमागि नूर मूवत्तारु प्रकृतिसत्वस्थानदोळु गतिचतुष्टय भेदविदं नाल्कुंभंगंगळप्पुवु । संदृष्टि : |ब १३७ अ१३६ १० ई मिश्रनोळनंतानुबंधिसत्वरहितत्वमे ते दोडे असंयतादि नाल्कुं गुणस्थानतिगळ अनंतानुबंधिकषायचतुष्टयमं करणत्रयकरणपूर्वकं विसंयोजनम माडिदवर्गळ दर्शनमोहनीयमं क्षपि. मिसलभिमुखरल्लरवर्गळु संक्लिष्टपरिणामदिदं सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृत्युददिदं मिश्रगुणस्थानमं पोहियल्लियुमनंतानुबंधिकषायचतुष्टयं सासादननोळ बंधव्युच्छित्तिगठादुवप्पुरिंदमनंतानुबंधिरहितत्वं मिश्रनोळरियल्पडुगुं। इंतु सासावन मिश्ररुगळ्गे सत्वस्थानंगळ भेदंगळुमनवर भंगंगळुमं पेन्दनंतरं असंयतगुण. स्थानबोळ मुंपेळ्ब नाल्वत्तुं स्थानंगळगुपपत्तियमनवर भंगंगळु नूरिप्पतक्कं. गाथाषट्कदिदं पेळवपर: दुग छक्क सत्त अळं णवरहियं तह य चउपडि किच्चा । णममिगि चउ पणहीणं बद्धस्सियरस्स एगूणं ॥३७६।। द्विकषट्कसप्ताष्टौ नवरहितं तथा च चतुः प्रति कृत्वा । नभ एक चतुः पंचहीनं बद्धस्येतरस्यैकोन॥ परिणामेन सम्यमिथ्यात्वोदयात्तत्र गमनात् । तदधस्य सासादने एव च्छेदात् ।। ३७५ ॥ अथासंयतोक्तचत्वारिंशस्थानानामुत्पत्ति तद्विशत्युत्तरशतभंगांश्च गाथाषट्केनाहउसके अनन्तानुबन्धीका सत्त्व नहीं होता। नवीनबन्ध हो तो सत्त्व हो, किन्तु नवीनबन्धकी २० व्युच्छित्ति तो सासादनमें ही हो जाती है ॥३७५॥ ___ आगे असंयत गुणस्थानमें कहे चालीस स्थानोंकी उत्पत्ति और उनके एक सौ बीस भंगोंको छह गाथाओंसे कहते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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