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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
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सम्यक्त्वप्रकृतियुं मिश्रप्रकृतियुं देवद्विकमुं नारकषट्कमुमंतु सप्तदश प्रकृतिसत्वरहितभागि नूरमूव - तो प्रकृतिसत्वस्थानदोळु भुज्यमानतिथ्यंचं बध्यमानतिर्य्यगायुष्यं भुज्यमानतिथ्यंचं बध्यमानमनुष्यायुष्य व भंगद्वपदोळ पुनरुक्तभंग मनोदं कळें दोडोदे भंगमक्कुमल्लि अबद्धायुष्यनं कुरुतं भुज्यमानतिर्य्यगायुष्य मल्लदितरमनुष्यायुष्यं देवायुष्यं नारकायुष्यमाहारकचतुष्टयं तीत्थं सम्यक्वप्रकृति मिश्रप्रकृति सुरद्विक नारकषट्कमुमंतष्टादश प्रकृतिसत्वरहितमागि नूरमृवत्तु प्रकृतिसत्वस्थानमक्कुमल्लि:--
नारकछक्कुब्वेल्ले आउगबंधुज्झिदे दुभंगा है |
इगिविगले सिगिभंगो तम्मि णरे विदियमुप्पण्णे ॥ ३७० ॥
नारकषट्कमनुद्रेलनमं माडिदेकेंद्रिय विकलत्रयजी बंगबंद्वायुष्यंगेरडु भंगंगळप्पुर्वते दोर्ड-एक विकलत्रयद स्वस्थानदोळोदु भंगमक्कुमा जीवमनुष्यायुष्यमं कट्टि मनुष्यरोळ बंदु पुट्टि १० तद्भवप्रथम कालदो तावन्मात्र प्रकृतिसत्वनप्पुदरिदमुं मनुष्यायुष्यप्रकृति भेददिदमुं द्वितीय भंगमक्कुं । संदृष्टि-
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अष्टमे बध्यमानायुः स्थाने नारकषट्के उद्वेल्लिते एकेंद्रिय विकलत्रयजीवस्य भुज्यमानतिर्यग्बध्यमानमनुव्यायुर्म्यामितरसुरनार कायुराहारकचतुष्कतीर्थ सम्यक्त्व मिश्र देव द्विकनारकषट्काभावादेकत्रिंशच्छत के भंगः भुज्य - १५ मानबध्यमान तिर्यगायुष्कभुज्यमानतिर्यग्वध्यमानमनुष्यायुष्कश्चेति भंगद्वये पुनरुक्तमेकं त्यक्त्वैकः ॥ ३६८-३६९॥
हुआ । वहाँ सुरषट्कका बन्ध होनेपर पूर्वोक्त नौ और भुज्यमान मनुष्यायु बिना तीन आयु, इस प्रकार बारह बिना एक सौ छत्तीसका सत्त्व होता है। यह चौथा भंग है । इस प्रकार चार भंग हुए । यहाँ सब भंगोंमें संख्या १३६ समान है अतः स्थान एक ही कहा है । और प्रकृति बदलने से चार प्रकार पाये जाते हैं अतः भंग चार कहे हैं ।
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आठवाँ अबद्धायुस्थान एक सौ तीस प्रकृतिरूप है । उसमें दो भंग हैं । नारकषट्ककी खेलना किये एकेन्द्रिय विकलेन्द्रिय जीवके तिर्यचायु बिना तीन आयु तथा आहारक चतुष्क
आठवाँ बद्धास्थान नारकषट्ककी द्वेलना होनेपर एकेन्द्रिय या विकलेन्द्रिय उजीवके होता है । सो भुज्यमान तियंचायु बध्यमान मनुष्यायु बिना देव नरक दो आयु, आहारक चतुष्क, तीर्थंकर, सम्यक्त्वमोहनीय, मिश्रमोहनीय, देवगति, देवानुपूर्वी, नरकगति, नरकानुपूर्वी, वैक्रियिक शरीर अंगोपांग, बन्धन संघात ये नारकषटूक, इन सतरह बिना एक सौ इकतीस प्रकृतिरूप जानना । वहाँ भंग दो भुज्यमान तिर्यंचायु बध्यमान तियंचायु, भुज्यमान २५ तिर्यंचायु बध्यमान मनुष्यायु । इनमें से भुज्यमान तिर्यंच बध्यमान तियंच पुनरुक्त है । अतः एक ही भंग है || ३६८-३६९॥
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