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________________ ६०६ गो० कर्मकाण्ड ई द्वादश भंगंगळोलु भुज्यमानतिर्यगायुष्यमुं बध्यमानतिर्यगायुष्यभंगमुं भुज्यमानमनुष्यायुष्यं बध्यमानमनुष्यायुष्यभंगमुमिवरडुं पुनरुक्तभंगंगळु । भुज्यमानतियंचं बध्यमान. नरकायुष्य- १। भुज्यमानमनुष्यं बध्यमाननरकायुष्यनुं १ । भुज्यमानमनुष्यं बध्यमानतिर्यगा. युष्यनु १। भुज्यमानदेवं बध्यमानतिर्यगायुष्यनुं १। भुज्यमानदेवं बध्यमानमनुष्यायुष्यनु १ ५ मितय्, भंगंगळु समंगळु। पुनरुक्तसमविहीनंगळ भंगंगळप्पुरिदं शेषभुज्यमाननारकं बध्यमानतिप्यंगायुष्यनु १। भुज्यमाननारकं बध्यमानमनुष्यायुष्यनु १। भुज्यमानतिय्यंच बध्य. मानमनुष्यायुष्यनु १। भुज्यमानतिय्यंचं बध्यमानदेवायुष्यनु १। भुज्यमानमनुष्यं बध्यमानदेवायुष्यनु १ मेंबय्दु ५ भंगंगळ्गे ग्रहणमक्कुं। संदृष्टिः बध्यमान तिमम दे भुज्यमान ना नाति तिम बध्यमा. ति म नाति म दे ना तिमदेति भुज्यमा. ना ना ति ति ति ति म म म म । एतेषु भुज्यमानबध्यमानतिर्यगायुर्भुज्यमानबध्यमानमनुष्यायुषोः पुनरुक्तत्वात् भुज्यमानतियंग्बध्यमान१० नरकायुः १-भुज्यमानमनुष्यबध्यमाननरकायुः २-भुज्यमानमनुष्यबध्यमानतिर्यगायुः ३-भुज्यमानदेवबध्यमानतिर्यगायुः ४-भुज्यमानदेवबध्यमानमनुष्यायुषां समत्वाच्च शेषा: पंचैव ग्राह्याः । संदष्टि: | बध्य ति मम दे दे | इस प्रकार बारह भंग होते हैं । इनमें-से भुज्यमान तियंचायु बध्यमान तिथंचायु तथा भुज्यमान मनुष्यायु बध्यमान मनुष्यायु ये दो भंग पुनरुक्त हैं क्योंकि दोनों भंगोंमें भुज्यमान और बध्यमान प्रकृति एक-सी है। शेष दशमें-से भुज्यमान तियंचायु बध्यमान नरकाय १५ और मुज्यमान नरकायु बध्यमान तियंचायु ये दो भंग समान हैं क्योंकि दोनों में ही नरकायु और तिर्यंचायुकी सत्ता है। इसलिए दोनों में से एक ही भंग लेना। इसी प्रकार मुज्यमान मनुष्यायु बध्यमान नरकायु और भुज्यमान नरकायु बध्यमान मनुष्यायु ,इन दो भंगोंमें समानता है। भुज्यमान मनुष्यायु बध्यमान तिर्यंचायु और मुज्यमान तियचायु बध्यमान मनुष्यायु इनमें भी समानता है। मुज्यमान देवायु बध्यमान तिथंचायु और भुज्यमान २० तिर्यंचायु बध्यमान देवायुमें समानता है, मुज्यमान देवायु बध्यमान मनुष्यायु और मुज्यमान मनुष्यायु बध्यमान देवायुमें समानता है। अतः एक एक ही भंग गिननेसे पाँच भंग जानना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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