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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ए। द्वि। त्रि। च । पृ। अ।व। योग्य १४५ __० ० ० ० ० स्वस्थान आ६ सं१ मि १ मि १ सु २ नार ४ उत्पन्न ॥ .४५ १४३ १४२ १४२ १४१ १३९ १३५ । १३३ | १३४ | तेजो द्विक योग्य १४४ _ - * अ २. सं १ मि ? सु २ ना ४ उ १ म २ १४४ १४२ | १४१ १४०/१३८ १३४ | १३३ १३१ अनंतरं योगमार्गयोळ सत्वप्रकृतिगळं पेळ्दपरु : पुण्णेक्कारसजोगे साहारय मिस्सगे वि सगुणोघं । वेगुम्वियमिस्सेवि य णवरि ण माणुस तिरिक्खाऊ ॥३५२।। पूर्णैकादशयोगेष्वाहारकमिश्रकेऽपि स्वगुणौधः वैक्रियिकमिश्रेऽपि च नवीनं न मानुषतिर्यगायुषी॥ पूर्णैकादशयोगेषु नाल्कु मनोयोगंग नाल्कु वाग्योगंगळु मौदारिक वैक्रियिकाहारकमुब पर्याप्तकादश योगंगळोळमाहारकमिश्रकाययोगदोळं स्वगुणौवमक्कुमल्लि मनोवागौदारिकमें बों. भत्तुं योगंगळोळु सत्वप्रकृतिगळु नूरनाल्वत्तटु १४८ गुणस्थानंगळं मिथ्यादृष्टिमोदलागि पदिमुरुं गुणस्थानंगळप्पुवु । संदृष्टि :उच्चैर्गोत्रे उद्वेल्लिते त्रयस्त्रिशच्छतं । पुनः नरकद्विके मनुष्यद्विके (?) उद्बोल्लते एकत्रिशच्छतं इदमंत्यसव्वद्वयं १० उत्पन्नस्थानेऽप्येकेंद्रियादिसप्तस्वप्यस्ति ॥३५१॥ अथ योगमार्गणायामाह पूर्ण कादशयोगेषु चतुर्मनश्चतुर्वागौदारिकवैक्रियिकाहारकयोगेषु आहारकमिश्रे च स्वगुणौषः इत्याद्येषु नवसु सत्त्वमष्टचत्वारिंशच्छतं । गुणस्थानानानि त्रयोदश । तस्य संदृष्टिः और मनुष्य द्विककी उद्वेलना होनेपर एक सौ इकतीसका सत्त्व होता है। ये अन्तके दोनों सत्त्व एक सौ तैतीस और एक सौ इकतीस उत्पन्न स्थानमें एकेन्द्रिय, दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, १५ चौइन्द्रिय, पृथ्वी, अप , वनस्पतिकायमें भी होते हैं। विशेषार्थ-ऊपर दो सत्त्व कहे हैं-स्वस्थान सत्त्व और उत्पन्न स्थानमें सत्त्व । विवलित पर्यायमें उद्रेलनाके बिना या उद्वेलना होनेसे जो सत्त्व होता है वह स्वस्थान सत्त्व है। और उस सत्त्वके साथ आगामी पर्यायमें जो उत्पत्ति होती है वहाँ उस सत्त्वको उत्पन्न स्थानमें सत्त्व कहते हैं। आगे योग मागणामें कहते हैं चार मनोयोग, चार वचनयोग, औदारिक वैक्रियिक आहारक इन ग्यारह पूर्णयोगमें तथा आहारकमिश्रमें अपने-अपने गुणस्थानोंकी तरह जानना। इनमेंसे आदिके नौ योगोंमें सत्त्व एक सौ अड़तालीस है और गुणस्थान बारह अथवा तेरह होते हैं। उसकी रचना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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