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________________ ४९८ गो० कर्मकाण्डे वैक्रियिकवन्मिने वैक्रियिककाययोगदोळेतते वैक्रियिकमिश्रकाययोगदोळमेण्भत्तारप्युववरोळु मिश्रप्रकृतियु१। परघातद्विक, २। स्वरद्विक, २। विहायोगतिद्विक, २। मितेलं प्रकृतिगळ न नास्ति यिल्लदु कारणमागियवं कळेयुत्तिरलु येप्पत्तों भत्तु प्रकृतिगळुदययोग्यंगळप्पु ७९ वल्लि मिथ्यादृष्टियोळ मिथ्यात्वप्रकृतियों दे व्युच्छित्तियक्कुं १॥ सासादने सासादननोळ, ५ हुंडसंस्थानमु षंडवेदमु दुभंगत्रयमु३ नरकगतियु१ नरकायुष्यमु१ नोचैग्र्गोत्रमु१ । मिते टुं प्रकृतिगळुदयमिल्लेक दोडे: णिरयं सासणसम्मो ण गच्छदित्ति य यब नियममुंटप्पुदरिनी वैक्रियिकमिश्रकाययोगिनारकं सासादननिल्लप्पुरिदमवनातनोळनदयंगळं माडि यसंयतनोळ कूडुवुदु मत्तमसंयतनुदय प्रकृतिगळोळु स्त्रीवेदमुं कळेदु सासादननोदयव्युच्छित्तियं माडुत्तं विरलु सासादननोळनंतानुबंधि १० चतुष्टयमु स्त्रीवेदमं मितय्दुं प्रकृतिगळुदयव्युच्छित्तियक्कुं ५। असंयतनोळ द्वितीयकषायच तुष्कमु४। वैक्रियिकद्विकमु२। नरकगतियु १ नरकायुष्यमु१। देवगतियुं १ देवायुष्यमु१। दुभंगत्रयमु३। मितु पदिमूरु प्रकृतिगळगुदयव्युच्छित्तियक्कु १३। मंतागुतं विरलु मिथ्यादृष्टिगुणस्थानदोळ सम्यक्त्वप्रकृतिगनुदयमकुं १। उदयप्रकृतिगळेपत्तेटु ७८ । सासादनगुण स्थानदोळो दुगूडियनुदयंगळेरडु २। मत्तंमु पेळ्द हुंडसंस्थानाद्यष्टप्रकृतिगळनुदयदोळ कळेदनु१५ दयदोळ कुडुत्तं विरलनुदयंगळु पत्तु १०। उदयंगळरवत्तों भत ६९ ॥ असंयतगुणस्थानदो वैक्रियिकयोगवत्तन्मिश्रयोगे इति षडशोत्यां मिश्रं परघातद्विक स्वरद्विकं विहायोगतिद्विकं चेत्येकोनाशीतिरुदययोग्याः ७९ । तत्र मिथ्यादृष्टी मिथ्यात्वं व्युच्छित्तिः। सासादने नरकगमनाभावात् हुंडसंस्थानपंढवेददुर्भगत्रयनरकगतिनरकायुर्नीचर्गोत्राण्यनुदयं कृत्वा असंयते निक्षिप्य असंयतोदयाच्च स्त्रीवेदमनंतानुबंधिचतुष्क च व्युच्छित्ति कुर्यात् ५। असंयते द्वितीयकषायचतुष्कं वैक्रियिकद्विकं देवनारकगती तदायुषो दुभंगत्रयं चेति २० त्रयोदश । तथासति मिथ्यादृष्टावनुदयः सम्यक्त्वप्रकृतिः १ उदयः अष्टसप्ततिः ७८ । सासादनेऽनुदयः सम्यक्त्वप्रकृती मिथ्यात्वं प्रागुक्तहुंडसंस्थानाद्यष्टकं च मिलित्वा दश १० । उदयः एकान्नसप्ततिः ६९ । असंयते वैक्रियिक मिश्रयोगमें क्रियिक योगकी तरह छियासी प्रकृतियां हैं किन्तु उसमें से मिश्र, परघात, उच्छ्वास, सुस्वर, दुःस्वर, प्रशस्त, अप्रशस्त विहायोगति ये सात न होनेसे उदययोग्य उन्यासी ७९ हैं। उसमें मिथ्यादृष्टि में मिथ्यात्वकी व्युच्छित्ति होती है । सासादन २५ मरकर नरकमें नहीं जाता इसलिए सासादनमें हुण्ड संस्थान, नपुंसकवेद, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय, नरकगति, नरकायु और नीचगोत्रका उदय नहीं होता। इसलिए इन्हें असंयतमें रखना । वहीं इनका उदय होता है। अतः सासादनमें स्त्रीवेद और अनन्तानुबन्धी चार मिलकर पाँचकी व्युच्छित्ति होती है । असंयतमें अप्रत्याख्यानावरण कषाय चार, वैक्रियिक शरीर, वे क्रियिक अंगोपांग, देवगति, नरकगति, देवायु, नरकायु, दुभंग, दुःस्वर, अनादेय इन ३० तेरहकी व्युच्छित्ति होती है । ऐसा होनेपर १. मिथ्यादृष्टिमें अनुदय सम्यक्त्व प्रकृति एक । उदय अठहत्तर । २. सासादनमें सम्यक्त्व प्रकृति, मिथ्यात्व और पूर्व में कही हुण्डसंस्थान आदि आठ मिलकर अनुदय दस । उदय उनहत्तर ६९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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