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________________ ४८२ गो० कर्मकाण्डे (८०) गळेपत्तें टप्पुवु ७८ । मत्तमा एभत्तं प्रकृतिगळोळु असाधारणातपद्वयसहितमागि उद्योतनाममुमं कळेदोडे तेजस्कायिकवायुकायिकमेंबेरडेडेयोळमेप्पतछमप्पत्तेल प्रकृतिगळुदययोग्यंगळवु। ते ५७। वा ७७ । मत्तं कमेण चरिमम्मि आदावं ण हि वणस्पतिकायिकंगळोळाए भत्तरोळातप. नाममों दं कलेदोडुदययोग्यप्रकृतिगळेप्पत्तो भत्तप्पुवु ७९ । अंतागुत्तं विरलु पृथ्वीकायिकोदययोग्यप्रकृतिगळेप्पत्तो भत्तु ७९ । गुणस्थानंगळेरडप्पुर्वे तेंदोडे " हि सासणो अपुण्णे साहारणसुहुमगे य तेजदुगे एंदितु पारिशेषिक न्यायदिदं पृथ्वोकायिकंगळोळं अप्कायिकंगळोळं वनस्पतिकायिकगळोळं सासादनसम्यग्दृष्टि पुटुगुमप्पुरिदमल्लि पुटुवसासादनंगवस्थानकालमुत्कृष्टदिदमारा. वलि जघन्यदिदमेकसमयमेयप्पुरिदं तद्गुणस्थानदो दययोग्यमल्लद मिथ्यात्वप्रकृतियुं १ आतप. नाममुं १ सूक्ष्मनाममुं १ अपर्याप्तनाममुमेंब नाल्कुं ४ प्रकृतिगळ यिद्रियपर्याप्तियिदं मेलुदयिसुव स्त्यानगृद्धित्रयमुं ३। उच्छ्वासपर्याप्तियिदं मेलुदयिसुव उच्छ्वासनाममुं १ शरीरपर्याप्तियिदं मेलुदयिसुव परघातनाममु १ मुद्योतनाममुं १ मितु पत्तुं प्रकृतिगळगं मिथ्यादृष्टियोळुदव्युच्छित्तियक्कुं १० । सासादननोळु अनंतानुबंधिचतुष्कमुं ४ एकेंद्रियजातिनाममुं १ स्थावरनाममु १ मिताएं प्रकृतिगळ्गुदयव्युच्छित्तियक्कु ६ मंतागुत्तं विरलु मिथ्यादृष्टिगुणस्थानदोळनुदयं शून्यमुदयप्रकृतिगळेप्पत्तों भत्तु ७९ । सासादनगुणस्थानदोळनुदयंगळु पत्तु १० उदयंगळरुवत्तो भत्तु ६९ । संदृष्टि : १५ एकान्नाशीतिः । ७९ । पुनस्तत्राशोत्यां साधारणातपद्येऽपनीतेऽप्कायिकोदययोग्या अष्टसप्ततिः ७८ । पुनस्तत्रा शीत्यां साधारणातपोद्योतत्रयेऽपनीते तेजोवातकायिकयोरुदययोग्याः सप्तसप्ततिः ७७ । पुनः क्रमेण चरिमम्हि आतपेऽमनीते वनस्पतिकायिके उदययोग्याः एकान्नाशीतिः ७९ । तथासति पृथ्वी कायिकोदययोग्या एकान्नाशीतिः ७९ । गुणस्थानद्वयं कुतः ? णहि सासणो अपुण्णे साहारणसुहमगे य तेउदुगे । इति पारिशेष्यात् पृथ्व्य प्रत्येकवनस्पतिषु सासादनस्योत्पत्तेः । तत्रोत्पन्नसासादनस्य तदगणस्थाने उदययोग्यानि मिथ्यात्वातपसूक्ष्मा२० पर्याप्तानि इंद्रियपर्याप्त्युपर्युदययोग्यस्त्यानगृद्धित्रयं उच्छ्वासपर्याप्त्युपर्युदययोग्योच्छ्वासः शरीरपर्याप्त्युपर्युदय योग्यपरघातोद्योती एवं दश मिथ्यादृष्टी व्युच्छित्तिः १० । सासादने अनंतानुबंधिचतुष्कं एकेंद्रियस्थावरं साधारण घटानेपर पृथ्वीकायिक में उदययोग्य उन्यासी ७९ । पुनः अस्सीमें-से साधारण और आतप घटानेपर अप्कायिकमें उदययोग्य अठहत्तर । पुनः अस्सीमें-से साधारण, आतप और उद्योत घटानेपर तेजकाय और वायुकायमें उदययोग्य सतहत्तर । पुनः क्रमसे अन्तिममें २५ आतप घटानेपर वनस्पतिकायिक में उदययोग्य उन्नासी। ऐसा होनेपर पृथ्वीकायिकके उदययोग्य उन्नासी। गुणस्थान दो क्योंकि आगममें कहा है कि सासादन मरण करके अपर्याप्तक, साधारणकाय, सूक्ष्मकाय, तेजकाय और वायुकायमें उत्पन्न नहीं होता। अतः वह पृथ्वीकाय, अप्काय और प्रत्येक वनस्पति में ही उत्पन्न होता है। उनमें उत्पन्न सासादनके उस गुणस्थानमें ये दस प्रकृतियाँ उदययोग्य नहीं हैं-मिथ्यात्व, आतप, सूक्ष्म, अपर्याप्त ये चार । तथा सासादन तो नित्यपर्याप्त दशामें ही रहता है और स्त्यानगृद्धि आदि तीन इन्द्रिय पर्याप्ति पूर्ण होनेपर ही उदययोग्य होती हैं। इसी तरह उच्छवासका उदय भी उच्छवास पर्याप्ति पूर्ण होनेपर ही होता है । परघात और उद्योत शरीर पर्याप्ति पूर्ण होनेपर ही उदययोग्य है अतः इन छहका उदय भी यहाँ सासादनमें नहीं होता। इससे इनकी y Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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