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________________ गो० कर्मकाण्डे एवमिह वियळे विकलत्रयदोळमिते एणभत्तुं ८० । प्रकृतिगळुक्ययोग्यंगळप्पुवहिल स्थावरमुं सूक्ष्ममुं साधारणशरीरमेकद्रियजातिनाममुमनातपनाममुमित ५ प्रकृतिगळं कळेदोडे पत्तदप्पु ७५ ववरोळु त्रसनाममुमं अप्रशस्तविहायोगतियुमं दुःस्वरनाममुं अंगोपांगनाममुमं स्वजातिनाममुं पाटिकासंहननमुनतारुं ६ प्रकृतिगळं प्रक्षेपिसुत्त विरलेण्त्तों दुदयप्रकृतिगळु दय५ योग्यंगळप्पु ८१ वल्लि मिथ्यादृष्टियोळ मिथ्यात्वप्रकृतियुमपर्याप्तनाममुं स्त्यानगृद्धित्रितयमुं परघातमुच्छ्वासमुद्योतमप्रशस्त विहायोगतियुं दुःस्वरनाम मुमितु पत्तुं प्रकृतिगो सासादननोळुदय मिल्लप्पुरमा प्रकृतिगळ, मिथ्यादृष्टियोळ, व्युच्छित्तिगळप्पुवु १० । सासादननोळु अनंतान बंधिचतुष्क्रमुमं द्वोंद्रियादिजातिनामनामत्रितयदोळु स्वजातिनाममों दं तु पंच प्रकृतिगदयव्युच्छित्तियप्पु ५ वंतागुतं विरल मिथ्यादृष्टिगुणस्थानवोळनुदयं शून्यमुदयंगळे भत्तों दु ८१ । १० सासादन- गुणस्थानदोळनुदयंगळ पत्तुं १० उदयंगळे पत्तों दु ७१ । संदृष्टि विकले ३ यो० ८१ ० मि सा ४७८ २० व्यु उ १० Jain Education International ८१ ७१ सतिः ६९ । एवमिह वियले विकलत्रये अशोति संस्थाप्य तत्र स्थावर सूक्ष्मसाधारणैकेंद्रियातपानपनीय त्रसाप्रशस्त विहायोगतिदुः स्वरांगोपांगस्वजातिसृपाटिकासंहननेषु प्रक्षिप्तेषु एकाशीतिरुदययोग्या भवति । तत्र मिथ्यात्वपर्याप्तस्त्यानगृद्धित्रयं पुनः परघातोच्छ्वासोद्योता प्रशस्तविहायोगतिदुः स्वराः सासादने अनुदयात् मिथ्यादृष्टौ व्युच्छित्तिः । १० । सासादने अनंतानुबंधिचतुष्कं स्वैकतरजातिश्चेति पंच । एवं सति मिथ्यादृष्टा१५ वनुदये शून्यं । उदये एकाशीतिः ८१ । सासादने अनुदये १० । उदये एकसप्ततिः ७१ । अ ० १० इसी प्रकार विकलत्रय में अस्सी में से स्थावर, सूक्ष्म, साधारण, एकेन्द्रिय और आतपको घटाकर त्रस, अप्रशस्त विहायोगति, दुःस्वर औदारिक अंगोपांग, सृपाटिका संहनन और अपनी-अपनी जाति ( दो-इन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय ) मिलानेपर उदययोग्य इक्यासी होती हैं। विकलत्रय में मिध्यात्व और अपर्याप्त तथा स्त्यानगृद्धि आदि तीन, परघात, अछ्वास, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, दुःस्वरका सासादनमें अनुदय होनेसे मिध्यादृष्टि में व्युच्छित्ति दस १० । सासादनमें अनन्तानुबन्धी चार और अपनी-अपनी जाति इस तरह पाँच । ऐसा होनेपर मिध्यादृष्टि में अनुदय शून्य । उदय इक्यासी । सासादन में अनुदय इस और उदय इकहत्तर । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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