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________________ ४७७ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका एकेंद्रिये एकेंब्रियमार्गणेयोदययोग्यप्रकृतिगळु तिर्य्यगपर्याप्त पंचेंद्रियजीवंगळगे पेपतोंदु ७१ प्रकृतिगळप्पुववरोळ परघातातपोद्योतोच्छ्वास में ब परघातचतुष्कमुमं पर्याप्तनाममु साधारणशरीरनाम मुमनेकेद्रियजातिनाममुमं यशस्कीत्तिनाममुमं स्त्यानगृद्धित्रयमुमं स्थावरमुमं सूक्ष्ममुर्मानतु पविमूरुं प्रकृतिगळं १३ कूडिदोडेण्भत्तनात्कप्पुव ८४ वरोळु मत्ते ऋणं अंगोपांग श्रसनाममुं सृपाटिका संहननमुं पंचेद्रियजातिनाम में ब नाल्कु प्रकृतिगलप्पु ४ वर्ष कळदोडे भत्तु ५ प्रकृतिगळवु । यिल्लि मिथ्यादृष्टियोळ मिथ्यात्वप्रकृतियुमातपनाममुं सूक्ष्मापर्याप्तसाधारणशरीरमेंब सूक्ष्मत्रयमुमिंतु तन्न गुणस्थानदोळ पेद प्रकृतिपंचकर्मु मत्तं स्त्यानगृद्वित्रितयमुं परघातनाममुं उद्योतनाममुच्छ्वासनाम मुमितारु ६ प्रकृतिगळु सासादननोदय मिल्लप्पुदरिंद मिथ्या दृष्टियोळवं कूडिदोडुवयव्युच्छित्तिगळु पनो' देयतु ११ । सासादननोळनंतानुबंधिचतुष्कममेकेंद्रिय जातिनाममुं स्थावरनाम मुमितारुं प्रकृतिगळगुदयव्युच्छित्तियक्कुं । ६ । यिल्लि मिथ्या दृष्टि- १० गुणस्थानदोळनुदयं शून्यमक्कुमुदयप्रकृतिगळेण्भत्तु ८० । सासादनगुणस्थानदोळनुदयंगळु पन्नों दु ११ उवयंगळरुवत्तो भत्तु ६९ । संदृष्टि : -- एकेंद्रिय योग्य ८० मि. सा. ११ ६ ६९ o व्यु Jain Education International उ अ ८० ० ११ एकेंद्रियमाणायां उदययोग्याः तिर्यगपर्याप्त पंचेंद्रिय वदित्येकसप्ततिः । तत्र परघातातपोद्योतोच्छ्वासपर्याप्तसाधारणैकेंद्रिया यशस्कीर्तिस्त्यानगृद्धित्रयस्थावर सूक्ष्माणि मेलयित्वा अंगोपांग ससृपाटिका संहननपंचेंद्रिये १५ ध्वपनी तेष्वशीतिः स्युः । तत्र मिच्छादावं सुमतियमिति पंच पुनः स्त्यानगृद्धित्रयपरघातोद्योतोच्छ्वासाः सासादनानुदयात् षट् च मिथ्यादृष्टो व्युच्छित्ति: ११ । सासादनेऽनंतानुबंधिचतुष्कं केंद्रियस्थावराणि षट् । तथासति मिथ्यादृष्टो अनुदयः शून्यं । उदयः अशीतिः ८० । सासादने अनुदये एकादश ११ । उदये एकोनस एकेन्द्रिय मार्गणा में. उदय योग्य तिर्यंचलब्ध्यपर्याप्तकी तरह इकहत्तर ७१ । किन्तु उसमें परघात, आतप, उद्योत, उच्छ्वास, पर्याप्त, साधारण, एकेन्द्रिय, अयशस्कीर्ति, स्त्यानगृद्धि २० आदि तीन, स्थावर और सूक्ष्म मिलाकर औदारिक अंगोपांग, त्रस, सृपाटिका संहनन और पंचेन्द्रिय घटाने पर अस्सी होती हैं । उसमें मिथ्यादृष्टिमें ग्यारहकी व्युच्छित्ति होती हैमिध्यात्व, आताप और सूक्ष्म आदि तीन ये पाँच तथा स्त्यानगृद्धि आदि तीन, परघात, उद्योत, उच्छ्वासका सासादनमें अनुदय होने से छहकी व्युच्छित्ति भी मिध्यादृष्टि में होती है । सासादन में अनन्तानुबन्धी चार, एकेन्द्रिय, स्थावर छहकी व्युच्छित्ति होती है । ऐसा होनेपर २५ मिथ्यादृष्टि में अनुदय शून्य, उदय अस्सी ८० । सासादन में अनुदय ग्यारह ११ । उदय उनहत्तर ६९ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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