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गो० कर्मकाण्डे ७६ । मिश्रगुणस्थानदोळु नाल्कुगूडियनुदयंगळेळरोळु मिश्रप्रकृतियं कळेदुदयंगळोळु कूडि मत्तमुदयंगलोलु तिर्यगानुपूर्व्यमं कळे दनुदयंगळोळ कूडुत्तं विरलनुवयंगळेलु ७। उदयंगलेप्पत्तर ७२। असंयतगुणस्थानदळो दुगूडियदयंगळे रोळु सम्यक्त्वप्रकृतियुमं तिय्यंगानुपूर्व्यम कळेनुदयंगळोलु विरलनुदयंगळारु ६। उदयप्रकृतिगळेपत्त मूरु ७३ । संदृष्टिः
भोगभूमि तिय्यंच योग्य ७९
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एवं तिरश्चि मनुष्यद्वयोच्चैर्गोत्रमनुष्यायूंष्यपनीय नीचर्गोत्रतिर्यग्द्वयतिर्यगायुरुद्योतेषु निक्षिप्ते भोगभूमिर्तियक्षु उदययोग्या एकोनाशीतिः । तत्र मिथ्यादृष्टौ मिथ्यात्वं व्युच्छित्तिः । सासादने अनंतानुबंधिचतुष्कं । मिश्रे मिश्रप्रकृतिः। असंयते द्वितीयकषायचतुष्कं तिर्यगायुश्च ५। एवं सति मिथ्यादृष्टी मिश्रसम्यक्त्वे
अनुदयः । उदये सप्तसप्ततिः । सासादने एका संयोज्य अनुदये त्रयं । उदये षट्सप्ततिः । मिश्रे अनुदयः १० चतुर्भिस्तियंगानुपूव्यं संयोज्य मिश्रोदयात्सप्त । उदयो द्वासप्तति । असंयते अनुदयः एका संयोज्य सम्यक्त्व
प्रकृतितिर्यगानुपूर्योदयात् षट् उदयः त्रिसप्ततिः ॥ ३०२ ॥ ३०३ ॥
__ इसी प्रकार तिर्यंचमें मनुष्यगति, मनुष्यानुपूर्वी, उच्चगोत्र और मनुष्यायु घटाकर नीचगोत्र तियंचगति तियं चानुपूर्वी, तिर्यंचायु और उद्योत मिलानेपर भोगभूमि तियंचोंमें
उदययोग्य उन्यासी ७९ हैं। उनमें मिथ्यादृष्टि में मिथ्यात्वकी व्युच्छित्ति होती है । सासादन१५ में अनन्तानुबन्धी चार, मिश्रमें मिश्रप्रकृति और असंयतमें अप्रत्याख्यानावरण कषाय चार तथा तिर्यंचायु पाँचकी व्युच्छित्ति होती है । ऐसा होनेपर
१. मिथ्यादृष्टि में मिश्र और सम्यक्त्वका अनुदय । उदय सतहत्तर । व्युच्छित्ति एक । २.सासादनमें एक मिलाकर अनुदय तीन । उदय छिहत्तर । व्युच्छित्ति चार ।
३. मिश्रमें तीनमें चार व्युच्छित्ति और तियं चानुपूर्वी मिलाकर मिश्रका उदय होनेसे १. अनुदय सात । उदय बहत्तर । व्युच्छित्ति एक ।
४. असंयतमें सातमें एक मिलाकर सम्यक्त्व प्रकृति और तियंचानुपूर्वीका उदय होनेसे अनुदय छह । उदय तिहत्तर ॥३०२-३०३।। भोगभूमि मनुष्य रचना ७८
भोगभूमि तियंच रचना ७९ | मि. सा. | मि. अ.
| मि. सा. | मि.| अ. | १४ १ ५
३ । ७२ | ७३
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