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गो० कर्मकाण्डे ___उदये स्वभावाभिव्यक्तिरुदयस्तस्मिन् स्वकार्य्यमं माडिकर्मरूपपरित्यागमुदयमें बुदक्कु. मंतप्प कर्मोदयदोळु भूतबल्याचार्यादिप्रवाह्योपदेशदोळ मिथ्यादृयाद्ययोगकेवलिगुणस्थानपर्यन्तमुदयव्युच्छित्तिप्रकृतिगळुमय्दु- मो भत्तु-। मोदु। पदिनळ-। मेंदु। मग्दुं । नाल्कु-। मारु-। मारु-। मोदु । मेरडुं । पदिनाएं। मूवत्त। पन्नेरहूं यथाक्रमदिदमप्पुववाउवेदोडे टु गाथासूत्र५ गाळदं पेन्दपरु :
मिच्छे मिच्छादावं सुहुमतियं सासणे अणेइंदी ।
थावरवियलं मिस्से मिस्सं च य उदयबोच्छिण्णा ॥२६॥ मिथ्यादृष्टौ मिथ्यात्वातापं सूक्ष्मत्रयं सासादनेनंतानुबंध्येकेद्रियं स्थावरविकलं मिश्रे मित्रं च चोदयव्युच्छिन्नाः॥
मिथ्यादृष्टिगुणस्थानदोळ मिथ्यात्वमातपनामकर्ममुं सूक्ष्मनामकर्ममुमपर्याप्तनामकर्ममुं साधारणनामकर्ममुंमबी अय्दु प्रकृतिगळुदथव्युच्छित्तिगळप्पुवु । ५॥ सासादनसम्यग्दृष्टिगुणस्थानदोळु अनंतानुबंधिचतुष्टयमुभेकेंद्रियजातिनामकर्ममुं स्थावरनामकर्ममुं स्थावरनामकर्ममुं द्वींद्रियत्रींद्रियचतुरिद्रियजातिनामकम्मंगमिताभत्तुप्रकृतिगादयव्युच्छित्तिगळप्पुवु ।९॥
मियगुणस्थानदोळु सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृतियों दुदयव्युच्छित्तियक्कुं।१॥
स्वभावाभिव्यक्तिः उदयः, स्वकायं कृत्वा कर्मरूपपरित्यागो वा । तस्मिन् अंता व्युच्छित्तयः गुणस्थानेषु क्रमशः पंच नव एका सप्तदश अष्टौ पंच चतस्रः षट् षट् एका द्वे षोडश त्रिशत् द्वादश स्युः ॥ २६४ ॥ ताः काः ? इति चेदष्टगाथासूत्रैराह
मिथ्यादृष्टिगुणस्थाने मिथ्यात्वमातपः सूक्ष्ममपर्याप्तं साधारणं चेति पंच प्रकृतयः उदयतो व्युच्छिन्ना भवंति । सासादने अनंतानुबंधिचतुष्कं एकेंद्रियं स्थावरं द्वींद्रियं त्रोंद्रियं चतुरिंद्रियं चेति नव । मिश्ने सम्यग्मि२० थ्यात्वमित्येका ।। २६५ ॥
अपने अनुभागरूप स्वभावकी अभिव्यक्तिको उदय कहते हैं। अपना कार्य करके कर्मरूपताको छोड़नेका नाम उदय है। और उदयके अन्तको उदय व्युच्छित्ति कहते हैं। अर्थात् जिस गुणस्थानमें जिस प्रकृतिकी उदय व्युच्छित्ति कही है उसके ऊपर उसका उदय नहीं
होता। वह उदय व्युच्छित्ति गुणस्थानों में क्रमसे पाँच, नौ, एक, सतरह, आठ, पाँच, चार, २५ छह, छह, एक, दो, सोलह, तीस और बारह प्रकृतियों की होती है ।।२६४।।
__ आगे अठारह गाथाओंके द्वारा उन प्रकृतियों को कहते हैं
मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें मिथ्यात्व, आनप, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण ये पाँच प्रकृतियाँ उदयसे व्युच्छिन्न होती हैं। सासादनमें अनन्तानुबन्धी चार, एकेन्द्रिय, स्थावर, दो इन्द्रिय
तेइन्द्रिय और चौइन्द्रिय जाति, ये नौ प्रकृलियाँ उदयसे व्युच्छिन्न होती हैं। मिश्रमें एक ३० सम्यक् मिथ्यात्व प्रकृति उदयसे व्युच्छिन्न होती है ।।२६५।।
विशेषार्थ-पूर्वपक्षानुसार मिथ्यात्वमें दसकी और सासादनमें चारकी उदय व्युच्छित्ति कही थी । यहाँ मिथ्यात्व में पाँचकी और सासादनमें नौकी व्युच्छित्ति कही है । पूर्वपक्षानुसार एकेन्द्रिय, स्थावर, दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चौइन्द्रियका उदय मिथ्यादृष्टि के
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