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________________ ४२ गो० कर्मकाण्ड ३५१ ३५९ २५६ ४२८ ज्ञानावरणका विभाग २३२ चौरासी पदोंके द्वारा अल्पबहत्वका विधान ३४२ दर्शनावरणका विभाग २३३ उपपाद आदि योगस्थानोंके निरन्तर प्रवर्तनेका अन्तरायका विभाग २३५ काल मोहनोय कर्मका विभाग २३६ जीवोंकी संख्याकी यवाकार रचना नोकषायरूप पिण्ड प्रकृतिके द्रव्यका विभाग २४१ अंक संदृष्टि द्वारा कथन नोकषायोंके निरन्तर बन्धका काल २४३ यथार्थ कथन ३७० अन्तराय कर्म और नामकर्मके द्रव्यका विभाग- २४६ योगस्थानोंमें समयप्रबद्धको वृद्धिका प्रमाण ३८८ मूल प्रकृतियों में उत्कृष्ट प्रदेश बन्ध के सादि- निरन्तर योगस्थानोंका प्रमाण ३९१ आदि भेद २५० सान्तर योगस्थानोंका प्रमाण ३९२ उत्तर प्रकृतियोंमें उक्त भेद २५१ योगस्थानोंमें आदि और अन्तस्थान ३९३ उत्कृष्ट प्रदेशबन्धकी सामग्री २५२ चारों बन्धोंके कारण ३९४ मूल प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामित्व योगस्थान आदिका अल्पबहत्व ३९४ ... गुणस्थानोंमें . २५३ गणहानि यन्त्र ४१२ उत्तर प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामित्व २५४ त्रिकोण रचनाका अभिप्राय ४१४ मूल प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशबन्धक स्वामी उदयका निरूपण ४२७ उत्तर प्रकृतियोंमें उक्त कथन गुणस्थानों में कुछ प्रकृतियोंके उदयका नियम ४२७ गुणस्थानों में एक जीवके एक काल में बंधनेवाली आनुपूर्वीके उदयका विशेष नियम प्रकृतियोंका निदर्शक यन्त्र २५९ गुणस्थानों में उदय व्युच्छिति ४२९ उसका भाव २५९ गुणस्थानोंमें मतान्तरसे उदय व्युच्छित्ति ४३३ योगस्थानोंके भेद २६१ प्रत्येक गुणस्थानमें उदय व्युच्छित्तिकी प्रकृतियोंउपपाद योगस्थानका स्वरूप २६२ का कथन ४३४ उपपादके भेदोंका दर्शक यन्त्र २६३ केवलीके साता-असाताजन्य सुख-दुःख नहीं ४३८ परिणाम योगस्थानका स्वरूप २६४ केवलीके परीषह क्यों नहीं ४४० एकान्तानुवृद्धि योगस्थान गुणस्थानोंमें उदय और अनुदयका कथन योगस्थानके अवयव २६६ उदीरणाका कथन उन अवयवोंका स्वरूप २६७ उदीरणा व्यच्छित्तिका कथन एक योगस्थानमें सब स्पर्षक आदिका प्रमाण २३८ गुणस्थानों में उदीरणा और अनुदीरणा प्रकृतियोंअंक संदृष्टि द्वारा कथन २६९ का कथन अर्थ संदृष्टि द्वारा कपन २७४ गति आदि मार्गणायोंमें प्रकृतियोंके उदय स्थान, गुणहानि, स्पर्धक, वर्गणा, वर्ग, अविभाग सम्बन्धी नियम ४४८ प्रतिच्छेदका स्वरूप ३१. नरकगतिमें उदययोग्य प्रकृतियाँ जघन्य वृद्धिका प्रमाण ३१० प्रथम नरकमें उदय व्युच्छित्ति ४५२ जघन्य योगस्यानका कथन ३१२ द्वितीयादि नरकोंमें उदय व्यच्छित्ति प्रदेशोंको प्रधानतासे कयन ३३१ तियंच गतिमें उदयत्रिक ४५५ जघन्य स्थानसे उत्कृष्ट पर्यन्त जघन्य स्पर्द्धकोंकी पंचेन्द्रिय और पर्याप्ततियंचमें ४५७ वृद्धि होनेपर उत्तरोत्तर एक स्थान उत्पन्न योनिमती और अपर्याप्त तियंच में ४५९ होता है ३३३ मनुष्यगतिमें उदययोग्य प्रकृतियाँ अपूर्व स्पर्धक होनेका विधान ३३४ मनुष्यगतिमें उदय व्यच्छित्ति ४६२ ४७ ------ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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