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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ई त्रिकोणरचनय चरमगुणहानिधनं तरल्पडुगुमदत दोडे चरमनिषेकमो दु९ अनंतराधस्तन द्विचरमनिषेकंगळेरडु ९।१०। तदनंतराधस्तन त्रिचरमनिषेकंगळु मूरु ९ । १० । ११ । इंतेकैकनिषेकंगळ द्विकंगळधिकंगळागुतं पोगि चरमगुणहानि प्रथमनिषेकदोळु नानासमयप्रबद्ध प्रतिबद्धनिषेकंगळु गुणहानिप्रमितंगळप्पुवु। ९। १०। ११ । १२ । १३ । १४ । १५ । १६ । यितिरुत्तं विरलु चरमनिषेकसमानमप्पंतु अधस्तनाधस्तननिषेकंगळोळिई चरमगुणहानिचयंगळं ५ तेगदु तेगदु तंतम्म सशनिषेकसंख्यगळ पाश्चंदोळु स्थापिसुत्तं विरलु चरमगुणहानियोळु सदृश. निषेकंगळु गच्छामितंगळागुत्तं पोपुवु। तत्तच्चयंगळं रूपोनगच्छसंकलनप्रमितंगळागुत्तं पोपुवप्पुदरिदं द्विकवारसंकलनक्रमंगळप्पुवु । संदृष्टिः
एकवार द्विकवार
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अस्याश्चरमगुणहानौ चरमनिषेक: एकः ९ । अस्याधस्तनो द्विचरमनिषको द्वौ ९ । १० । त्रिचरमास्त्रयः ९ । १०। ११ । एवमेकैकाधिकक्रण तत्प्रथमनिषेके नानासमयप्रबद्धप्रतिबद्धा गुणहानिमात्राः स्यः ९। १० । ११ । १२ । १३ । १४ । १५ । १६ । अत्र चरमनिषेकसमानं यथाभवति तथा अधस्तनांधस्तननिषेकस्थितचरमगुणहानिचयान् पृयक्कृत्य स्वस्वसदृशनिषेकसंख्यापार्वे स्थापितेषु सदृशधनिकानि गच्छप्रमितानि
नीचे अन्त में जिस समयप्रबद्धका बन्ध हुए अबाधाकाल ही हुआ है और एक भी निषेक नहीं खिरा, उसके नौ से लगाकर पाँच सौ बारह पर्यन्त सब अड़तालीस निषेक सत्तामें हैं वे लिखे हैं। इस तरह त्रिकोण रचनामें गलनेके बाद जो शेष निषेक रहे वे क्रमसे लिखे हैं। .. इस सब त्रिकोण रचनाका जोड़ देनेपर जो प्रमाण हो उतनी सत्ता जीवके सदा रहती है। " इसके जोड़नेका विधान इस प्रकार जानना
ऊपर जो त्रिकोण रचना दी है उसकी चरमगुणहानिमें चरम निषेक एक ९ है । उसके नीचे द्विचरम निषेक दो हैं ९।१०। इसी तरह त्रिचरम निषेक तीन है ९।१०।११। इस प्रकार एक-एक अधिकके क्रमसे प्रथम निषेकमें नाना समय प्रबद्धोंसे प्रतिबद्ध निषेक गुणहानि प्रमाण होते हैं ९।१०।११।१२।१३।१४।१५।१६ । यहाँ जोड़नेके लिये सबको चरमनिषेक ९ के २० समान करनेके लिए नीचे-नीचेके निषेकोंमें स्थित अन्तिम गुणहानिके चयोंको पृथक करके उन्हें अपनी-अपनी समान निषेक संख्या के पास में स्थापित करो।
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