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________________ ४१४ गो० कर्मकाण्डे ३२० ३५२३ ११ ००० १६० २०८ २२४ ४२४० | ९ १० ११ १२ ००० १० २०८, २२४ ९/१०/११/१२ ००/ २२४ २४० ९ १०१११२/१३/१४ ००० २४० २५६ ३५२/ ३८४.४१६ ४४८ १०/११/१२/१३/१४/१५/ ००० २५६ २८८ ३२० ३५२ ३८४ ४१६ ४४८ ४८० ९ १०१११२/१३/१४/१५/१६/ ०००/ २८८ ३२०/ ३५२ ३८४ ४१६/ ४४८ ४८० ५१२| इस त्रिकोण रचनाका अभिप्राय इस प्रकार है-वेसठ सौ परमाणु प्रमाण जो समयप्रबद्ध बँधा, आबाधाकाल छोड़कर वह अड़तालीस समयकी स्थितिमें क्रमसे इस प्रकार खिरता है-५१२।४८०।४४८१४१६।३८४१३५२।३२०१२८८ । यह प्रथम गुणहानि हुई । २५६।२४० २२४।२०८।१९२।१७६।१६०११४४। यह दूसरी गुणहानि हुई। १२८।१२०।११२१०४।१६।८८८० ५ ७२। यह तीसरी गुणहानि हुई । ६४।६०५६३५२।४८।४४।४०३६। यह चतुथे गुणहानि हुई । ३२।३०।२८।२६।२४।२२।२०१८ । यह पंचम गुणहानि हुई। १६।१५।१४।१३।१२।११।१०।९। यह षष्ठम गुणहानि हुई। इन छहों गुणहानियोंमें त्रेसठ सौ परमाणु इस प्रकार खिरते हैं। जिस समयप्रबद्धका बन्ध हुए आबाधा अधिक अड़तालीस समय हो गये, उससे लगाकर इससे पहले जितने समयबद्ध बंधे थे उनसे तो कोई प्रयोजन नहीं रहा, क्योंकि उनका १० कोई भी निषेक सत्तामें नहीं रहा। सब उदयमें आकर खिर गये। जिस समयप्रबद्धका बन्ध हुए आबाधा अधिक सैंतालीस समय हुए हैं उसके सैतालीस निषेक तो खिर गये । एक अन्तका निषेक रहा। सो त्रिकोण रचनामें नौ परमाणु रूप अन्तका निषेक ऊपर लिखा है। उसके नीचे जिस समयप्रबद्धका बन्ध हुए आबाधा अधिक छियालीस समय हुए उसके छियालीस निषेक तो खिर गये दो निषेक सत्तामें रहे। सो त्रिकोण रचनामें नौ और दस १५ परमाणुके दो निषेक लिखे। उसके नीचे जिस समयप्रबद्धका बन्ध हुए आबाधा अधिक पैंतालीस समय हुए उसके पैंतालीस निषेक खिर गये तीन निषेक सत्तामें रहे। सो त्रिकोण रचनामें नौ, दस और ग्यारह परमाणुके तीन निषेक लिखे। इसी प्रकार जिस-जिस समयप्रबद्धका बन्ध हुए एक-एक समय कम हुआ है उसके एक-एक घटते हुए समयप्रबद्ध तो खिर गये, शेष एक-एक अधिक निषेक सत्तामें रहे । उनको नीचे-नीचे लिखा। जिस समयप्रबद्धका २. बन्धहए आबाधा अधिक एक समय हुआ हो उसका एक निषेक तो खिर गया शेष सैतालोस निषेक रहे। वे नौ से लगाकर चार सौ अस्सी परमाणुके निषेक पर्यन्त लिखे हैं। उसके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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