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________________ गो० कर्मकाण्ड ४८ १ त्यक्त शरीरके तीन भेद ४८ गुणस्थानोंमें प्रकृतियोंके बन्धकी व्युच्छित्तिका भक्तप्रतिज्ञाके कालका प्रमाण कथन इंगिनी और प्रायोपगमन मरणका स्वरूप बन्ध व्युच्छित्तिमें दो नयसे कथन भाविज्ञायक शरीरका स्वरूप ४९ मिथ्यात्व गुणस्थानमें व्युच्छिन्न प्रकृतियाँ तद्वयतिरिक्त नोआगम द्रव्यकर्मके भेद सासादन में व्युच्छिन्न प्रकृतियाँ आगम भावकर्मका स्वरूप असंयत और देश संयतमें व्यच्छिन्न प्रकृतियाँ ७० नोमागम भावकर्मका स्वरूप प्रमत्त, अप्रमत्त, अपूर्वकरणमें व्युच्छिन्न प्रकृतियाँ ७१ उत्तर प्रकृतियों में नामादि निक्षेप अनिवृत्तिकरण और सूक्ष्मसाम्परायमें काऔर मरमसापरायमें . ७२ मूल प्रकृतियोंके नोकर्म द्रव्यकर्म ५२ उपशान्त आदि तीन गुणस्थानोंमें केवल मतिज्ञानावरण श्रुतज्ञानावरणके नोकर्म साताका बन्ध अवधि और मनःपर्यय ज्ञानावरणके नोकर्म गुणस्थानोंमें बन्ध और अबन्धका कथन द्रव्यकर्म ५४ "नरकगतिमें बन्धादि कथन पांचों निद्राओंके नोकर्म .५४ तिथंच गतिमें बन्धादि कथन चार दर्शनावरणोंके नोकर्म ५४ मनुष्यगतिमें बन्धादि कथन साता-असाता वेदनीयके नोकर्म देवगति में बन्धादि कथन सम्यक्त्व प्रकृति, मिथ्यात्व और सम्यक इन्द्रियमाणामें कथन मिथ्यात्वके नोकर्म सासादन गुणस्थान किन तियंचोंके नहीं होता-१०० अनन्तानुबन्धी आदिका नोकर्म प्रसकाय, मनोयोग और वचनयोगमें कथन १०१ स्त्रीवेद आदि नोकषायोंका नोकर्म औदारिक मिश्रकाय योगमें कथन १०२ नरकायु आदिका नोकर्म ५७ वैक्रयिक और आहारक काययोगमें बन्धादि कथन१०४ गति, जाति, शरीर नामकर्मके नोकर्म वैक्रयिक मिश्रकाय योगमें पांच शरीर नामकर्मो के नोकर्म ५८ कार्मणकाययोगमें बन्धन आदि नामकर्मोके नोकर्म ५८ स्त्रीवेदमें आनुपूर्वीका नोकर्म ५८ नपुंसकवेदमें १०८ स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ स्वर आदिका नोकर्म ५९ पुरुषवेदमें १०९ उच्च और नीच गोत्र तथा दानान्तराय आदिका कषायमार्गणामें ११० नोकर्म ज्ञानमार्गणामें ११० वीर्यान्तरायका नोकर्म संयममार्गणामें ११२ नोआगम भावकर्मका स्वरूप दर्शनमार्गणामें ११४ लेश्यामार्गणामें ११४ २. बन्धोदय सत्त्वाधिकार भव्यमार्गणामें नमस्कारपूर्वक प्रतिज्ञा ६१ सम्यक्त्वमार्गणामें ११६ स्तव, स्तुति, धर्मकथाका स्वरूप संज्ञीमार्गणामें ११९ बन्धके भेद और उनके उत्कृष्ट आदि भेद ६२ आहारमार्गणामें १२० उत्कृष्ट आदिके सादि-आदि भेद ६२ मूल प्रकृतियों में सादि-आदि भेद १२१ उदाहरण द्वारा उनका स्पष्टीकरण ६३ सादि आदि भेदोंका लक्षण १२२ गणस्थानोंमें प्रकृतिबन्धके नियम ६४ उत्तर प्रकृतियोंमें सादि आदि भेद १२३ तीर्थकर प्रकृतिबन्धके विशेष नियम ६५ ४७ ध्र व प्रकृतियोंमें चारों भेद १२३ १०५ १०६ १०७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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