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________________ १. प्रकृति समुत्कीर्तन मंगलाचरण प्रकृति शब्दका अर्थ जीव और शरीरका अनादि सम्बन्ध जीवके द्वारा प्रतिसमय कर्म-नोकर्मका ग्रहण घाती और अघाती कर्म जीवके गुण, जिन्हें कर्म घातते हैं। आयुकर्मका कार्य नामकर्मका कार्य गोत्रकर्मका कार्य समयप्रधद्धका प्रमाण प्रतिसमय उदय और सत्ताका परिमाण कर्मके भेद और उनका स्वरूप कर्मके आठ भेद और उनमें घाति-अघाती भेद आठ कर्मो नाम आठ कर्मोंका स्वरूप दृष्टान्त द्वारा कर्मोंके उत्तर भेदोंकी संख्या वेदनीय कर्मका कार्य कर्मो के नामोंके क्रम में हेतु अन्तरायका कार्य तथा उसे अन्त में रखने में हेतु आय नाम गोत्रके क्रम में हेतु वेदनीयको मोहनीयसे प्रथम रखने में हेतु स्त्यानगृद्धि और निद्रानिद्राका स्वरूप प्रचलाप्रचला और निद्राका स्वरूप प्रचलाका स्वरूप मिथ्यात्व के तीन भेद कैसे मोहनीय तथा नाम कर्मकी प्रकृतियाँ औदारिक आदि पाँच शरीरोंके भंग आठ अंग और उपांग विषय-सूची संहननके धारक जीवोंकी स्वर्ग तथा नरक में उत्पत्ति १- ६० कर्मभूमिकी स्त्रियों के संहनन १ २ २ ३ ३ ४ Jain Education International ९ ९ १० ११ १२ १२ १३ १३ १४ १६ १७ १९ आतप और उष्ण नामकर्मका उदय किन के गोत्र कर्म और अन्तराय कर्मके भेद ४ ५ ५ ६ ६ ७ उदय प्रकृतियोंकी संख्या C सत्व प्रकृतियोंकी संख्या ७ सर्वघाती प्रकृतियाँ ८ देशघाती प्रकृतियाँ ८ प्रशस्त प्रकृतियाँ अप्रशस्त प्रकृतियाँ कषायों का कार्य कषायोंका वासनाकाल १९ ज्ञानावरण और दर्शनावरणकी प्रकृतियाँ वेदनीयके भेद मोहनीयकी प्रकृतियोंका स्वरूप आर्मी प्रकृतियों का स्वरूप नामकर्मकी प्रकृतियोंका स्वरूप गोत्र और अन्तरायकी प्रकृतियों का स्वरूप नामकर्मकी उत्तर प्रकृतियोंमें अभेद विवक्षा से गर्भित प्रकृतियाँ बन्ध प्रकृतियोंकी संख्या पुद्गलविपाकी प्रकृतियाँ भवविपाकी और क्षेत्रविपाकी प्रकृतियाँ जीवविपाकी प्रकृतियाँ श्रोताके तीन भेद और उनका स्वरूप चार निक्षेपोंका लक्षण नामकर्म और स्थापनाकर्मका स्वरूप द्रव्यकर्मके भेद और उनका स्वरूप नोआगम द्रव्यकर्मके भेद भूत शरीर के तीन भेद कदलीघात मरणका स्वरूप च्यावित और त्यक्तका स्वरूप For Private & Personal Use Only २१ २२ २२ २३ २४ २४-२५ २६ २७-३२ ३३ ३३ ३४ ३५ ३६ ३६ ३६ ३७ ३८ ३९ ४० ४० ४१ ४२ ४३ ४४-४५ ४५ ४६ ४६ ४७ ४७ ४७ www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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