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________________ ४०० गो० कर्मकाण्डे देवगतिक्षेत्रक्कुदयिसुगुमा देवगतिक्षेत्रप्रमाणमेनिते दोडे देवर्कळल्लरु त्रसपर्याप्तपंचेंद्रियजोबंगळेयप्पुरिदं आ जीवंगळगुत्पत्तियोग्य देवगतिक्षेत्र विवक्षितज्योतिर्लोकावसानमादनवशतयोजनगुणिततसनाळप्रतरमक्कं = ९०० शेषदेवक्षेत्रनोळु पुटुव जीवंगळल्पंगळेयप्पुरिदं अविवक्षितमक्कुमो भवनत्रयदेवगतिक्षेत्रदोळु पुटुव जीवंगळावावगतिजरेंदोडे कर्मभोगभूमितिय॑क्पंचेंद्रियपर्याप्तकरुं कर्मभोगभूमिमनुष्यपर्याप्तकरुपुटुवरुळिवबावं जीवंगळपुट्टवेक बोडे तद्गतिक्षेत्रजननकारणाभावविंदनल्लि पुटुव तिर्यग्मनुष्यजीवंगळु शरीरपरित्यागमं माडि विग्रहगतियिदं भवनत्रयदेवगतिक्षेत्रदोळपुट्टपेडि बोगळु देवायुष्यदेवगतिनामकर्मोदयसहचरितदेवानुपूर्व्यनामकर्मोददिदं पूर्व परित्यक्तशरीरावगाहनाकारापरित्यागदिदं, पंचेंद्रियपर्याप्त त्रसजीवशरीरजघन्यावगाहनाकारं धनांगुलसंख्यातेकभागगुणितदेवगतिक्षेत्रमदु प्रथमविकल्पमक्कु = ९०० । ६ द्वितीयादिविकल्पंगळुमेकैकप्रदेशोत्तरक्रमदिदं पोगि तिय्यंक्पंचेंद्रियपर्याप्तत्रसजीवोत्कृष्टावगाहनाकारं संख्यातघनांगुलदिदं गुणिसल्पट्ट क्षेत्रमदु चरमविकल्पमक्कु = ९००।६७ मन्तागुत्तं विरलु आदी अंते सुद्धेत्यादिसूत्रदिवं तरल्पट्ट लब्धं देवानुपूर्व्यविकल्पंगळिनितप्पु = यो ९००।६।३१ वी ४९ १ M एतावद्विकल्पं = ४५ ल ६१० देवानुपूयं क्षेत्रविपाकित्वात्तत्क्षेत्रं तेषां त्रसत्वाद्विवक्षितज्योतिर्लोका १-४९ वसाननवशतयोजनगुणितत्रसनालीप्रतरं =९०० शेषदेवोत्पत्तिक्षेत्र स्तोकत्वान्न विवक्षितं पंचेंद्रियपर्याप्त तिर्यग्मनुष्याणामेव तत्र गमनकाले देवायुर्गतिसहचरितानुपूर्योदयेन धनांगुलसंख्येयभागेन गुणिते प्रथम विकल्पः = ९०० । ६ संख्यातघनांगुलैर्गुणिते घरमः- = ९०० । ६ १ आदी अंते सुद्धे इत्यादिनानीततावद्विकल्पं ४९ आदिको घटाकर एकका भाग देकर और एक जोड़नेपर जो प्रमाण हो उतने भेद मनुष्यानुपूर्वीके हैं देवानुपूर्वी देवक्षेत्रविपाकी है । और देव सब स होते हैं अतः उनका क्षेत्र विवक्षित २० ज्योतिर्लोकके अन्तपर्यन्त नौ सौ योजनसे त्रसनालीके प्रतरक्षेत्रका गुणा करनेपर जो प्रमाण हो उतना जानना। देवोंका उत्पत्ति क्षेत्र थोड़ा है इससे उसकी विवक्षा यहाँ नहीं की है। ज्योतिषी देवोंकी ही मुख्यतासे कथन किया है। पंचेन्द्रिय पर्याप्त तिथंच और मनुष्य ही देवोंमें जन्म लेते हैं। देवगतिमें गमन करते समय देवायु और देवगतिके उदयके साथ देवानुपूर्वी के उदयसे पूर्व आकारका नाश न होनेसे उनकी जघन्य अवगाहनाको संख्यात २५ घनांगुलसे उक्त क्षेत्रको गुणा करनेपर प्रथम भेद होता है। उत्कृष्ट अवगाहना भी संख्यात धनांगुल प्रमाण है उससे गुणा करनेपर अन्तिम भेद होता है। सो 'आदी अंते सुद्धे' इत्यादि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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