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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ३६३ द्रव्यादिराशिगळ विन्यासमिदु:- । द्रव्य | स्थिति | गुण | नाना १४२२] ३२ दो गुण- अन्योन्या-1 २५६ ३२ यितु स्थापिसल्पट्ट राशिगोळु तु मत्ते किंचिदूनत्रिगुणहानिविभाजिते द्रव्ये गुणहानिय बुदु नाल्कु रूपुगळप्पुववं त्रिगुणितं माडिदोडे द्वादशरूपुगळप्पुबवरोळु किंचिदूनं माडल्पडुगुमा ऊनप्रमाणमेनितेदोडे सप्तपंचाशच्चतुःषष्टिभागमक्कुमदं त्रिगुणहानियोळु चतुःषष्टिरूपूर्गाळदं समच्छेदम माडि ७६८ अयिवतळं कळेदोडे शेषमिदु ७११ ई किंचिदूनत्रिगुणगुणहानियिदं द्रव्यं भागि- ५ सल्पडुत्तिरलु लब्धं जीवयवमध्यमक्कु । १२८ । मदु कारणमागि मज्झे जीवा बहुगा एंदितु पेळल्पदुदु । उभयत्य विसेसहीणकमजुता यदी यवमध्यप्रथमयोगस्थानस्वामिगळप्प जीवंगळ संख्येयं नोडलु उपरितनानंतरयोगस्थानस्वामिगळ संख्ये मोदल्गोंडु तद्गुणहानिचरमयोगस्थानस्वामिगळ संख्येय पर्यतं विशेषहीनक्रमंगळप्पुवु । तद्यवमध्यानंतराधस्तनगुणहानि प्रथमयोगस्थानस्वामिगळप्प जीवंगळसंख्ये मोदल्गोंडु अधोधस्तनगुणहानिचरमयोगस्थानस्वामिजीवसंख्ये पर्यंत १० तदुपरितनगुणहानिविशेषप्रमि १६ त विशेषदिदमे : ३ । ५ । दोगुणहानिः अष्टौ ८ । अधस्तनोपरितनान्योन्याभ्यस्तराशी क्रमेण अष्टो द्वात्रिंशत् ८। ३२ । तुपुनः त्रिगुणगुणहान्या १२ सप्तपंवाशच्चतुःषष्टिभागः किंचिदूनया ७११ द्रव्ये भक्ते १४२२ ४ ६४ जोवयवमध्यं स्यात् । १२८ । तन्मध्ये जीवा बहु काः इत्युक्तम् । उभयत्थविसेसहोणकमजुत्ता । तेभ्यः यवमध्यजीवेभ्यः तन्मध्यात् अधस्तनोपरितनगुणहानिनिषेकेषु जीवाः तत्तद्गुणहानिविशेषेण हीनक्रमयुक्ता भवंति । तत्तद्विशेष- १५ प्रमाणं तु तत्तद्गुणहानेरादिनिषेके दोगुणहान्या भक्ते, चरमनिषेके वा रूपाधिकगुणहान्या भक्ते भवति । तेन सात सौ ग्यारहका चौंसठवाँ भाग हुआ। इसका भाग सर्व द्रव्य चौदह सौ बाईस में देनेपर एक सौ अट्ठाईस आया। यही यवाकार रचनाके मध्य में जीवोंका प्रमाण है इसीसे मध्य में जीव बहुत कहे हैं। मध्यसे ऊपर और नीचेके गुणहानि निषेकोंमें अपनी-अपनी गुणहानि में जितना विशेषका प्रमाण है उतना क्रमसे घटता जानना। सो अपनी-अपनी गुणहानिके २० प्रथम निषेकको दो गुणहानिसे भाग देनेपर जो प्रमाण हो अथवा अन्तिम निषेकको एक अधिक गुणहानि आयामका भाग देनेपर जो प्रमाण हो उतना विशेषका प्रमाण जानना । अतः नीचेकी और ऊपरकी गुणहानिका द्रव्य तथा विशेष क्रमसे आधा-आधा होता है। वही कहते हैं ऊपरकी गुणहानि पाँच, उनमें पहली गुणहानिके पहले निषेकका प्रमाण एक सौ २५ अठाईस है। उसको दो गुणहानि आठका भाग देनेपर सोलह आये । वही विशेष है। सो एक-एक निषेकमें सोलह-सोलह घटाइए । अन्तके निषेकमें एक कम गुणहानि आयाम १. ब उभय तवतन्मध्यां । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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