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________________ ३५५ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका अट्ठसमयस्स थोवा उभयदिसासु वि असंखमंगुणिदा । चउसमयोत्ति तहेव य उवरि तिदुसमयजोग्गाओ ॥२४३।। अष्टसमयस्य स्तोकाः उभयदिशास्वपि असंख्यसंगुणिताः। चतुःसमयपथ्यंतं तथैव चोपरि त्रिद्विसमययोग्याः॥ द्वींद्रियपर्याप्तजीवपरिणामयोगजघन्यस्थानमादियागि संजिपंचेंद्रियपर्याप्तजीवपरिणाम- ५ योगोत्कृष्टस्थानपय्यंतमाद सर्वनिरंतर योगस्थानंगळोळु -१ छे पल्यासंख्यातभाजितबहुभाग ११ स्थानंगळु २ छे द्विसमयनिरंतरपरिणामयोगप्रवृत्तिस्थानविकल्पंगळप्पुवु। शेषैकभागपल्या ya a प संख्यातबहुभागस्थानविकल्पंगळु त्रिसमयनिरंतरयोगप्रवृत्तिपरिणामस्थानविकल्पंगळप्पुवु -२ छे प शेषेकभागपल्यासंख्यातबहुभागार्द्ध स्थानविकल्पंगळु अधस्तन चतुःसमयनिरंतरयोगaaaaa पप प्रतिपत्तिस्थानविकल्पंगळप्पुवु। शेषाद्ध स्थानविकल्पंगळु परितनचतुःसमयनिरंतरयोगप्रवृत्तिस्थान- १० द्वींद्रियपर्याप्तपरिणामयोगस्थानादारभ्य संज्ञिपर्याप्तपरिणामयोगोत्कृष्टस्थानपर्यंत सर्वेषु निरन्तरयोग aa स्थानेषु- छे पल्यासंख्यातभाजितबहुभागः-ले प द्विसमयनिरंतरप्रवृत्तिस्थानविकल्पाः, शेषैकभागस्य ३२ ara a a प पल्यासंख्यातबहुभागस्त्रिसमय- निरंतरप्रवृत्तिस्थानविकल्पाः- -छे प शेषैकभागस्य पल्या२aa a पप aa दो-इन्द्रिय पर्याप्त जीवके जघन्य परिणाम योगस्थानसे लगाकर संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवके उत्कृष्ट परिणाम योगस्थान पर्यन्त अन्तररूप योगस्थानोंको छोड़कर जो निरन्तर १५ योगस्थान हैं उनकी जौ नामक अन्नके आकार रचना कालकी अपेक्षा करते हैं। जो योगस्थान निरन्तर आठ समय तक होते हैं उन्हें मध्यमें लिखें। जो योगस्थान निरन्तर सात समय तक होते हैं उनमें से आधे तो आठ समयवालोंके ऊपर लिखें और आधे नीचे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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