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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ३४७ तथा नित्यपबाद रैकेंद्रियजघन्यैकान्तानुवृद्धियोगमं नोडल सूक्ष्मसूक्ष्मज्येष्ठम् सूक्ष्मलब्ध्यपर्थ्याप्त जीवोत्कृष्ट कान्तानुवृद्धियोगस्थानमुं निवृत्यपर्य्याप्तसूक्ष्मैकेंद्रिय जीवोत्कृष्टै कान्तानुवृद्धियोगस्थान त्यासंख्यातैकभागगुणितक्रमंगळवु । ३३ । ३४ ॥ ततः अदं नोडलुं बादरबादरे वरं भवति लब्ध्यपर्य्याप्त बाद रैकेंद्रिय जीवोत्कृष्टै कान्तानुवृद्धियोगस्थानमुं निर्वृत्यपर्य्याप्तबादरेकेंद्रियजीवोत्कृष्टैकान्तानुवृद्धियोगस्थानमुं पल्यासंख्यातैकभागगुणितक्र मंगळप्पुवु । ३५ । ३६ ॥ अनंतरं बळिक्कमंतर में 'बुदा कुमन्तर में बुदेने 'दोडे निर्वृत्यपर्याप्तबाद रैकेंद्रिय जीवोत्कृष्टै कान्तानुवृद्धियोगस्थानद सूक्ष्मलब्ध्यपर्य्याप्तजीवपरिणामयोगस्थानद अन्तराळदोळु श्रेण्यसंख्यातैकभागमात्रयोगस्थानंगळु निःस्वामिकंगळांतरमेव व्यपदेशमक्कुमा प्रथमांतरमनतिक्रमिसि अवरं लब्धसूक्ष्मतरवरमपि परिणामे लब्ध्यपर्याप्त सूक्ष्मबादरंगळ परिणामे परिणामयोगदोळु जघन्यस्थानंगळुमा सूक्ष्मेतरलब्ध्यपर्थ्यामजीचंगळ परिणामयोगोत्कृष्टस्थानंगछु मिन्तु नाल्कुं स्थानंगळं पल्या संख्या - १० तैकभागगुणितक्रमंगळवु । ३७ । ३८ । ३९ ॥ ४० ॥ अंतरवरी पुणो ण्णाणं च उवरि अंतरियं । एयंत वड्ढिठाणा तसपणलद्धिस्स अवरवरा || २३९|| अंतरमुपयपि पुनस्तत्पूर्णानां चोपय्र्यंतरितमेकान्तानुवृद्धिस्थानानि त्रसपंचलब्धेरवरवराणि ॥ तथा सूक्ष्मैकेंद्रिय लब्ध्यपर्याप्तनिवृत्यपर्याप्तयोः एकांतानुवृद्धयुत्कुष्टे पल्या संख्यातगुणक्रमे ३३ । ३४ ॥ ततः बाद केंद्रियलब्ध्यपर्याप्तनिर्वृत्य पर्याप्तयोरेकांतानुवृद्धयुत्कृष्टे पल्यासंख्यातगुणितक्रमे । ३५ । ३६ । ततः अंतरमिति बादरैकेंद्रियनिवृत्त्यपर्याप्त कांतानुवृद्ध युत्कृष्टसूक्ष्मै केंद्रिय लब्ध्यपर्याप्तपरिणामयोगजघन्ययोरंतराले श्रेण्यसंख्यातैकभागमात्रयोगस्थानानि निःस्वामिकानि तानि चातीत्य सूक्ष्मबादरलब्ध्यपर्याप्तयोः परिणामयोगस्य जघन्योत्कृष्ट नि पल्यासंख्यातगुणक्रमाणि ।। ३७ । ३८ । ३९ । ४० ॥२३८ ॥ Jain Education International ५ For Private & Personal Use Only १५ उससे सूक्ष्म एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक और सूक्ष्म एकेन्द्रिय निर्वृत्यपर्याप्त कके उत्कृष्ट एकान्तानुवृद्धि योगस्थान क्रमसे पल्यके असंख्यातवें भाग गुणे हैं ३३ । ३४ । उससे बादर एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त और बादर एकेन्द्रिय निर्वृत्यपर्याप्त के उत्कृष्ट एकान्तानुवृद्धि योगस्थान क्रमसे पल्यके असंख्यातवें भाग गुणे हैं ३५/३६ । उसके पश्चात् अन्तर है । अर्थात् बादर एकेन्द्रिय निर्वृत्यपर्याप्त के उत्कृष्ट एकान्तानुवृद्धि योगस्थान और सूक्ष्म एकेन्द्रिय लब्ध्य- २५ पर्याप्त के जघन्य परिणाम योगस्थानके मध्य में जगतश्रेणिके असंख्यातवें भाग योगस्थान ऐसे हैं जिनका कोई स्वामी नहीं है। ये योगस्थान किसी जीवके नहीं पाये जाते। इससे यह अन्तर पड़ा है । इन स्थानोंको उलंघकर या छोड़कर सूक्ष्म एकेन्द्रिय और बादर एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक के जघन्य और उत्कृष्ट परिणाम योगस्थान अनुक्रमसे पल्यके असंख्यातवें भाग गुणे हैं । यहाँ सूक्ष्मका जघन्य, बादरका जघन्य, सूक्ष्नका उत्कृष्ट, बादरका उत्कृष्ट ३० यह क्रम लेना । ३७|३८|३९|४०| ऐसे ही आगे भी जानना || २३८|| २. www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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