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________________ स्थूलस्थूले च ॥ गो० कर्मकाण्डे जघन्यस्थानमुं पल्यासंख्यातकभागगुणितक्रमंगळप्पुवु । २५ । २६ ॥ आ पूर्वमं नोडलु संज्युपपादं लब्ध्यपर्याप्रसंज्ञिपंचेंद्रियजीवोत्कृष्टोपपादयोगस्थानं पल्यासंख्यातेकभागगुणितमक्कु । २७ । मदं नोडलु सूक्ष्मैकेद्रियलब्ध्यपर्याप्तजीवजघन्यमेकान्तानुवृद्धियोगस्थानं पल्यासंख्यातैकभागगुणितमक्कु । २८ ॥ मदं नोडलु : मण्णिासुववादवरं णिव्यत्तिगदस्स सुहुमजीवस्स । एयंतवाड्ढि अवरं लद्धिदरे थूलथूले य ॥२३७॥ संजिन उपपादवरं निर्वृत्तिगतस्य सूक्ष्मजीवस्य । एकान्तानुवृद्धिजघन्यं लब्धीतरस्मिन् संज्ञिनः उपपादबरं निवृत्तिगतस्य संजिनिवृत्यपर्याप्तजीवोपपादयोगोत्कृष्ट स्थानं पल्यासंख्यातेकभामगुणितमा । २९ ॥ अदं नोडलु सुहुमजीवस्स सूक्ष्मनिर्वृत्यपर्याप्तजीवन एकान्तानुवृद्धिजघन्यं एकान्तानुवृद्धियोगजघन्यस्थानं पल्यासंख्यातेकभागगुणितमक्कु । ३०॥ मदं नोडलु लब्धीतरस्मिन् लब्ध्यपर्याप्त नित्यपर्याप्त जीवे स्थूलस्थूले च बादरदोळं बादरदोळं एने बुदर्थमेंदोडे बादरलब्ध्यपर्याप्तजीवजधन्यकांतानुवृद्धियोगमुं निवृत्यपर्याप्तबादरैकेद्रियजघन्यैकान्तानुवृद्धियोगस्थानमुं पल्यासंख्यातेकभागवृद्धिक्रमंगळे बुदत्यं । ३१ । ३२॥ तह सुहुम-सहुम-जेट्ठ तो बादरबादरे वरं होदि । अंतरमवरं लद्धिगसुहुमिदरवरपि परिणामे ॥२३८।। तथा सूक्ष्मसूक्ष्मज्येष्ठं ततो बादरबादरे वरं भवति । अंतरमवरं लब्धिगसूक्ष्मेतरमपि परिणामे ॥ असंज्ञिसंज्ञिनिवृत्त्वपर्याप्तयोर्यथाक्रमं तदुत्कृष्टजघन्ये पल्यासंख्यातगुणे । २५ । २६ । ततः लब्ध्यपर्याप्तसंज्ञिनस्त२० दुत्कृष्टं पल्यासंख्यातगुणं २७ । ततः सूक्ष्मैकेंद्रियलब्ध्याप्तिस्य एकांतानुवृद्धिजघन्यं पल्यासंख्यातगुणं ।२८ ततः-- ___संज्ञिनिर्वृत्त्यपर्याप्तस्योपपादोत्कृष्टं पल्यासंख्यातगुणं २९ । ततः सूक्ष्मकेंद्रियनिवृत्यार्याप्तस्य एकांतानुवृद्धिजघन्यं पल्यासंख्यातगुणं ३० । ततः बादरै केन्द्रियलब्ध्यपर्याप्तनिवृत्त्यपर्याप्तयोरेकांतानुवृद्धि जघन्ये पल्या संख्यातगुणितक्रमे । ३१ । ३२ ॥२३७॥ २५ पर्याप्तकका उत्कृष्ट और संज्ञी लब्ध्यपर्याप्तका जघन्य उपपाद योगस्थान क्रमसे पल्यके असंख्यातवें भाग गणे हैं :२३।२४। उससे असंज्ञी निवृत्यपर्याप्तका उत्कृष्ट और संज्ञी निवृत्यपर्याप्तका जघन्य उपपाद योगस्थान क्रमसे पल्यके असंख्यातवें भाग गुणे हैं ।।२५।२६। उससे संज्ञी पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तका उत्कृष्ट उपपाद योगस्थान पल्यके असंख्यातवें भाग गुणा है ।२७। उससे सूक्ष्म एकेन्द्रिय लन्ध्यपर्याप्तकका जघन्य एकान्तानुवृद्धि योगस्थान पल्य३० के असंख्यातवें भाग गुणा है ।२८ ॥२३॥ उससे संज्ञी पंचेन्द्रिय निवृत्यपर्याप्तकका उत्कृष्ट उपपाद योगस्थान पल्यके असंख्यातवें भाग गुणा है । २९ । उससे मूक्ष्म एकेन्द्रिय निवृत्यपर्याप्तकका जघन्य एकान्तानुवृद्धि योगस्थान पल्य के असंख्यातवें भाग राणा है । ३०। उससे बादर एकेन्द्रिय लमध्यपर्यापक और बादर एकेन्द्रिय निर्वृत्यपर्याप्तकका जयन्य एकान्तानुवृद्धि योगस्थान क्रमसे पल्यके ३५ असंख्यातवें भाग गणे हैं ।३१।३२।।२३७।। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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