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________________ कर्णाटवृत्ति जोवतत्त्वप्रदीपिका ३४१ स्थान विकल्पंगळगे नानागुणहानिशलाकेगळरियल्पडवदु कारणमागि तत्तदन्तराळस्थानंगळ द्विगुणद्विगुणकर्मादिदमेनितु स्थानंगळं नडेववे बि नानागुणहा निशलाकेगळु गच्छमक्कुमठु तरहपत्तिदे रूपोन गुणेन हतं गुणिशतं प्रभवे भाजितं सैकं । यतिकृत्वो गुणभक्तं रूपं स्यात्तति भवेद्गच्छं ॥ एंदित करणसूत्राभिप्रायदिदं नानागुणहानिशलाकेगळे नितप्पुवेंदोडे केळवेळवर्पे :रूपोनगुणेन द्विगुणगुणसंकलनविधानमप्पुदरिदं गुणकारमेरडरोळोंदु रूपं कळेदोडों दे ५ रूपम कुमदरिदं हतंगुणितं गुणिसल्पट्ट धनरूपसर्व्वस्थानविकल्पंगळं प्रभा में बुदा दियस्थानत्रिकल्पंगळवरंद भागिसल्पट्ट राशियं २छे अपवत्ततमि a 9 २छे प्रभवेण भाजितं a a aaa २ მ a एकरूपं कूडिदुदं छे यतिकृत्वः वारे कृत्व... एंदु यावतो वारान् यतिकृत्वः एनितु वारंगळनु गुण a a भक्त रूपं गुणकारभूतद्विकदिदमी यन्योन्याभ्यस्तराशियं छेदासंख्यातैकभागमात्रराशियं भागिसिद वारंगळ रूपं तति तावत्प्रमितं गच्छं स्यात् गच्छमक्कुमेदितु तिथ्यं ग्रूपददं नानागुणहानिशलाकेगळ १० असंख्यातरूपही नपल्यत्र शलाका प्रमितमप्पु । । वेकेंदोडे छेदराशिय अर्द्धच्छेदंगलप्प वर्गशलाhi द्विकमनि संवर्गमं माडुत्तिरलु पल्यच्छेदराशि पुट्टुगं । विरलनराशोदो पुण जेत्तियमेत्ताणि वाणि । तेस अण्णष्णहदी हारो उप्पण्णरासिस्स ॥ एंदा वर्गशलाकेय होनरूपुगळऽसंख्या 3 सैकं G-D 2 -२ छे रुऊगुत्तरभजियं इति सर्वयोगस्थानविकल्पाः स्युः । त एव पुन । रूपोनगुणेन एकेन हताः २ छे १ aaa a a Jain Education International प्रभवेन आदिस्थानविकल्पैर्भाजिताः ३२ छे १२ अवर्तिताः छे १ एकरूपसहिताः छे यावतो वारान् गुणेन a a aa-a a द्विकात्मकेन भक्ताः संतो रूपं जायंते ते वाराः तिर्यग्रूपेण नानागुणहानिशलाकाः स्युः । ताश्च असंख्यातरूपैर्हीन, For Private & Personal Use Only सोलका गुणकार कहा, वैसे ही यहाँ क्रमसे दूना-दूना पल्यके अर्धच्छेदोंके असंख्यातवें भागका आधा प्रमाण मात्र गुणकार जानना । सो 'अंतधणं गुणगुणियं' इत्यादि सूत्रके अनुसार जोड़ने पर सब योगस्थानोंके भेदोंका प्रमाण होता है । उसको एक हीन गुणकार से गुणा करके आदिस्थानसे भाग दें, एक मिलानेपर पल्यके अर्धच्छेदोंका असंख्यातवाँ भाग २० होता है । उसमें जितनी बार गुणकार दोसे भाग देनेपर एक रहे उतनी नाना गुणहानि शलाका है । सो असंख्यात हीन पल्की वर्गशलाका प्रमाण जानना । क्योंकि पल्यकी वर्गशलाका प्रमाण दोके अंक रखकर परस्पर में गुणा करनेपर पल्य के अर्द्धच्छेद मात्र प्रमाण होता है । और उसमें घटाये असंख्यात । उतने दोके अंक रखकर परस्पर में गुणा करनेपर असंख्यात का १५ www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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