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________________ गो० कर्मकाण्डे प्रथमगुणानिय प्रथमद्वितीय पंक्तिय ॠणंगळं संकलित्तं विरल रूपोनगुणहानिस्पद्ध कसंकलित्तं विरल रूपोन गुणहानिस्पद्ध कशलाकेगछु द्विगुणद्विकवार संकलनेयिदं स्पर्धकवणाशलाकावर्गगुणितजघन्य वर्गमात्रविशेषंगळ गुणिसल्पडुत्तं विरल द्वितीयपंक्तिसवऋणसमासमेतावन्मात्रमक्कुं । ववि ४ । ४ । ९ ।९।९। मत्तं गुणहानिस्पद्ध' शलाका संकलनयिदं रूपोन५ रूपोनस्पर्धक वर्गणाशलाका संकलनयिदमुं गुणिसल्पट्ट जघन्य वर्गमात्रविशेषंगळु प्रथम पंक्तिसव्वंऋणसमासमेतावन्मात्रमक्कु । व वि ३ । ४ । ९ ।९। मी राशियं मेलापिसल्वेडि द्वितीयपंक्ति ३ २ २ ३२० प्रथम पंक्तिणानि द्वितीयपंक्ती तु स्पर्धकवर्गणाशलाका वर्ग गुणितजघन्यवर्गमात्रविशेषाणां रूपोनगच्छद्विगुणसंकलनमात्राश्च गुणकारा द्वितीयपंक्तिॠणानि भवंति - प्रथम पंक्ति ऋणं ववि ३ ४९ २ ववि ३४८ व वि ३ ४ ३ २ Jain Education International व वि व वि ३ ४ २ २ ३ ४ १ २ द्वितीयपंक्तिॠणं व वि ४ ४ ८९२ २ व वि ४४७८२ ० २ . O व वि ४ ४ २ ३ २ २ व वि ४ ४ १ २२ २ एषां संकलनायां रूपोनगुणहानिस्पर्ध क्रशलाका गच्छद्विगुणद्विकवारसंकलनगुणितस्पर्धक वर्गणाशलाका०११० वर्ग गुणितजघन्यवर्गमात्रविशेषाः द्वितीयपंक्तिसर्वऋणं भवति व वि ४ । ४ । ९ । ९ । ९ पुनर्गुणहानिस्पर्धक३ शलाकागच्छसंकलनेन रूपोनस्पर्धक वर्गणाशलाकागच्छसंकलनेन च गुणिते जघन्यवर्गमात्रविशेषाः प्रथमपंक्ति For Private & Personal Use Only ० होते-होते जगतश्रेणिके असंख्यातवें भाग प्रमाण वर्गणाओंके होनेपर उनका समूहरूप तीसरा स्पर्धक होता है । इसी अनुक्रमसे जघन्य वर्गको स्पर्धकोंकी संख्या से गुणा करनेपर प्रथम वर्गणा होती है। प्रथम स्पर्धककी प्रथम वर्गणा सम्बन्धी जघन्य वर्गके अविभाग २५ प्रतिच्छेदों के प्रमाणसे चौगुना करनेपर चौथे स्पर्धककी प्रथम वर्गणाके वर्गके अविभाग प्रतिच्छेदों का प्रमाण होता है । पाँच गुना करनेपर पंचम स्कन्धकी प्रथम वर्गणाके वर्गके अविभाग प्रतिच्छेदोंका प्रमाण होता है । छह गुणा करनेपर छठे स्पर्धककी प्रथम वर्गणाके वर्गके अविभाग प्रतिच्छेदोंका प्रमाण होता है । इस प्रकार जिस संख्या के स्पर्धककी प्रथम वर्गणा विवक्षित हो जघन्य वर्गसे उतना गुणा करनेपर उस स्पर्धककी २० प्रथम वर्गणाके वर्गके अविभाग प्रतिच्छेदोंका प्रमाण होता है । तथा प्रथम वर्गणा के www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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