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________________ ३१२ व । २ । व । २ ४ व व व । व व व व व व व धनिकंगळगे पूर्व्वदन्ते श्रेण्यसंख्यातेक भागमात्रवर्गणेगळं कोंडु रचियिसुत्तं विरलु द्वितीयस्पर्द्धक कुमन्तु मेले मेले "पड्ढयसंखा हि गुणं जहण्णवग्गं तु तत्थ तत्थादी" यदिती सूत्रोक्तक्रर्माविंदमसंख्यात लोकमात्राविभागप्रतिच्छेदोत्तरंगळप्प श्रेण्यसंख्यातैकभागमात्रस्पर्द्ध मंगळगे प्रथमगुणहानियो अव्यामोहदिदं रचने माडल्पडुगुर्माल्लिवं मेले प्रथमगुणहान्या विवर्ग्यणासदृशधनि कंगळं ५ नोडलु द्वितीयगुणहान्यादिवर्गणासदृशधनिकजीवप्रदेशसंख्ये द्विगुणहीनमक्कुर्माल्लिद मेले विशेषहोमक्रमंगळप्पुवु । नवीनमुंटदावुर्द दोडे मुन्निन विशेषमं नोडली द्वितीयगुणहानिविशेषम मात्रमे कुन्ति गुणहानिगळु पळितोपमासंख्यातैकभागमात्रगळु सलुत्तं विरलोंदु योगस्थानमक्कुमिदु सव्वंजघन्ययोगस्थान मक्कुमिन्तु शक्तिप्रधानमागि पेळल्पदुदु । मत्तमिवर संकलननिमित्तं प्रदेशप्रधानरचनास्वरूपं निरूपिसल्पडुगुमदे' ते 'दोडे प्रथमगुणहानिप्रथमस्पर्द्धक प्रथमवर्गंणाप्रदेशकलापमं १० चरमवर्गणाया उपरि रचना कर्तव्या तस्या गो० कर्मकाण्डे यवर मेले अविभागोत्तरमं विशेषहीनक्रममुमागी सदृश Jain Education International व २ व २ ० ४ १-१-१-१-१व व व व व व व व व व व व विभागोत्तर विशेष होनक्रमेण श्रेण्यसंख्यातैकभागमात्रीषु वर्गणासु रचितासु द्वितीयं स्पर्धकं । एवमुपर्युपरि फट्टयसंखाहि गुणं जहण्णवग्गं तु तत्थतत्थादीत्युक्तक्रमेण श्रेण्यसंख्येयभागस्पर्धकानि प्रथमगुणहानौ रचितव्यानि । तत उपरि द्वितीयगुणहान्यादिवर्गणा प्रथमगुणहान्यादिवर्गणार्धमात्री उपरि विशेषहीनक्रमेण गच्छति । अयं विशेषोऽपि पूर्वविशेषार्धमात्रः । एवं पलितोपमासंख्यातैकभागमात्रगुणहानिषु गच्छंतीषु एकं योगस्थानं । इदं १५ सर्वजघन्यं शक्तिप्राधान्येनोक्तं । पुनः तदेव प्रदेशप्राधान्येन संकलयति उपरि पुनः प्राग्वद एक अविभागी अंश अधिक शक्तिके धारी दूसरे प्रदेशमें उस जघन्य शक्तिसे जितनी शक्ति बढ़ती हुई हो उस बढ़ती हुई शक्तिके प्रमाणको योगका अविभाग प्रतिच्छेद कहते हैं । पहले फैलायी गयी प्रदेशकी जघन्य शक्तिके उस अविभाग प्रतिच्छेद प्रमाण, खण्ड करनेपर असंख्यात लोक प्रमाग खण्ड होते हैं । अतः असंख्यात लोक प्रमाण २० अविभाग प्रतिच्छेदोंके समूहको वर्ग कहते हैं । इसीसे एक वर्ग में असंख्यात लोक प्रमाण अविभाग प्रतिच्छेद कहे हैं। उसकी सहनानी ( पहचान ) 'व' अक्षर है । उसके आगे जिन प्रदेशों में जघन्य शक्ति पायी जाती है वे सब लिखें। इस प्रकार जघन्य शक्ति के धारक जीवके प्रदेश असंख्यात जगत्प्रतर प्रमाण होते हैं क्योंकि लोक प्रमाण जीवके प्रदेशों में डेढ़ गुणहानिसे भाग देनेपर जो प्रमाण आवे उतने जघन्यशक्ति प्रमाण शक्तिके धारक प्रदेश हैं । सो २५ एक गुणहानिमें जितना वर्गणाका प्रमाण कहा है उसका ड्योढ़ा करनेपर डेढ़ गुणहानिका For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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