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________________ २७० गो० कर्मकाण्डे सर्वजीवप्रदेशंगळु । नाना । प अन्योन्याभ्यस्त प एकगुणहानिस्पद्ध'कंगळु। ३ । aa एकस्पद्धकवर्गणाशलाकंगळु । एकगुणहानिसव्र्ववर्गणगनु ३०० एकस्थानसम्र्ववर्गणेगल ०० ० प ई राशिगळु नानागुणहानिशलाकेगळादियागुत्तरोत्तरराशिगळुमसंख्यातगुणितक्रमंगळप्पुवु । अवि वगं | वर्गणा | स्पद्ध गुण | स्थान । S२५६ - ५ भवन्ति । एकजीवगतसर्वप्रदेशाः = नानागु प अन्योन्याभ्यस्त प एकगुणहानिस्पर्ष कानि ३० एक aa -- - - प स्पर्धकवर्गणाशलाकाः । एकगुणहानिगतसर्ववर्गणा । । । एकस्थानगतसर्ववर्गणा । । aa एते नानागुणहानिशलाकाद्याः उत्तरोत्तरे असंख्यातगुणितक्रमा भवन्ति ॥२२७॥ एक योगस्थानमें समस्त अविभाग प्रतिच्छेद असंख्यात लोक प्रमाण ही हैं, कर्म१० परमाणुओं अथवा सबसे जघन्य ज्ञानके अविभाग प्रतिच्छेदोंके प्रमाणकी तरह अनन्त नहीं हैं। जीवके प्रदेश लोक प्रमाण हैं। एक स्थानमें नाना गुणहानिका प्रमाण पल्यमें दो बार असंख्यातका भाग देनेपर जो प्रमाग आवे उतना है। नाना गुणहानि प्रमाण दोके अंक रखकर उन्हें परस्परमें गुणा करनेपर जो प्रमाण हो वह अन्योन्याभ्यस्त राशि है । सो पल्य को एक बार असंख्यातसे भाग देनेपर जो प्रमाण आवे उतनी है। एक गुणहानिमें स्पर्धक १५ जगतश्रेणिमें दो बार असंख्यातसे भाग देनेपर जो प्रमाण आवे उतने हैं। एक स्पर्धकमें वर्गणा जगतश्रेणिको एक बार असंख्यातसे भाग देनेपर जो प्रमाण आवे. उतनी हैं। एक गुणहानिमें जो स्पर्धकोंका प्रमाण है उसको, एक स्पर्धकमें जो वर्गणाओंका प्रमाण है उससे गुणा करनेपर एक गुणहानिमें सब वर्गणाओंका प्रमाण होता है। उसको एक योगस्थानमें जो नाना गुणहानिका प्रमाण उससे गुणा करणेपर एक योगस्थानमें सब वर्गणाओंका २० प्रमाण होता है । ये सब नाना गुणहानिसे लेकर क्रमसे असंख्यातगुणे-असंख्यातगुणे जानना ।।२२७॥ १. ब सर्वजीवप्रदेशाः । २. । अवि वर्ग वर्गणा | स्पर्धक | गुण स्थान - aai aa = a la २५६ । ४ व । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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