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________________ ५ १० २२६ गो० कर्मकाण्डे वेशावरणान्योन्याभ्यस्तस्त्वनन्त संख्यामात्रः खलु । सर्व्वावरणघनात्थं प्रतिभागो भवति २० घातीनां ॥ देशघाति प्रकृतिसंबंधिद्रव्यनानागुणहा निशला के गळनंतप्रमितंगळपुर्वारंवं तावन्मात्रद्विकवग्गित संवर्ग संजनितमपुर्वारदमन्योन्याभ्यस्त राशिनानागुणहा निशलाकाराशियं नोडलुमनंतानंतगुणमप्पुदरिदं । तु मत्तमनंत संख्यावच्छिन्न मक्कु मदु सर्व्वधातिशक्तियुक्तघातिकमंगळ तत्सघातिसंबंधिद्रव्यगुणसंकळितधनप्रमाणावधारणात्थंमागि प्रतिभागमक्कुमवेंतेंदोडे घातिकम्मंगळोळ चतुर्ज्ञानावरणत्रिदर्शनावरणपञ्चांतरायचतुःसंज्वलननवनोकषायद्रव्याणां नानागुणहानिशलाका: अनन्ता इति तन्मात्रद्विकसंवर्गजनितोऽन्योन्याभ्यस्त राशिरपि अनन्तसंख्यो भवति । स खलु तेषां सर्वघातिद्रव्यस्य गुणसंकलितधनप्रमाणावधारणार्थं प्रतिभागो भवति । तद्यथा द्रव्य मिलकर मतिज्ञानावरणादिका द्रव्य होता है । शंका- देशघाति प्रकृतियों में सर्वघाती परमाणु कैसे कहे हैं ? समाधान - पूर्व में कहा है कि मतिज्ञानावरणादिका अनुभाग शैल, अस्थि, दारु और लतारूपसे चार प्रकार है । उनमें से दारुका अनन्तवाँ भाग और लताभाग तो देशघाती है । ऐसे अनुभागवाले परमाणु देशघाती होते हैं । तथा शैल, अस्थि और दारुका बहुभाग १५ सर्वघाती है। ऐसे अनुभागवाले परमाणु सर्वघाती हैं । सर्वघातीके उदय में किंचित् भी आत्मगुण प्रकट नहीं होता । जैसे एकेन्द्रियादिके चक्षुदर्शनके सर्वघाती परमाणुका उदय होनेसे चक्षुदर्शन नहीं होता । किन्तु देशघातीके उदयमें आत्मगुण प्रकट होता है जैसे चौइन्द्रिय आदि जीवोंके चक्षुदर्शनके देशघाती परमाणुओंका उदय है फिर भी चक्षुदर्शन होता है । इस प्रकार देशघाति प्रकृतियों में सर्वघाती और देशघाती द्रव्य होता है । अस्तु, मतिज्ञानावरणादि चारका वह द्रव्य केवलज्ञान के बिना अपने सर्वघाति द्रव्यसहित देशघातिद्रव्य प्रमाण है सो कुछ अधिक समय प्रबद्ध के आठवें भाग है। उसमें एक कम अन्योन्याभ्यस्त राशिसे भाग देनेपर शैल भागकी अन्तिम गुणहानिके द्रव्यका परिमाण होता है । पश्चात् नीचेकी ओर एक-एक गुणहानिमें दूना-दूना द्रव्य होते-होते दारु भागके अनन्त भागों में से एक भाग बिना शेष बहुभाग सम्बन्धी द्रव्य उनकी प्रथम गुणहानिमें २५ शैलभागकी अन्तिम गुणहानिके द्रव्यको यथायोग्य आधे अनन्तसे गुणा करनेपर जो प्रमाण हो उतना जानना । क्योंकि यहाँ तक जितनी गुणहानि हुई वही गच्छ है । सो एक कम गच्छमात्र दोके अंकोको गुणा करनेपर सर्वघाती सम्बन्धी अन्योन्याभ्यस्त राशि अनन्त प्रमाण होती है । उसका जो आधा है वही यहाँ गुणकार है । इन सब गुणहानियोंके द्रव्यको जोड़नेपर जो प्रमाण हो उतने परमाणु सर्वघाती सम्बन्धी जानते । इसीसे सर्वघाती द्रव्य ३० लाने के लिए अन्योन्याभ्यस्त राशिका प्रतिभाग कहा है। आगे देशघातीका द्रव्य कहते हैंदारुभागके बहुभागकी प्रथम गुणहानिके द्रव्यसे नीचे दारु भागके अनन्त भागों में से एक भाग की अन्तिम गुणहानिका द्रव्य दूना है। तथा नीचे प्रत्येक गुणहानिका द्रव्य दूना-दूना होता हुआ लताभागकी प्रथम गुणहानिमें एक कम सर्व नाना गुणहानिका जितना प्रमाण है। उतने दो अंक रखकर परस्पर में गुणा करनेपर जो प्रमाण हो वही अन्योन्याभ्यस्त राशिका ३५ है । उसके आधे प्रमाणसे शैल भागकी अन्तिम गुणहानिके द्रव्यको गुणा करनेपर जो प्रमाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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