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गो० कर्मकाण्डे
८।९।२
मावल्यसंख्यातदिदं भागिसिदेकभागमुं स ।। १ शेषबहुभागद्रव्यमं । स ० ८ समनागि येरडु भागं माडिदल्लि येकभागमुं। स ।।८।१ संज्वलनदेशघातिचतुष्प्रकृतिसंबंधिद्रव्यमक्कुं
८।९।२ स ।।८।१ शेषबहुभागार्द्धद्रव्यमकषायदेशघातिप्रकृतिनवकसंबंधिद्रव्यमक्कुं स ।। ८ ८ ।९।२
अन्तरायपंचकमुं देशघातियेयप्पुरिदं मूलप्रकृतिस-द्रव्यमुमक्कुं स यो नाल्कुं घातिकम्मंगळ ५ देशघातिप्रकृतिसंबंधिद्रव्यंगळ्गे पेम्वन्योन्याभ्यस्तराशिये सर्वावरणधनाथं प्रतिभागप्रमाणमेंदु
पेळ्दपरदेके दोड रूपोनान्यान्योभ्यस्तरार्शाियदं ज्ञानावरणादिधातिकम्मंगळ सर्वघातिसंबंधिद्रव्यदोळं देशघातिप्रकृतिगळ्गे भागमुंटप्पुदरिनदु सहितमाद देशघातिसंबंधिसर्वतव्यम भागिसिदोर्ड देशघातिजानावरणचतुष्क, त्रिदर्शनावरणमुमन्तरायपंचकमुं संज्वलनचतुष्कनवनो
कृते स ० ८ गुणकारस्य एकरूपहीनत्वमवगणय्य अपवर्त्य स । जिनदृष्टानन्तभागहारेण भक्त्वा एकभागः
१. स . १ तत्सर्वत्रातिप्रकृतिसंबन्धी भवति शेषबहुभागः तद्देशघातिसंबन्धी भवति स a ख तथा दर्शना
ऊपर जो सर्वघाती द्रव्यका परिमाण कहा है आगे उसका बँटवारा सर्वघाती और देशघाती प्रकृतियोंमें करेंगे । सो देशघाती मतिज्ञानावरणादिके द्रव्यका जो परिमाण है उसमें सर्वघाति परमाणुओंका प्रमाण लानेके लिए प्रतिभागहारका प्रमाण कहते हैं
चार ज्ञानावरण, तीन दर्शनावरण, पाँच अन्तराय, चार संज्वलन और नौ नोकषायके १५ द्रव्यकी नाना गुणहानि शलाका अनन्त है । और जितनी नाना गुणहानि शलाका हैं उतने
दोके अंक रखकर उन्हें परस्परमें गुणा करनेपर अन्योन्याभ्यस्त राशि होती है वह भी अनन्त संख्यावाली है।।
जैसे अंक संदृष्टिमें द्रव्य इकतीस सौ ३१००, स्थिति स्थान चालीस ४०, एक-एक गुणहानिका प्रमाण आठ ८, दो गुणहानिका प्रमाण सोलह १६, नाना गुणहानि पाँच ५। २. नाना गुणहानि प्रमाण दोके अंक रखकर परस्परमें गुणा करनेपर अन्योन्याभ्यस्तराशि
२४२४२४२४२=३२ बत्तीस । सो इसकी रचना पूर्व में कही है वैसे ही जानना। अस्तु।
* सो यहाँ जो अन्योन्याभ्यस्त राशिका प्रमाण है वही सर्वघाती द्रव्यका परिमाण लानेके लिए प्रतिभाग होता है। वही कहते हैं२५
मतिज्ञानावरण आदि चार प्रकृतियोंका द्रव्य केवलज्ञानावरणके भागसे हीन अपने सर्वघाती द्रव्य सहित देशघातिद्रव्यका जितना प्रमाण है उतना है। अर्थात् इन देशवाति प्रकृतियोंका देशघाती द्रव्य तो अपना है ही सर्वघाती द्रव्य भी है । वह सर्वघाती द्रव्य केवल
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