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________________ एक क्षेत्र योग्यसादि स ३२ अ १६ । ६ १ 星 प ख a कर्णावृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका मेकानेक क्षेत्रगताऽयोग्यसादिद्रव्यंगळवु अनेक क्षेत्र योग्यसादि स ३२ अ १६ ६ ख E स ३२ अ १६ ६ a एक क्षेत्र योग्यसादि स ३२ अ १६ । ६ ख क प ख a शेषानंतबहुभाग अनेकक्षेत्रायोग्यसादि अनंतर मेकानेक क्षेत्रस्थितयोग्यायोग्यअनादिद्रव्यप्रमाणंगळं पेळदपरु :सगसगसादिविहीणे जोग्गाजोग्गे य होदि नियमेण । जोग्गाजोग्गाणं पुण अणादिदव्वाण परिमाणं ॥ १९० ॥ स्वस्वसादिविहोने योग्यायोग्ये च भवति नियमेन । योग्यायोग्यानां पुनरनादिद्रव्याणां परिमाणं ॥ एकानेकक्षेत्रगतयोग्यायोग्य द्रव्यं गळोळु यथाक्रमविदं कळेयुत्तिरलु एकानेकक्षेत्रस्थित योग्यायोग्यद्रव्यंगळ अनादिद्रव्यपरिमाणंगळप्पुवु : -- एक क्षेत्रायोग्यसादि 목 स ३२ । अ १६३६ ख 解 पख a २१५ स्वस्वयोग्यायोग्य सा विद्रव्यंगळं अनेक क्षेत्रायोग्यसादि P ख प ख Ә अथेकानेक क्षेत्रस्थितयोग्यायोग्यानादि द्रव्यप्रमाणान्याह - एका क्षेत्रगत योग्यायोग्यद्रव्येषु यथाक्रमं स्वस्वयोग्यायोग्यसादिद्रव्येष्वपनीतेषु एकानेकक्षेत्रस्थित 113 स ३२ अ १६६ ख प ख a जानना । शेष बहुभाग प्रमाण एक क्षेत्र सम्बन्धी अयोग्य सादि द्रव्य जानना । इसी प्रकार अनेक क्षेत्र सम्बन्धी सादि द्रव्यमें अनन्तका भाग देनेपर एक भाग प्रमाण अनेक क्षेत्रमें स्थित योग्य सादिद्रव्य जानना, शेष बहुभाग प्रमाण अनेक क्षेत्रमें स्थित अयोग्य सादि द्रव्य जानना ॥ १८९ ॥ आगे अनादिद्रव्यका प्रमाण कहते हैं एकक्षेत्र में स्थित योग्यद्रव्य और अयोग्यद्रव्य तथा अनेकक्षेत्रमें स्थित योग्यं द्रव्य और अयोग्यद्रव्यका जो परिमाण कहा है उनमें से अपने-अपने सादिद्रव्यका परिमाण घटानेपर जो शेष प्रमाण रहे उतना उतना क्रमसे एकक्षेत्रस्थित योग्य अनादि द्रव्यका और एक क्षेत्रस्थित अयोग्य अनादि द्रव्यका तथा अनेक क्षेत्रस्थित योग्य अनादि द्रव्यका और अनेक क्षेत्र स्थित अयोग्य अनादि द्रव्यका प्रमाण होता है । इनमें से योग्य सादिद्रव्यसे अथवा योग्य अनादिद्रव्यसे अथवा योग्य उभय द्रव्यसे एक समयप्रबद्ध प्रमाण मूलप्रकृति और उत्तरोत्तर प्रकृतिरूपसे प्रतिसमय प्रदेशबन्ध करता है । इसका भावार्थ यह है कि जीव मिथ्यात्व आदिके निमित्तसे प्रतिसमय कर्मरूप होनेके योग्य समयप्रबद्ध प्रमाण परमाणुओंको ग्रहण करके उन्हें Jain Education International For Private & Personal Use Only ५ १० १५ २० www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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