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गो० कर्मकाण्डे में दितु परमागमदोळ प्रणोतमादुददे ते दोडे इल्लि त्रैराशिकं माडल्पडुगुं । घनलोकसर्वप्रदेशंगळोळु सर्वजीवसंबंधि सादिद्रव्यमिनितिरुत्तं विरलागळेकजीवावगाहित धनांगुलासंख्यातेकभागमात्रक्षेत्रदोळं घनांगुलासंख्यातेकभागोनलोकमात्रानेकक्षेत्रदोळमेनितु साविद्रव्यमिक्कुम दितु त्रैराशिकंगळं माडिदोडे । प्रफ स ३२ । अ १६ । इ ६ प्र=फ स ३२ । अ १६ ।
५ इ।= ६ लब्धंगळेकानेकक्षेत्रस्थित सादिद्रव्यंगळप्रमाणंगळप्पुवु । एक क्षेसाद -
स ३२। अ१६।६
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अनेकक्षेत्रसादि = ई एकानेकक्षेत्रगत साविद्रव्यं गळ अनंतकभागंगळु योग्यसाविद्रव्यंगळप्पुवुस ३२। अ१६६
स्वस्वायोग्यसंगत सादिद्रव्यं भवतीति प्रणीतम् । यदि धनलोकसर्वप्रदेशेषु सर्वजीवसंबन्धिसादिद्रव्यं एतावत् तदा एकजीवावगाहितघनाङ्गुलासंख्यातकभागमात्रकक्षेत्रे घनाङ्गलासंख्यातकभागोनलोकमात्रानेकक्षेत्रे च कियत् स्यात् ? इति त्रैराशिके कृते प्र-=, फ स ३२ अ १६, इ ६ । प्र=, फस ३२ अ १६, इ. ६
तयोर्द्रव्ययोरनन्तक
१. लब्धं एकानेकक्षेत्रस्थितसादिद्रव्यं भवति एकक्षेत्रसादि
स ३२ अ १६ ६
अनेकक्षेत्रसादि- स ३२ अ १६=६
प
भागौ योग्यसादिद्रव्ये भवतः
एकक्षेत्रयोग्यसादि -
अनेकक्षेत्रयोग्यसादि - स ३२ अ १६ । ६ स ३२ अ १६ । = ६
प १ a ख
a ख शेषो अनन्तबहुभागौ एकानेकक्षेत्रगतायोग्यसादिद्रव्ये भवतः ॥१८९॥ भाग देनेपर एक भाग प्रमाण तो अपना-अपना योग्य मादिद्रव्य है, शेष अयोग्य सादिद्रव्य है ऐसा कहा है। वही कहते हैं
जो सर्वलोकके प्रदेशोंमें सर्वजीव सम्बन्धी सादिद्रव्य पूर्वोक्त प्रमाण पाया जाता है तो एक जीवकी अवगाहनारूप घनांगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण एक क्षेत्र में और एक क्षेत्रके परिमाणसे हीन लोक प्रमाण अनेक क्षेत्रमें कितना पाया जायेगा। इस प्रकार दो त्रैराशिकमें-से एकमें प्रमाणराशि सर्वलोक, फलराशि सादिद्रव्यका प्रमाण, इच्छाराशि एक क्षेत्र ।
सो फलको इच्छासे गुणा करके प्रमाणका भाग देनेपर जो लब्धराशिका प्रमाण आया उतना २० एक क्षेत्र सम्बन्धी सादिद्रव्य जानना । दूसरेमें, प्रमाण सर्वलोक, फल सादिद्रव्यका प्रमाण,
इच्छा अनेक क्षेत्र । फलको इच्छासे गुणा करके प्रमाणका भाग देनेपर जो लब्धराशिका प्रमाण आया, उतना अनेक क्षेत्र सम्बन्धी सादि द्रव्य जानना । एक क्षेत्र सम्बन्धी सादिद्रव्यमें अनन्तका भाग देनेपर एक भाग प्रमाण एक क्षेत्र सम्बन्धी कर्मरूप होनेके योग्य सादिद्रव्य
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