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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका १९९ वड्ढमाणा हायमाणा च केवलं वर्द्धमाना होयमानाश्च । जे संकिळेस्सविसोहि परिणामा ये संक्लेशविशुद्धिपरिणामाः ते अपरियत्तमाणा णाम तेऽपरिवर्तमाना नाम । जेत्थ पुण यत्र पुनः । ठाइकूण स्थित्वा परिणामान्तरं गंतूण परिणामांतरं गत्वा । एगदो एकतः । आदिसमये आदिसमये । हि स्फुटं । आगमणं संभवदि आगमनं संभवति । ते परिणामा ते परिणामाः परियतमाणा णाम परिवर्तमाना नाम । तत्थ तत्र उक्कस्सा मज्झिमा जहण्णात्ति उत्कृष्टा मध्यमा जघन्या इति तिविहा परिणामा त्रिविधाः परिणामाः । ण न । तत्थ तत्र । सव्वविसुद्धिपरिणामेहि सर्व्वविशुद्धिपरिणामः जहग्णो अणुभागो होदि जघन्योऽनुभागो भवति । अप्पसत्यपयडि अणुभागादो अप्रशस्त प्रकृत्यनुभागात् । अनंतगुणपसत्यपयडि अणुभागस्स अनंतगुणवड्ढिप्प संगादो अनन्तगुणप्रशस्तप्रकृत्यनुभागस्यानन्तगुण वृद्धिप्रसंगात् । ण न । सव्वसंकिलिट्ठपरिणामेहिय सव्वंसंक्लिष्ट - परिणामैश्च तिव्वसंकिळिस्सेण तीव्र संक्लेशेन । असुहाणं पयडीणं अशुभानां प्रकृतीनां अणुभाग- १० वसिंगादो अनुभागवृद्धिप्रसंगात् । तम्हा तस्मात् । जहण्णुक्कस्सपरिणामणिराकरणट्ठ जघन्योत्कृष्ट परिणाम निराकरणात्थं परियत्तमाणमज्झिमपरिणामेहित्ति उत्तं परिवर्त्तमानमध्यम. परिणामेरित्युक्तम् । प्रतिसमयं केवलवर्धमानहीयमानंगळु मावुवु केलवु संक्लेशविशुद्धिपरिणामंगळ वनपरि वर्त्तमानं गळे' बुबु | आवुवु केलवु मत्ते परिणामंगळोळिरुतिद्दु परिणामान्तरमनेदि वो दरणिदमे १५ ५ अणुसमयं - अनुसमयं केवलं वड्ढमाणा हीयमाणा च केवलं वर्धमाना हीयमानाश्च जे संकिलेसविसोहिपरिणामा-ये संक्लेशविशुद्धिपरिणामाः ते अपरियत्तमाणा णाम- ते अपरिवर्तमाना नाम । जेत्थ पुणयत्र पुनः ठाइदूण- स्थित्वा परिणामांतरं गंतूणं- परिणामांतरं गत्वा, एगदो- एकतः आदिसमए हि- आदिसमये हि, स्फुटं आगमणं संभवदि - आगमनं संभवति ते परिणाम ते परिणामाः परिवर्तमाणा णाम-परिवर्तमाना नाम । तत्थ - तत्र उक्कस्सा मज्झिमा जहण्णा त्ति- उत्कृष्टा मध्यमा जघन्या इति तिविहा परिणामा - त्रिविधाः २० परिणामाः ण-न । तत्थ - तत्र सव्वविसुद्ध परिणामेहि- सर्वविशुद्धपरिणामः, जहण्णो अणुभागो होदि - जघन्योऽनुभागो भवति । अप्पसत्यपयडीअणुभागादो - अप्रशस्त प्रकृत्यनुभागात्, अनंतगुणपसत्यपयडी अणुभागस्स अनंत जो संक्लेशरूप या विशुद्धरूप परिणाम प्रतिसमय बढ़ते ही जायें या घटते ही जायें उन्हें अपरिवर्तमान परिणाम कहते हैं क्योंकि वे परिणाम पलटकर पीछेकी ओर नहीं आते । और जिस परिणाम में स्थित हो परिणामान्तरको प्राप्त होकर पुन: उसी परिणाम में आना २५ सम्भव हो उन्हें परिवर्तमान कहते हैं क्योंकि यहाँ पलटकर पुनः उसी परिणाम में आना सम्भव है । परिणाम तीन प्रकारके हैं—उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य । उनमें से सर्वोत्कृष्ट विशुद्ध परिणामोंसे जघन्य अनुभागबन्ध नहीं होता है। क्योंकि अप्रशस्त प्रकृतियोंके अनुभाग से प्रशस्त प्रकृतियोंका अनुभाग अनन्तगुणा होता है । अतः उसमें अनन्तगुणी वृद्धिका प्रसंग आता है । तथा सर्वोत्कृष्ट संक्लेश परिणामोंसे भी जघन्य अनुभागबन्ध नहीं होता; ३० क्योंकि तीव्र संक्लेश से अशुभ प्रकृतियोंके अनुभागकी वृद्धिका प्रसंग आता है । अतः जघन्य और उत्कृष्ट परिणामोंके निराकरणके लिए परिवर्तमान मध्यम परिणामोंमें पूर्वोक तेईस प्रकृतियोंका जघन्य अनुभागबन्ध कहा है । आशय यह है कि तेईस प्रकृतियों में प्रशस्त और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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