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कर्णाटवृत्ति जोवतत्त्वप्रदीपिका निक्षेपिसुवुदु वोरणाविधानदोळमेंदरिउवु ॥ नानानिषेक स्थिति।
अवशिष्ट आवळि। उपरितन स्थिति। उदयावळि ४
अचलावळि ४
आबाधावज्जितस्थितियं निषेकमेंदु पेळ्वपरु :
आबाहूणियकम्महिदी णिसेगो दु सत्तकम्माणं ।
आउस्स णिसेगो पुण सगट्ठिदी होदि णियमेण ॥१६०॥ आबाधोनितकर्मस्थितिनिषेकस्तु सप्तकर्मणां । आयुषो निषेकः पुनः स्वस्थितिभवति ५ नियमेन ॥
आयुज्जितज्ञानावरणावि सप्तमूलप्रकृतिगळ्गे आबाधोनित कर्मस्थिति । तु मत्ते निषेकमक्कुमायुष्यकर्मक्के पुनः मते स्वस्थितियेनितेनितुं निषेकमक्कुं नियमविवं ।' निक्षिपेत् उदीरणाविधाने इति ज्ञातव्यम् ।
A४ अतिस्थापनावलिः
उपरितनस्थितिः M४ उदयावलिः
M४ अचलावलिः ॥१५९॥ निषेकस्वरूपमाह
आयुर्वजितसप्तमूलप्रकृतीनां आबाधोनितकर्मस्थितिः तु-पुनः निषेकः स्यात् । आयुषः पुनः स्वस्थितिः सर्वव निषेको भवति नियमेन ॥१६॥
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कथन जानना। आयुकर्ममें उदीरणा जिस आयुको भोग रहे हैं उसी आयुमें होती है। जो आगामी उत्तरभवकी आयु बाँधी है उसकी उदीरणा नियमसे नहीं होती ॥१५९।।
आगे निषेकका स्वरूप कहते हैं
आयुको छोड़ सात मूल प्रकृतियोंके निषेक उनकी आबाधाकालसे हीन जितनी स्थितिका प्रमाण है उतने हैं । आशय यह है कि प्रति समय जितने कर्मपरमाणु खिरते हैं उनके समूहका नाम निषेक है । सो सात कर्मों में से किसी भी कर्मकी जितनी स्थिति बंधी हो उसमेंसे आवाधाकालमें तो कोई परमाणु खिरता नहीं। आबाधाकाल बीतनेपर प्रति समय कर्मपरमाणु क्रमसे खिरते हैं। अतः कर्मकी स्थितिमें-से आबाधाकाल घटानेपर जो २० काल शेष रहे उसके समयोंका जितना प्रमाण हो उतना ही निषेकोंका प्रमाण होता है। सो सात कर्मोंके निषेक तो उनकी आबाधाहीन स्थिति प्रमाण जानना। किन्तु आयुकर्मकी १. क°दिदं । आयुष्य कर्म सर्व निषेकस्थिति
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