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________________ १७२ गो० कर्मकाण्डे इल्लि तात्पर्य्यार्थम त दोर्ड अंकसंदृष्टियिंदमुमर्थसंदृष्टियिदमुं पेळ्दप मल्लि अंकसंदृष्टि. यिदमे ते दोडे बादरैकेंद्रियपर्याप्तोत्कृष्टस्थितिबंधविकल्पं मोदल्गोंडु एकैकसमयहीनक्रमदिदं तन्मध्यस्थितिबंधविकल्पंगळु नडदु नूरतो भत्तारनेयदु सूक्ष्मपर्याप्तोकृष्टस्थितिबंधविकल्पं पुटुगु मनंतरस्थितिबंधविकल्पं मोदल्गोंडु समयोनक्रमदिस्थितिबंधविकल्पंगळु नडदु २८ इप्पत्तंटनेयदु ५ बादरापर्याप्तोत्कृष्टस्थितिबंधविकल्पमक्कु। मनंतर स्थितिविकल्पं मोदल्गोंडु समयोनक्रमदिद स्थितिबंधविकल्पंगळु नडदु नाल्कनेयदु सूक्ष्मापर्याप्तोत्कृष्टस्थितिबंधविकल्पमक्कुमनंतरसमयोन. स्थितिबंधविकल्पमो दयदु सूक्ष्मापर्याप्तजघन्यस्थितिबंधविकल्पमक्कु । मनंतरसमयोनस्थितिबंध. विकल्पंगळ नडदु यरउनेयदु बादरापर्याप्तजघन्यस्थितिबंधविकल्पमक्कु-। मनंतर समयोनस्थिति__ बंधविकल्पं मोदल्गोंडु समयोनक्रमदिदं स्थितिबंधविकल्पंगळु नडदु पदिनाल्कुनैयदु सूक्ष्मपर्याप्त जघन्यस्थितिबंधविकल्पमक्कु-। मनंतरसमयोनस्थितिविकल्पं मोदल्गोंडु समयोनक्रमविंद स्थितिबंधविकल्पंगळु नडेदु तो भत्तेंटनेयदु बादरपर्याप्तजघन्यस्थितिबंधविकल्पमक्कुमर्थसंदृष्टियोळु तात्पर्यात्थं पेळल्पडुगुमे ते दोडे बादरैकेंद्रियपर्याप्तोत्कृष्टस्थितिबंधविकल्पमेकसागरोपमप्रमाणं । सा १। जघन्यस्थितिबंधविकल्पं रूपोनपल्यासंख्यातेकभागोनैकसागरोपमप्रमितमक्कु सा १ । १४. 'च' शब्दात् पुनरपि सव्वजुदी तदुक्तैकद्विचतुश्चतुर्दशाष्टाविंशतिशलाकायुतः एकान्न पञ्चाशतः ४९ १५ सकाशात् 'हेट्ठा' सूक्ष्मपर्याप्तकजधन्यान्तरस्थितिबन्धमादि कृत्वा बादरपर्याप्तकजघन्यस्थितिबन्धपर्यन्त विकल्पसम्बन्धिन्योऽधस्तनशलाका उरि सूक्ष्मपर्याप्तकोत्कृष्टानन्तरस्थितिबन्धमादिं कृत्वा बादरपर्याप्तकोस्कृष्टस्थितिबन्धपर्यन्तविकल्पसम्बन्धिन्य उपरितनशलाकाश्च संखगुणं संख्यातगणितक्रमा भवन्ति वा प उ A १९६ ॥ २८ ॥ ४ १ २ १४ ॥ ९८ वा पज पुनरपि मज्झे थोवसलागा हेट्ठा उरि ‘च संखगुणिदकमा' एतावत्सूत्रं द्वीन्द्रियं प्रत्यपि योज्यम् । २० तथाहि- मज्झे थोवसलागा द्वीन्द्रियपर्याप्तकोत्कृष्टस्थितिबन्धमादि कृत्वा द्वीन्द्रियपर्याप्तकजघन्यस्थिति २० शलाका हुई। यथा २८.११.२०१४। इन्हें पुनः जोड़नेपर जो प्रमाण हो उससे नीचे अर्थात् सूक्ष्म पर्याप्तकके जघन्यस्थितिके अनन्तर स्थितिबन्धसे लेकर बादर पर्याप्तक जघन्य स्थितिबन्ध पर्यन्त स्थितिके भेद सम्बन्धी अधस्तन शलाका संख्यातगुणी है और ऊपर सूक्ष्म पर्याप्तकके उत्कृष्ट स्थितिबन्धके. अनन्तर स्थितिबन्धसे लेकर बादर पर्याप्तक उकृष्ट स्थितिबन्ध पर्यन्त स्थितिके भेद सम्बन्धी उपरितन शलाका संख्यात गुणी है। सो अठाईस, चार, एक, दो और चौदह को जोड़नेपर उनचास हुए । इनको संख्यातके चिह्न दोसे गुणा करनेपर अठानबे नीचेकी शलाका जानना और उसे दोसे गुणा करनेपर एक सौ छियानबे ऊपरकी शलाका जानना। यथा १९६०२८४२११४ ९८ इस प्रकार एकेन्द्रियका कथन किया। आगे इसी गाथाका अर्थ दो इन्द्रियमें लगाते हैं मध्य अर्थात् दो-इन्द्रिय पर्याप्तकके उत्कृष्ट स्थितिबन्धसे लेकर दो-इन्द्रिय पर्याप्तकके जघन्य स्थितिबन्ध पर्यन्त भेदोंमें दो-इन्द्रिय अपर्याप्तकके उत्कृष्ट स्थितिबन्धसे लेकर एक-एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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