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________________ ५ १० १७० गो० कर्मकाण्डे पर्याप्ता पर्याप्तोत्कृष्टजघन्य स्थितिबंधविकल्पंगेळु नडवु नडदु तदुत्कृष्टस्थितिबंध विकल्पंगळमवराबाधाविकल्पंगलं पुट्टगुमेंदोडे पेळल्वेडि मंदण सूत्रमं पेदपरु :-- मझे थोवसलागा हेडा उवरिं च संखगुणिदकमा । सव्वजुदी संखगुणा हेडुवरिं संखगुणमसणित्ति ॥ १४९ ॥ मध्ये स्तोकशलाकाः अधः उपरि च संख्यगुणितक्रमाः । सर्व्वयुतिः संख्यगुणा अध उपरि संख्यगुणमसंज्ञिपर्यंतं ॥ बादरैकेंद्रियपर्य्याप्तोत्कृष्टस्थितिबंधविकल्पं मोदल्गोड्डु तज्जघन्यस्थितिबंधविकल्पपर्यंतमिर्द्देकेंद्रियंगळ मिथ्यात्वकर्म्मप्रकृति सर्व्वस्थितिविकल्पंगळोळु मध्यवत्तगळप्प सूक्ष्मैकेंद्रियापर्याप्तोत्कृष्टस्थितिबंधविकल्पं मोदगोंड सूक्ष्मैकेंद्रियापर्य्याप्तजघन्य स्थितिबंध विकल्प पर्य्यन्तमिद्दं स्थितिबंधविकल्पंगळं मध्य मेंबुदा मध्यस्थितिबंधविकल्पंगळे नितोळवनितमोदु शलाकेयं माडिदुदिदु: सर्व्वतः स्तोकशलाका संख्येयक्कुं । अधः आ मध्यशलाका संख्येयिद केलगण सूक्ष्मापय्र्याप्तजघन्यस्थितिबंधविकल्पानंतरस्थितिबंधविकल्पं मोवल्गोंडु बादरापर्याप्तजघन्यस्थितिबंध विकल्प पर्यंत लब्धानि तेषामधः संस्थाप्य प्रागुक्ततत्तच्चतुश्चतुर्विकल्पानां प्रथमप्रथमस्य स्थित्यायामाबाधायामयोः रूपोनतल्लब्धमात्रान् द्वितीयतृतीयस्य तयोः सम्पूर्णतत्तल्लब्धमात्रानेव समयानपनीयापनीय परम्परं स्थित्यायाम्माबाबायामं च साधयेत् ॥१४८॥ एतत्सर्वं मनसि धृत्वाग्रतनसूत्रमाह १५ ३० मज्झे थोवसलागा—बादरपर्याप्तकोत्कृष्ट स्थितिबन्धमादि कृत्वा बादरपर्याप्तकजघन्यस्थितिबन्धपर्यन्तेषु एकेन्द्रियस्य मिथ्यात्व सर्वस्थितिविकल्पेषु मध्ये ये सूक्ष्मापर्याप्तकोत्कृष्ट स्थितिबन्धमादि कृत्वा सूक्ष्मापर्याप्तकजघन्यस्थितिबन्धपर्यन्तं मध्यविकल्पाः स्तोकाः ते एका शलाका ज्ञातव्या ^१ हेट्ठा सूक्ष्मापर्याप्तक असंज्ञी पञ्चेन्द्रियकी स्थितिके कथन सम्बन्धी तीनों त्रैराशिकों में फलराशि होता है । तथा २० असंज्ञी पञ्चेन्द्रियके मिध्यात्वकी उत्कृष्ट आबाधा आवलीके संख्यातवें भागसे अधिक संख्यात आवली प्रमाण अन्तर्मुहूर्त हजार है । और जघन्य आबाधा केवल हजार अन्तर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट में से जघन्यको घटाकर एकसे भाग देकर जो प्रमाण हो उसमें एक जोड़नेपर असंज्ञी पञ्चेन्द्रियके मिथ्यात्वकी आबाधा के सब भेदोंका प्रमाण होता है। वही असंज्ञी पञ्चेन्द्रियकी आबाधाके कथनमें तीनों त्रैराशिकों में फलराशि जानना । इतना विशेष कथन है. शेष सब कथन दो-इन्द्रियके कथनकी तरह जानना || १४८ ॥ २५ यह सब कथन मनमें रखकर आगेका गाथासूत्र कहते हैं मध्य में स्तोक शलाका है अर्थात् बादर पर्याप्तकके उत्कृष्ट स्थितिबन्धसे लेकर बादर पर्याप्तककी जघन्यस्थितिबन्ध पर्यन्त जो एकेन्द्रियके मिथ्यात्वकी सब स्थितिके विकल्प हैं उनमें से सूक्ष्म 'अपर्याप्त के उत्कृष्ट स्थितिबन्धसे लेकर सूक्ष्म अपर्याप्तककी जघन्य स्थितिबन्ध पर्यन्त विकल्प सबसे थोड़े हैं। उनकी एक शलाका जानना । 'हेट्ठा' अर्थात् इसके नीचे सूक्ष्म अपर्याप्तकके जघन्य स्थितिबन्धसे अनन्तर स्थितिबन्ध से लेकर बादर अपर्याप्तक के १. मग मेनितेनित स्थितिविकल्पंगलं नडदु नडदु पुट्टगुमे दोडे तन्मध्यस्थितिबन्ध विकल्पंगलुमनवार बाधा विक्षल्पंगलमं ल 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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