SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 205
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्णाटवृत्ति जोवतत्त्वप्रदीपिका मत्तमुमंते प्र।सा ७० । को २। फ सा ५० । इ। सा ४० । को २ । बंद लब्धं त्रीद्रियजीवं चाळीसियंगळगे कटुव जघन्यस्थितिबंधप्रमाणमक्कुं सा ५० ।। ४ मत्तमन्ते प्र। सा ७० । प को २।फ सा ५०।। इ।सा ३०। को २। बंद लब्ध त्रोंद्रियजीवं तीसियंगळ्गे कटुव प जघन्यस्थिति प्रमाणमक्कुं। सा ५०।। ३॥ मत्तमंत प्र। सा । ७० । को २ फ सा ५० । १।३ इ । सा २० । को २। बंद लब्धं त्रींद्रियजीवं विसियंगळरो कटुव जघन्यस्थितिबंधप्रमाणमक्कुं- ५ भवति सा २५। ३ पुनस्तथा प्र-सा ७० को २ फ ज सा २५ । इसा २० को २ लब्धं तस्य वीसियानां प जघन्यस्थितिबन्धप्रमाणं भवति सा २५ ।। २ पुनस्तया प्र-सा ७० को २ । फ ज-सा ५०इसा ४० प को २ लब्धं त्रींद्रियस्य चालीसियानां जघन्यस्थितिबन्धप्रमाणं भवति सा ५० ४ पुनस्तथा प्र-सा ७० को प २। फ ज सा ५० इसा ३० को २ लब्धं श्रीन्द्रियस्य तीसियानां जघन्यस्थितिबन्धप्रमाणं भवति सा ५० । ३ पुनस्तथा प्रसा. ७० को २ फ-ज - सा ५० । इ सा १० पच्चीस सागर, इच्छाराशि चालीस, तीस, बीस आदि । फलसे इच्छाराशिको गुणा करके प्रमाणराशिका भाग देनेपर द्वीन्द्रिय जीवके उस-उस कर्मकी जघन्य स्थिति बन्धका प्रमाण होता हैं । तथा सत्तर कोड़ाकोड़ी सागरकी स्थितिवाला मिथ्यात्व कर्म यदि त्रीन्द्रियके पल्यके संख्यातवें भागहीन पचास सागर प्रमाण बँधता है तो जिन कर्मोकी उत्कृष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy