SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 204
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५४ गो० कर्मकाण्डे रोपमस्थितियनुळ्ळ मिथ्यात्वप्रकृतिगे द्वौद्रियजीवं जघन्यस्थितियं संख्यातचतुष्टयभक्तरूपोनपल्यहीनपंचविंशतिसागरोपमजघन्यस्थितियनवक्केत्तलानु कटुगुमाळु चत्वारिंशत्सागरोपमकोटोकोटिस्थितियनुझळ चाळीसियंगळ्गेनितं जघन्यस्थितियं कटुगुमें दिन्तु त्रैराशिकमं माडि प्र। सा ७० । को २१ फ। ज सा. २५ । । इसा ४० । को २। बंद लब्धं द्वींद्रियजीवं चालीसियं ५ गळ्गे माळप जघन्य स्थितिबंधप्रमाणमक्कुं सा २५ । । ४ मत्तमंत प्र। सा ७० । को २ फ १ । ४ । सा २५।। इ। सा ३० । को २। बंद लब्धं द्वींद्रियजीवं तीसियंगळगे कटुव जघन्यस्थिति बंधप्रमाणमक्कुं सा २५ । । ३॥ मत्तमंत प्र। सा ७० । को २। फ सा २५।। इ। सा २० । कोटि २। बंद लब्धं द्वौद्रियजीवं विसियंगळगे कट्टव जघन्यस्थितिबंधप्रमाणं सा २५ । । १।४ तस्य वीसियानां जघन्यस्थितिबन्धप्रमाणं भवति सा १ । २ पुनस्तथा प्र-सा ७० को २। फ सा २५ १० इ-सा ४० को २ लब्धं द्वीन्द्रियस्य चालोसियानां जघन्यस्थितिबन्धप्रमाणं भवति । सा २५ तबन्धप्रमाण भवति । सा २५४ पनस्तथा । ४ प्र-सा ७० को २ । फ-ज सा २५ इ-सा ३० को २ लब्धं तस्य तीसियानां जघन्यस्थितिबन्धप्रमाणं प देनेपर एकेन्द्रियके उस कर्मकी जघन्यस्थितिबन्धका प्रमाण आता है। तथा सत्तर कोड़ाकोड़ी सागरकी स्थितिवाला मिथ्यात्वकर्मका जघन्य स्थितिबन्ध दो इन्द्रियके पल्यके संख्यात भाग हीन पच्चीस सागर प्रमाण होता है तो जिन कर्मोकी उत्कृष्टस्थिति चालीस, तीस १५ या बीस कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण है उनका जघन्य स्थितिबन्ध दो इन्द्रियके कितना होता है तो प्रमाणराशि सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर, फलराशि पल्यके संख्यातवें भागहीन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy